ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 90/ मन्त्र 11
यत्पुरु॑षं॒ व्यद॑धुः कति॒धा व्य॑कल्पयन् । मुखं॒ किम॑स्य॒ कौ बा॒हू का ऊ॒रू पादा॑ उच्येते ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । पुरु॑षम् । वि । अद॑धुः । क॒ति॒धा । वि । अ॒क॒ल्प॒य॒न् । मुख॑म् । किम् । अ॒स्य॒ । कौ । बा॒हू इति॑ । कौ । ऊ॒रू इति॑ । पादौ॑ । उ॒च्ये॒ते॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् । मुखं किमस्य कौ बाहू का ऊरू पादा उच्येते ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । पुरुषम् । वि । अदधुः । कतिधा । वि । अकल्पयन् । मुखम् । किम् । अस्य । कौ । बाहू इति । कौ । ऊरू इति । पादौ । उच्येते इति ॥ १०.९०.११
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 90; मन्त्र » 11
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यत्-पुरुषं वि अदधुः) जो परमात्मा को पुरुषरूप में कल्पित किया है, देहरूप में निर्धारित किया है (कतिधा वि अकल्पयन्) कितने प्रकारों से कल्पित किया है (अस्य मुखं किम्-आसीत्) इसका मुख क्या है (कौ बाहू) कौन सी भुजाएँ हैं (कौ-ऊरू पादा उच्येते) कौन सी जङ्घाएँ हैं, कौन से पैर कहाते हैं ॥११॥
भावार्थ
रुपकालङ्कार से समष्टि पुरुष को देह में कल्पित किया है। प्रश्न है कि उसका मुख कौन है, भुजाएँ कौन हैं, जङ्घाएँ कौन सी हैं और पैर कौन से हैं। इसका उत्तर अगले मन्त्र में है ॥११॥
विषय
प्रभु धारण से क्या लाभ ?
पदार्थ
[१] (यत्) = जब (पुरुषम्) = संसार नगरी में निवास शयन, करनेवाले प्रभु को 'देव-साध्य व ऋषि' (व्यदधुः) = अपने में विशेषरूप से धारण करते हैं तो वे (कतिधा) = कितने प्रकार से (व्यकल्पयन्) = [विक्लृष्]=अपने को विशिष्ट परामर्शवाला बनाते हैं । प्रभु के धारण करनेवाले में अन्य पुरुषों से क्या विशेष शक्ति उत्पन्न हो जाती है ? [२] (अस्य मुखं किम्) = इसका मुख्य क्या हो जाता है ? क्या यह अन्य पुरुषों की तरह ही बोलचालवाला नहीं होता ? (कौ बाहू) = इसके बाहु क्या हो जाते हैं ? इसके बाहु क्या सामान्य लोगों की तरह कार्य करनेवाले नहीं होते ? (का ऊरू) = इसकी जाँघें क्या हो जाती हैं? अथर्व के अनुसार इसका मध्यभाग- पेट क्या हो जाता है ? (पादा [का] उच्येते) = इसके पाँव क्या कहाते हैं ? इसकी चाल-ढाल और लोगों से किस दिशा में भिन्न होती है ?
भावार्थ
भावार्थ - यदि प्रभु के धारण के बाद भी हमारे जीवनों में कोई विशेषता न आये, तो प्रभु धारण की कोई उपयोगिता नहीं प्रतीत होती । इसी कारण यह प्रश्न है कि प्रभु धारण से क्या परिवर्तन होता है ? अगले मन्त्रों में इसी प्रश्न का विस्तृत उत्तर है-
विषय
वर्णमय पुरुष की कल्पना।
भावार्थ
(यत्) जो (पुरुषं) पुरुष को (वि अदधुः) विशेष रूप से वर्णन किया तो (कतिधा) कितने प्रकारों से (वि अकल्पयन्) उसको विशेष रूप से कल्पित किया अर्थात् उस पुरुष को कितने भागों में विभक्त किया। (अस्य मुखम् किम्) इस पुरुष का मुख भाग क्या कहलाया, (बाहू कौ) दोनों बाहू क्या कहलाये और (ऊरू) जांघें क्या कहलाईं और (पादौ कौ उच्येते) दोनों पैर क्या कहाये। इन समस्त प्रश्नों का उत्तर अगली ऋचा में देते हैं
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्नारायणः॥ पुरुषो देवता॥ छन्दः–१–३, ७, १०, १२, निचृदनुष्टुप्। ४–६, ९, १४, १५ अनुष्टुप्। ८, ११ विराडनुष्टुप्। १६ विराट् त्रिष्टुप्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यत् पुरुषं वि अदधुः) यत्पुनः परमात्मानं पुरुषं पुरुषरूपं देहरूपं मन्त्रद्रष्टारौ निर्धारितवन्तः (कतिधा-वि अकल्पयन्) कियत्प्रकारेण कल्पितवन्तः (अस्य मुखं किम्-आसीत्) अस्य मुखं किमस्ति (कौ बाहू) कौ भुजौ (कौ ऊरू-पादा उच्येते) के जङ्घे पादौ कावुच्येते ॥११॥
इंग्लिश (1)
Meaning
How do the Rshis visualise the manifestive modes of the Purusha? What was his mouth? What the arms? What the thighs? What are the feet as they are said to be?
मराठी (1)
भावार्थ
समष्टी पुरुषाला रूपकालंकाराने देहाच्या रूपाने कल्पिलेले आहे. प्रश्न असा आहे की त्याचे मुख कोणते? भुजा कोणत्या? जांघा कोणत्या व पाय कोणते? याचे उत्तर पुढच्या मंत्रात आहे. ॥११॥
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