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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 34/ मन्त्र 13
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - मरुतः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    ते क्षो॒णीभि॑ररु॒णेभि॒र्नाञ्जिभी॑ रु॒द्रा ऋ॒तस्य॒ सद॑नेषु वावृधुः। नि॒मेघ॑माना॒ अत्ये॑न॒ पाज॑सा सुश्च॒न्द्रं वर्णं॑ दधिरे सु॒पेश॑सम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । क्षो॒णीभिः॑ । अरु॒णेभिः॑ । न । अ॒ञ्जिऽभिः॑ । रु॒द्राः । ऋ॒तस्य॑ । सद॑नेषु । व॒वृ॒धुः॒ । नि॒ऽमेघ॑मानाः । अत्ये॑न । पाज॑सा । सुऽच॒न्द्रम् । वर्ण॑म् । द॒धि॒रे॒ । सु॒ऽपेश॑सम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते क्षोणीभिररुणेभिर्नाञ्जिभी रुद्रा ऋतस्य सदनेषु वावृधुः। निमेघमाना अत्येन पाजसा सुश्चन्द्रं वर्णं दधिरे सुपेशसम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते। क्षोणीभिः। अरुणेभिः। न। अञ्जिऽभिः। रुद्राः। ऋतस्य। सदनेषु। ववृधुः। निऽमेघमानाः। अत्येन। पाजसा। सुऽचन्द्रम्। वर्णम्। दधिरे। सुऽपेशसम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 34; मन्त्र » 13
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या युष्माभिः रुद्राः क्षोणीभिरञ्जिभिररुणेभिर्न तस्य सदनेषु ववृधुः। निमेघमाना अत्येन पाजसा सुपेशसं सुश्चन्द्रं वर्णं दधिरे ते विज्ञातव्याः ॥१३॥

    पदार्थः

    (ते) (क्षोणीभिः) पृथिवीभिः। क्षोणीति पृथिवीनामसु निघं० १। १। (अरुणेभिः) आरक्तैः प्रकाशादिभिः (न) इव (अञ्जिभिः) प्रकटैः (रुद्राः) वायवः (तस्य) उदकस्य (सदनेषु) स्थानेषु (ववृधुः) वर्द्धन्ते (निमेघमानाः) निश्चितो मेघो येषान्ते (अत्येन) अश्वेनेव वेगेन (पाजसा) बलेन (सुश्चन्द्रम्) सुवर्णमिव। अत्र ह्रस्वाच्चन्द्रोत्तरपदे मन्त्र इति सुडागमः। (वर्णम्) स्वरूपम् (दधिरे) दधति (सुपेशसम्) सुन्दरं रूपम् ॥१३॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या यथा वायुभिः सहोषा वर्धित्वा दिनं जायते सर्वं विविधं रूपं प्रकटयति तथा युष्माभिः सुस्वरूपं धृत्वा वायुविद्याः प्रकाशनीयाः ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! तुमको (रुद्राः) वायु (क्षोणीभिः) पृथिवियों से (अञ्जिभिः) प्रकट व्यवहारों से (अरुणेभिः) कुछ लालामी लिये प्रकाशों के समान (तस्य) जल के (सदनेषु) स्थानों में (ववृधुः) बढ़ते हैं वा (निमेघमानाः) निश्चित माननेवाले जन (अत्येन) अश्व के समान वेग से और (पाजसा) बल से (सुपेशसम्) सुन्दर रूप युक्त (सुश्चन्द्रम्) सुन्दरता से वर्त्तमान सुवर्ण के समान (वर्णम्) स्वरूप को (दधिरे) धारण करते हैं (ते) वे जानने योग्य हैं ॥१३॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे पवनों के साथ प्रभात वेला बढ़कर दिन होता और समस्त विविध प्रकार का रूप प्रकट करती है, वैसे तुमको अच्छा अपना रूप धारण कर वायु विद्या का प्रकाश करना चाहिये ॥१३॥

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    विषय

    शासकों की विशेषताएँ

    पदार्थ

    १. (ते) = वे गतमन्त्र के 'दशग्व' (क्षोणीभिः) = पृथिवियों से-पृथिवीरूप शरीरों से [पृथिवी शरीरम्] (अरुणेभिः) = अरुण प्रकाशों से, अर्थात् असंतापक ज्ञानरूप प्रकाशों से, जो कि (अञ्जिभिः) = उनकी शोभा बढ़ानेवाले अलंकारों के समान हैं, इनसे युक्त हुए हुए (रुद्राः) = लोगों के दुःखों का द्रावण करनेवाले राष्ट्र के अध्यक्ष (ऋतस्य सदनेषु) = ऋत के घरों में (वावृधुः) = वृद्धि प्राप्त करते हैं । ऋतपूर्वक सब क्रियाओं को करते हुए जीवन में बढ़ते हैं। इनका कोई भी काम अनृत को लिए हुए नहीं होता। २. (निमेघमाना:) = प्रजा पर सुखों का वर्षण करते हुए, (अत्येन पाजसा) = निरन्तर गतिशील शक्ति से (सुश्चन्द्रम्) = उत्तम आह्लाद के जनक (वर्णम्) = वर्ण को (दधिरे) = धारण करते हैं । यह वर्ण (सुपेशसम्) = उत्तम आकृतिवाला है-एक-एक अङ्ग-प्रत्यङ्ग ठीक आकार से बना हुआ है। ये सदा सुन्दर अङ्गोंवाले, प्रसन्न मुखवाले होते हैं । वस्तुतः शासक की आकृति का उत्तम होना भी नितान्त आवश्यक है— अन्यथा वह उत्तम प्रभाव नहीं पैदा कर पाता।

