ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 34/ मन्त्र 8
यद्यु॒ञ्जते॑ म॒रुतो॑ रु॒क्मव॑क्ष॒सोऽश्वा॒न्रथे॑षु॒ भग॒ आ सु॒दान॑वः। धे॒नुर्न शिश्वे॒ स्वस॑रेषु पिन्वते॒ जना॑य रा॒तह॑विषे म॒हीमिष॑म्॥
स्वर सहित पद पाठयत् । यु॒ञ्जते॑ । म॒रुतः॑ । रु॒क्मऽव॑क्षसः । अश्वा॑न् । रथे॑षु । भगे॑ । आ । सु॒ऽदान॑वः । धे॒नुः । न । शिश्वे॑ । स्वस॑रेषु । पि॒न्व॒ते॒ । जना॑य । रा॒तऽह॑विषे । म॒हीम् । इष॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्युञ्जते मरुतो रुक्मवक्षसोऽश्वान्रथेषु भग आ सुदानवः। धेनुर्न शिश्वे स्वसरेषु पिन्वते जनाय रातहविषे महीमिषम्॥
स्वर रहित पद पाठयत्। युञ्जते। मरुतः। रुक्मऽवक्षसः। अश्वान्। रथेषु। भगे। आ। सुऽदानवः। धेनुः। न। शिश्वे। स्वसरेषु। पिन्वते। जनाय। रातऽहविषे। महीम्। इषम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 34; मन्त्र » 8
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे रुक्मवक्षसः सुदानवो मरुतो भगे रथेषु यदश्वान् युञ्जते स्वसरेषु शिश्वे रातहविषे जनाय धेनुर्वत्सं नेव महीमिषमा पिन्वते तान् सर्वे संयुञ्जन्ताम् ॥८॥
पदार्थः
(यत्) यान् (युञ्जते) (मरुतः) विद्वांसो मनुष्याः (रुक्मवक्षसः) रुक्ममिव वक्षो येषान्ते (अश्वान्) तुरङ्गानग्न्यादीन् वा (भगे) ऐश्वर्ये सति (आ) (सुदानवः) श्रेष्ठानां पदार्थानां दातारः (धेनुः) दुग्धदात्री गौः (न) इव (शिश्वे) वत्साय (स्वसरेषु) दिनेषु (पिन्वते) सिञ्चति। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम् (जनाय) सत्पुरुषाय (रातहविषे) दत्तदातव्याय (महीम्) महतीं पूज्यां वाचम् (इषम्) इष्टामिच्छां वा ॥८॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथा सुशिक्षिता विद्वांसोऽश्वादीन् पशूनग्न्यादींश्च कार्य्यसिद्धये प्रयुञ्जते तथाऽनुतिष्ठत एवं कृते सति यथा धेनुः स्ववत्सं तर्पयति तथैते प्रयोक्तॄन् धनयन्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (रुक्मवक्षसः) सुवर्ण के समान वक्षःस्थलवाले (सुदानवः) उत्तम पदार्थों के दानकर्त्ता (मरुतः) विद्वान् पुरुषो (भगे) ऐश्वर्य के होते (रथेषु) यानों में (यत्) जिन (अश्वान्) घोड़े वा अग्न्यादि पदार्थों को (युञ्जते) युक्त करते वा (स्वसरेषु) दिनों के बीच (शिश्वे) बालक वा जो (रातहविषे) देने योग्य दे चुका उस (जनाय) सत्पुरुष के लिये (धेनुः) दुग्ध देनेवाली गौ बछड़े को (न) जैसे-वैसे (महीम्) अत्यन्त (इषम्) इच्छा को (आ,पिन्वते) अच्छे प्रकार सींचते हैं, उन सबको सब लोग अच्छे प्रकार प्रयुक्त करें ॥८॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अच्छी शिक्षा को प्राप्त विद्वान् जन घोड़े आदि पशुओं को और अग्नि आदि पदार्थों का प्रयोग कार्य सिद्धि के लिये करते हैं, वैसे अनुष्ठान करो, ऐसे करने से जैसे गौ अपने बछड़े को तृप्त करती हैं, वैसे ये प्रयोग करनेवालों को धनी करते हैं ॥८॥
विषय
राष्ट्ररक्षकों का मूलकर्त्तव्य [धन का उचित विभाग]
पदार्थ
१. (यद्) = जब (रुक्मवक्षसः) = देदीप्यमान छातीवाले [= शक्तिशाली] (मरुतः) = राष्ट्ररक्षक पुरुष (रथेषु अश्वान् युञ्जते) = रथों में घोड़ों को जोत लेते हैं, अर्थात् अपना कार्य करने के लिए सन्नद्ध हो जाते हैं, उस समय ये भगे (आसुदानवः) = ऐश्वर्य के विषय में चारों ओर उत्तम दानवाले होते हैं। राष्ट्ररक्षकों का मूल कर्तव्य यह होता है, कि वे इस बात का ध्यान करें कि राष्ट्र में Haves [अत्यधिक धनी] व Have-nots [अति दरिद्रों] के दो वर्ग न पैदा हो जाएँ। ऐसा होने पर समाज की स्थिति उस शरीर के समान हो जाती है, जिसमें कहीं तो खून अत्यधिक जमा हो जाए और कहीं रुधिर की पहुँच ही न हो। सब अपराधों का उद्गम इन दो वर्गों की उत्पत्ति में ही है। भूखे मरनेवाले सम्पन्नों को लूटेंगे ही। २. राष्ट्ररक्षक पुरुषों का दूसरा कर्त्तव्य यह है कि यज्ञशील पुरुषों के लिए धन का अभाव न होने दें। (न) = जैसे (धेनुः) = गाय (शिश्वे) = बछड़े के लिए दूध प्राप्त कराती है, इसी प्रकार से मरुत् (रातहविषे जनाय) = हवि देनेवाले यज्ञशील पुरुष की (महीम्) = अत्यन्त इषम्-इच्छा को (स्वसरेषु) = गृहों में ही पिन्वते धन का सेचन करते हैं। राष्ट्र की सेवा के लिएलोकहित के कार्यों को करने के लिए-इन्हें धन की कमी नहीं होने देते।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्ररक्षकों का मूलकर्त्तव्य यह है कि अतिधनी व अतिदरिद्र इन दो वर्गों को न पैदा होने दें तथा यज्ञात्मकवृत्तिवालों को धन की कमी न होने दें।
