ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 34/ मन्त्र 12
ते दश॑ग्वाः प्रथ॒मा य॒ज्ञमू॑हिरे॒ ते नो॑ हिन्वन्तू॒षसो॒ व्यु॑ष्टिषु। उ॒षा न रा॒मीर॑रु॒णैरपो॑र्णुते म॒हो ज्योति॑षा शुच॒ता गोअ॑र्णसा॥
स्वर सहित पद पाठते । दश॑ऽग्वाः । प्र॒थ॒माः । य॒ज्ञम् । ऊ॒हि॒रे॒ । ते । नः॒ । हि॒न्व॒न्तु॒ । उ॒षसः॑ । विऽउ॑ष्टिषु । उ॒षाः । न । रा॒मीः । अ॒रु॒णैः । अप॑ । ऊ॒र्णु॒ते॒ । म॒हः । ज्योति॑षा । शु॒च॒ता । गोऽअ॑र्णसा ॥
स्वर रहित मन्त्र
ते दशग्वाः प्रथमा यज्ञमूहिरे ते नो हिन्वन्तूषसो व्युष्टिषु। उषा न रामीररुणैरपोर्णुते महो ज्योतिषा शुचता गोअर्णसा॥
स्वर रहित पद पाठते। दशऽग्वाः। प्रथमाः। यज्ञम्। ऊहिरे। ते। नः। हिन्वन्तु। उषसः। विऽउष्टिषु। उषाः। न। रामीः। अरुणैः। अप। ऊर्णुते। महः। ज्योतिषा। शुचता। गोऽअर्णसा॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 34; मन्त्र » 12
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
ये दशग्वाः प्रथमा विद्वांसो यज्ञमूहिरे त उषसो व्युष्टिषु नोऽस्मान् हिन्वन्तु। येऽरुणैर्महो गोअर्णसा शुचता ज्योतिषा रामीरुषा नापोर्णुते तेऽस्माकं शिक्षकाः सन्तु ॥१२॥
पदार्थः
(ते) (दशग्वाः) ये दशभिरिन्द्रियैः सिद्धिं गच्छन्ति ते (प्रथमाः) पृथुबुद्धयः (यज्ञम्) (ऊहिरे) प्राप्नुवन्ति (ते) (नः) अस्मान् (हिन्वन्तु) वर्द्धयन्तु (उषसः) प्रभातस्य (व्युष्टिषु) प्रतापेषु (उषाः) प्रभातः (न) इव (रामीः) आरामप्रदा रात्रीः (अरुणैः) रक्तवर्णैः (अप) (ऊर्णुते) आच्छादयति (महः) महता (ज्योतिषा) प्रकाशेन (शुचता) पवित्रेण पवित्रकारकेण (गोअर्णसा) गावः किरणा अर्णो जलं चास्मिँस्तेन ॥१२॥
भावार्थः
ये क्रियाकाण्डकुशला जितेन्द्रिया उषर्वदविद्याऽन्धकारनिवारका मनुष्यान् विद्यासुशिक्षाभ्यां वर्द्धयन्ति ते सर्वैः सत्कर्त्तव्याः ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
जो (दशग्वाः) दशों इन्द्रियों से सिद्धि को प्राप्त होते हैं वे (प्रथमाः) बहुत विस्तारयुक्त बुद्धिवाले मुख्य विद्वान् जन (यज्ञम्) यज्ञ को (ऊहिरे) प्राप्त होते हैं (ते) वे (उषसः) प्रभातकाल के (व्युष्टिषु) प्रतापों में (नः) हमलोगों को (हिन्वन्तु) बढ़ावें जो (अरुणैः) लाल वर्णों से (महः) बड़े (गोअर्णसा) जिसमें कि किरण और प्रकाश विद्यमान (शुचता) जो पवित्र वा पवित्रता है उस (ज्योतिषा) प्रकाश से (रामीः) आराम की देनेवाली रात्रियों को (उषाः) प्रभात समय के (न) समान (अप,ऊर्णुते) न ढाँपते अर्थात् प्रकट करते हैं (ते) वे हमारे शिक्षक हों ॥१२॥
भावार्थ
जो क्रियाकाण्ड में कुशल जितेन्द्रिय जन प्रभातकाल के समान अविन्द्यान्धकार की निवृत्ति करनेवाले मनुष्यों को विद्या और उत्तम शिक्षा से बढ़ाते हैं, वे सबको सत्कार करने योग्य हैं ॥१२॥
विषय
सत्संग व उत्तम प्रेरणा
पदार्थ
१. (ते) = वे गतमन्त्र के अनुसार प्राणसाधना करनेवाले व्यक्ति (दशग्वाः) = जीवन के दशम दशक तक जानेवाले होते हैं। (प्रथमाः) = ये उन्नति के मार्ग में प्रथम स्थान पर स्थित होते हैं। (यज्ञम् ऊहिरे) = यज्ञ को धारण करते हैं- यज्ञशील होते हैं। (ते) = वे (नः) = हमें (उषसः व्युष्टिषु) = उषाकालों के आने पर (हिन्वन्तु) = प्रेरित करें- उत्कृष्ट मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें । २. (नः) = जैसे (उषा:) = उषाकाल अरुणैः = अपने अरुण प्रकाशों से (रामीः) = रमण व आनन्द की साधनभूत कृष्णावर्ण रात्रियों को (अप ऊर्णुते) = दूर करता है, इसी प्रकार ये 'दशग्व' (गो अर्णसा) = ज्ञानवाणीरूप जलवाले (शुचता) = देदीप्यमान (महो ज्योतिषा) = महान् ज्ञान से हमारे अज्ञानान्धकार को दूर करते हैं। वेदवाणी का ज्ञानरूप जल हमारे सब मलों को धो डालता है।
भावार्थ