    भावार्थ

    भावार्थ- शासकों के शरीर भी अच्छे हों- वे ज्ञान के तेज से युक्त हों। ऋत का पालन करें-गतिशील शक्तिवाले हों। सदा प्रसन्नमुख व सुन्दर आकारवाले हों।

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    विषय

    मरुत् नाम वीरों और विद्वानों, व्यापारियों का वर्णन ।

    भावार्थ

    (रुद्राः) बोर गर्जन करने वाले मेघ या प्रबल वायु गण जिस प्रकार ( क्षोणीभिः अरुणेभिः अंजिभिः न ) शब्दकारिणी विद्युतों और अरुण अर्थात् सब तरफ चमकने वाले प्रकाशों से ( ऋतस्य सदनेषु ) जल के स्थानों, मेघों में ( वावृधुः ) बल प्रकट करते हैं और ( सु-चन्द्रं सुपेशसं वर्णं दधिरे ) सुखपूर्वक, आह्लादक, उत्तम रूपवान् वरण करने योग्य दृश्य या अन्न आदि सम्पदा को पुष्ट करते और प्रदान करते हैं उसी प्रकार ( रुद्राः ) उपदेश देने वाले विद्वान् गण और दुष्टों को रुलाने और प्रजाओं को सद्-व्यवस्था द्वारा पाप में गिरने से रोकने वाले शासक और वीर जन ( क्षोणीभिः ) शब्द करने वाली वाणियों और आज्ञाओं से या भूमियों, और उसमें रहने वाली प्रजाओं सहित और ( अरुणेभिः अञ्जिभिः न ) प्रकाशों के स्पष्ट रूप, पद आदि दर्शाने वाले नाना प्रकार के उज्ज्वल चिन्हों से और उत्तम गुणों से ( ऋतस्य सदनेषु ) वेद ज्ञान, सत्य, धर्म-व्यवस्था और राष्ट्र और ऐश्वर्य के सदन अर्थात् स्थानों, विद्या के आश्रमों, राजसभाओं और शासक पदों पर ( वावृधुः ) वृद्धि को प्राप्त हों। वे ( अत्येन पाजसा ) बलवान् अश्व सैन्य से, या सबसे बढ़े चढ़े सर्वातिशायी बल और ज्ञान से ( निमेधमाना ) मेघ के समान शिष्यों पर ज्ञान की और शत्रुओं पर शरों की और प्रजाओं पर उत्तम ऐश्वर्यों और सत्य वचनों की वर्षा करते हुए ( सु-चन्द्रं ) उत्तम, सबको आह्लादजनक, सुवर्ण रजतादि धातुमय, ( सुपेशसम् ) उत्तम रूप से युक्त सुवर्णादि ( वर्णं ) वरण करने योग्य ऐश्वर्य और उत्तम सुरूप, वर्ण शोभा, और पद को ( दधिरे ) धारण करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः– १, ३, ८,९ निचृज्जगती २,१०, ११, १२, १३ विराड् जगती । ४, ५, ६, ७, १४ जगती । १५ निचृत् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जशी वायूबरोबर प्रभातवेला विस्तारित होऊन दिवस उत्पन्न होतो व विविध प्रकारची रूपे ती प्रकट करते तसे तुम्हीही चांगल्या प्रकारे वायूविद्येचे प्रकटीकरण केले पाहिजे. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Those Rudras, stormy winds and roaring clouds, tempestuous pioneers of humanity, leaders of science and knowledge, act and grow within the dynamics of the laws of nature alongwith the earths, planets and the atmosphere, with the golden light of dawn and the various beauties of nature, and, showering gifts of living energy and wearing the grace of the full moon and majesty of form, they grow and advance with the strength and speed of the brilliance of light.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The functions and duties of learned persons have been stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The winds blow towards the waterful places on the earth with the apparently pleasant actions. With their strength and horse-like quickness, those places present beautiful golden shadow. The same way O persons ! you should be pleasant to all.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the beautiful dawn lands on the earth with pleasant winds and presents many varying manifestations, the same way O learned person ! you should enlighten others in a beautiful way.

    Foot Notes

    (क्षोणीभिः) पृथिवीभिः । क्षोणीति पृथिवीनाम (N. G. 1/1 ) = The earth. (अरुणेभिः) आरक्तै: प्रकाशादिभिः । = Appearances like that of scarlet or golden color. (अञ्चिभिः) प्रकटै:। = With manifestations. (पाजसा) बलेन | = By power. ( सुक्ष्वन्द्रम् ) सुवर्णमिव । अन हस्वाच्चन्द्रोचरपदे मंत्र इति सुढागमः । = Beautiful like gold.

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