विषय
मरुत् नाम वीरों और विद्वानों, व्यापारियों का वर्णन ।
भावार्थ
जिस प्रकार ( रुक्मवक्षसः मरुतः ) दीप्तिमान् विद्युत को धारण करने वाले वायुगण ( सुदानवः ) उत्तम जल देने वाले होकर ( रातहविषे जनाय महीम् इषम् पिन्वते ) क्षेत्र में अन्न डालने वाले कृषक जन के लिये बड़े वृष्टि का सेचन करते और बहुत अन्न की वृद्धि करते हैं उसी प्रकार ( रुक्मवक्षसः ) सुवर्ण के आभूषणों से सुसज्जित वक्षःस्थल वाले ( मरुतः ) वायु के समान वेग वाले वीर तथा उत्तम सुवर्ण के समान सुन्दर वक्षःस्थल अर्थात् उत्तम हृदय वाले विद्वान् ( सुदानवः ) उत्तम दानशील पुरुष ( भगे ) ऐश्वर्य होने पर और ऐश्वर्य की ही प्राप्ति के लिये ( रथेषु ) रथो में (अश्वान् ) वेगवान् साधनों, अश्वों को ( यत् ) जब ( युञ्जते ) जोड़ते हैं तब वे ( रातहविषे ) देने योग्य अन्नादि कर को देने वाले ( जनाय ) प्रजा जनको बढ़ाने के लिये ( शिश्वे न धेनुः ) बछड़े को दुधार गाय के समान ( महीम् इषम् ) बड़ी भारी पृथ्वी को मेघों के समान उनकी इच्छानुसार अन्नादि बड़ी सम्पदा को ( स्वसरेषु ) सब दिनों या उनके घरों में ही ( पिन्वते ) सेंचते हैं, बढ़ाते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ मरुतो देवता ॥ छन्दः– १, ३, ८,९ निचृज्जगती २,१०, ११, १२, १३ विराड् जगती । ४, ५, ६, ७, १४ जगती । १५ निचृत् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे सुशिक्षित विद्वान लोक घोडे इत्यादी पशू व अग्नी इत्यादी पदार्थांचा प्रयोग कार्यसिद्धीसाठी करतात तसे अनुष्ठान करा. असे केल्यामुळे जशी गाय आपल्या वासराला तृप्त करते तसे हे प्रयोग करणारे धनवान बनतात. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Maruts, leaders with heart of gold and brilliant person, generous givers of knowledge and advancement, as they yoke the power and horses to the chariots of the nation, and as success in progress and prosperity is achieved, then, every day for every home, like the mother cow overflowing with milk for the calf, they provide and augment ample food and freshness for high fulfilment of the people who give and have given their share of service and self-sacrifice in the national yajna.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More functions of the learned people described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned persons! you are of glittering strong chest and donor of nice substances. As a cow gives milk to her calf, the same way you should provide good horses for the chariots and eatables, cloths etc. children and for gentlemen. You should do it in a nice way.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The learned people app se, power and energy etc. and the way a cow gives milk to calf the same way learned persons make others rich with their knowledge and advice.
Foot Notes
(रुक्मवक्षसः) रुक्ममिव वक्षो येषान्ते = Of glittering strong chest (सुदानव:) श्रेष्ठानां पदार्थानां दातारः = Donors of nice substances. ( स्वसरेषु) दिनेषु = During the day. (रातहविषे) दत्तदातव्याय। = For desirables given.
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