ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 36/ मन्त्र 7
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स॒मु॒द्रेण॒ सिन्ध॑वो॒ याद॑माना॒ इन्द्रा॑य॒ सोमं॒ सुषु॑तं॒ भर॑न्तः। अं॒शुं दु॑हन्ति ह॒स्तिनो॑ भ॒रित्रै॒र्मध्वः॑ पुनन्ति॒ धार॑या प॒वित्रैः॑॥
स्वर सहित पद पाठस॒मु॒द्रेण॑ । सिन्ध॑वः । याद॑मानाः । इन्द्रा॑य । सोम॑म् । सुषु॑तम् । भर॑न्तः । अं॒शुम् । दु॒ह॒न्ति॒ । ह॒स्तिनः॑ । भ॒रित्रैः॑ । मध्वः॑ । पु॒न॒न्ति॒ । धार॑या । प॒वित्रैः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समुद्रेण सिन्धवो यादमाना इन्द्राय सोमं सुषुतं भरन्तः। अंशुं दुहन्ति हस्तिनो भरित्रैर्मध्वः पुनन्ति धारया पवित्रैः॥
स्वर रहित पद पाठसमुद्रेण। सिन्धवः। यादमानाः। इन्द्राय। सोमम्। सुषुतम्। भरन्तः। अंशुम्। दुहन्ति। हस्तिनः। भरित्रैः। मध्वः। पुनन्ति। धारया। पवित्रैः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 36; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजप्रजागुणानाह।
अन्वयः
ये समुद्रेण सिन्धव इव विदुषः सङ्गत्येन्द्राय विद्यां यादमानाः सुषुतमंशुं सोमं भरन्तो हस्तिनो मध्वः पवित्रैर्भरित्रैर्धारया पुनन्ति ते कामं दुहन्ति ॥७॥
पदार्थः
(समुद्रेण) सागरेण सह (सिन्धवः) नद्य इव (यादमानाः) याचमानाः (इन्द्राय) ऐश्वर्य्याय (सोमम्) पदार्थसमूहम् (सुषुतम्) सुष्ठु निष्पादितम् (भरन्तः) धरन्तः पुष्णन्तः (अंशुम्) सारम् (दुहन्ति) पिपुरति (हस्तिनः) प्रशस्ता हस्ता विद्यन्ते येषान्ते (भरित्रैः) धृतैः पोषितैः साधनैः (मध्वः) मधुरस्य (पुनन्ति) (धारया) (पवित्रैः) शुद्धैः ॥७॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वतो जलादिकं हृत्वा नद्यो वेगेन गत्वा समुद्रं प्राप्य रत्नवत्यः सत्यः शुद्धजला भवन्ति तथैव ब्रह्मचर्य्येण विद्या धृत्वा तीव्रसंवेगेनालंज्ञाना भूत्वा पवित्रोपचिताः परमेश्वरं प्राप्य सिद्धिमन्तो भूत्वा शुद्धाऽऽनन्दा मनुष्या जायन्ते ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजा और प्रजा के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
जो (समुद्रेण) सागर के साथ (सिन्धवः) नदियाँ जैसे वैसे विद्वानों के साथ मेल करके (इन्द्राय) ऐश्वर्य्य के लिये विद्या की (यादमानाः) याचना करते हुए (सुषुतम्) उत्तम प्रकार उत्पन्न (सोमम्) पदार्थों के समूह को (भरन्तः) धारण और पुष्ट करते हुए (हस्तिनः) उत्तम हाथों से युक्त पुरुष (मध्वः) मधुर गुणसम्बन्धी (पवित्रैः) उत्तम शुद्ध (भरित्रैः) धारण और पोषण किये गये धनों के साथ (धारया) तीक्ष्ण धार से (पुनन्ति) पवित्र करते हैं वे काम को (दुहन्ति) पूर्ण करते हैं ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब ओर से जल आदि का ग्रहण कर नदियाँ वेग से समुद्र को प्राप्त हो रत्नवाली और शुद्ध जलयुक्त होती हैं, वैसे ही ब्रह्मचर्य्य से विद्याओं को धारण करके तीक्ष्ण बुद्धि से पूर्णज्ञानवाले हो पवित्र हुए और परमेश्वर को प्राप्त होकर सिद्धियों से परिपूर्ण शुद्ध आनन्दी मनुष्य होते हैं ॥७॥
विषय
भरित्रैः-धारया-पवित्रैः
पदार्थ
[१] (समुद्रेण) = [स+मुद्] उस आनन्दमय प्रभु के साथ (सिन्धवः) = [स्यन्दन्ते] निरन्तर कर्मप्रवाह में चलनेवाली प्रजाएँ (यादमानाः) = [संगतिं याचमाना: सा०] मेल को चाहती हुईं तथा (इन्द्राय) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिए (सुषुतं सोमम्) = उत्तम प्रकार से उत्पन्न हुए हुए सोम को (भरन्तः) = अपने अन्दर धारण करती हुईं (अंशुम्) = प्रकाश की किरणों को (दुहन्ति) = अपने में भरती हैं। सोमरक्षण से ज्ञानाग्नि दीप्त होती है। ज्ञानाग्नि दीप्त होकर प्रभु का दर्शन होता है । [२] (हस्तिनः) = उत्तम हाथोंवाले, अर्थात् हाथों से सदा कर्मों में (व्यापृत शोभनम् भरित्रैः) = अंग-प्रत्यंग