भावार्थ- हमें उत्कृष्ट दीर्घायुष्यवाले यज्ञशील व्यक्तियों द्वारा मार्ग का उपदेश प्राप्त हो । वे ज्ञान द्वारा हमारे जीवनों को शुद्ध करें।
विषय
मरुत् नाम वीरों और विद्वानों, व्यापारियों का वर्णन ।
भावार्थ
( उषाः न ) जिस प्रकार उषाएं ( रामीः ) रात्रियों को ( अरुणैः ) उज्ज्वल प्रकाशों से ( अप ऊर्णुते ) दूर कर देती है उसी प्रकार जो विद्वान् पुरुष ( शुचता ) अति देदीप्यमान्, पवित्रकारक ( महः ज्योतिषा ) बड़े भारी ज्ञानप्रकाश से युक्त ( गो-अर्णसा ) किरणों और जलों से युक्त सूर्य और मेघ के समान पावन और शान्तिदायक ( गो-अर्णसा ) वेदवाणीमय ज्ञान जल से ( नः रामीः ) हमारी अन्धकारमय रमण विलास आदि युक्त भोगमय अज्ञान रात्रियों को ( अप ऊर्णुवते ) दूर करते हैं ( ते ) वे ( दशग्वाः ) दश इन्द्रियों को वश करने हारे, ( प्रथमाः ) उच्च कोटि के विद्वान् पुरुष ( यज्ञम् ऊहिरे ) यज्ञ, उपासना करते और उपास्य परमेश्वर का मननद्वारा साक्षात् ज्ञान करते हैं । ( ते ) वे ( उषसः व्युष्टिषु ) उषाकाल के प्रादुर्भावों के अवसरों और विशेष प्रज्ञा के उदय होने के कालों में ( नः ) हमें ( हिन्वन्तु ) उत्तम रीति से बढ़ावें, अपना अनुभव हमें बतलावें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः– १, ३, ८,९ निचृज्जगती २,१०, ११, १२, १३ विराड् जगती । ४, ५, ६, ७, १४ जगती । १५ निचृत् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे क्रिया करण्यात कुशल, जितेन्द्रिय असतात, प्रभात वेळेप्रमाणे अविद्यांधकाराची निवृत्ती करणाऱ्या माणसांना विद्या व सुशिक्षणाने वृद्धिंगत करतात त्यांचा सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
They, the Maruts, masters of their mind and ten senses of perception and action, first in intelligence and imagination, organise the yajna and take it to success. May they, we pray, give us the clarion call with the light of the dawn, and, like the lady of light which removes the veil of darkness from over the restful night with radiant rays of the sun, may they, we pray, remove our veil of darkness and ignorance with the great and sacred light of the rising sun of divine knowledge.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The theme of learned persons still continues.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The scholars who put their ten senses (Indriyas) of actions and knowledge under check and thus achieve the desired results, they achieve extensive company of learned people. Let them expand our glories, growing at the dawn. Such people uncover knowledge, as the dawn uncovers the dark nights with its heartening light. Our teachers should be of the said qualities.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the dawn uncovers darkness in the early morning hours, similarly those who are well-versed in the rituals, intelligent and disciplined, they take other persons to the higher degree of learning and education. They are to be respected by all.
Foot Notes
(दश्वा:) ये दशभिरिन्द्रियैः सिद्धि गच्छन्ति ते । = Those who put their ten senses (Indriyas) of actions and knowledge under check. (प्रथमा:) पृथुबुद्धयः । = Of vast knowledge. (उषस:) प्रभातस्य। = Of the Dawn (उषा:)प्रभातः। = Morning time. (अप ऊणुर्ते)। = Uncovers. (गोअर्णसा) गाव: किरणा अर्णो जलं चास्मिंस्तेन । = With rays or water.
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