में शक्ति के उचित भरण के हेतु से, (धारया) = प्राणशक्ति के धारण के हेतु से (जायते पवित्रैः) = भावनाओं को पवित्र करने के हेतु से (मध्वः पुनन्ति) = सोम को अपने में पवित्र करते हैं। सोम को पवित्र करने का भाव यह है कि सौम्य भोजनों के सेचन से ये इन सोमकणों में उबाल नहीं आने देते। रक्षित हुए-हुए ये सोमकण अंग-प्रत्यंग में शक्ति का भरण करते हैं [भरित्रैः], शरीर में प्राणशक्ति का संचार करके उसका धारण करते हैं [धारया], मन को पवित्र करते हैं [पवित्रैः] ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभुप्राप्ति का मार्ग यही है कि शरीर में सोम का रक्षण किया जाए। रक्षित सोम ज्ञान-किरणों को दीप्त करता है। ज्ञानदीप्ति से हृदय पवित्र बनते हैं और हम प्रभु का प्रकाश प्राप्त करते हैं ।
विषय
नदियों वत् प्रजाओं का कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सिन्धवः) नदियें (समुद्रेण) समुद्र के साथ मिलकर (सोमं भरन्ति) जिस प्रकार उसमें जल भरती हैं और उसे पूर्ण करती हैं। उसी प्रकार (समुद्रेण) समुद्र के समान अति गम्भीर नायक पुरुष से मिलकर (यादमानाः) उससे ही ऐश्वर्य की याचना या कामना करते हुए (इन्द्राय) उस ऐश्वर्यवान् पुरुष को बढ़ाने के लिये (सु-सुतं) अच्छी प्रकार से पैदा किये ऐश्वर्य को (भरन्तः) प्राप्त करते हुए (हस्तिनः) सिद्धहस्त, कुशल पुरुष (भरित्रैः) भरण पोषण करने के साधनों से (अंशुं दुहन्ति) सारयुक्त पदार्थ को पूर्ण करते हैं और (पवित्रैः मध्वः) जिस प्रकार अन्नों को छाजों से साफ़ किया जाता है और (धारया मध्वः) जिस प्रकार धारा से जलों को स्वच्छ किया जाता है उसी प्रकार (पवित्रैः) पवित्र आचरणों से और (धारया) उत्तम वाणी से (मध्वः) बलवान् पुरुषों को (पुनन्ति) पवित्र करें। (२) समुद्र रूप पूर्ण विद्या की याचना करते हुए सुसम्बद्ध-शिष्य ज्ञानवान् पुरुष से सुसंगत हों। वे इस आचार्य के उत्तम ज्ञान को धारण करें वा विद्वान् जन उत्पन्न पुत्रवत् शिष्य को धारण करें। (हस्तिनः) उत्तम सिद्धहस्त कुशल पुरुष पोषक उपायों से शिष्य को पूर्ण करें, पवित्राचरण और वेदवाणी से पवित्र करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्रः। १० घोर आङ्गिरस ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १, ७, १०, ११ त्रिष्टुप्। २, ३, ६, ८ निचृत्त्रिष्टुप्। विराट् विष्टुप्। ४ भुरिक् पङ्क्तिः। ५ स्वराट् पङ्क्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सगळीकडून जल ग्रहण करून व प्रवाहित करून नद्या जशा वेगाने समुद्राला मिळून रत्न व शुद्ध जल यांनी युक्त होतात, तशीच माणसे ब्रह्मचर्याने विद्या धारण करून तीक्ष्ण बुद्धीने पूर्ण ज्ञानवान बनून पवित्र होऊन परमेश्वराला प्राप्त करून सिद्धींनी परिपूर्ण शुद्ध व आनंदी बनतात. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Just as rivers join the sea bearing distilled soma from the essences of nature for Indra, lord of the world, so do the performers of yajna, men of generous hands, joining the scholars of oceanic depth of learning, distil the soma vitalities of nature and, with hands full of fragrant offerings, sanctify the honey sweets of life with streams of pure and holy showers of piety for honour and glory.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The essentials of a ideal king and his subjects are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The persons who associate with and move into the company the enlightened men like the rivers join the sea. They solicit knowledge for the attainment of prosperity, purify the Soma and its essence, and offer many useful articles to their gurus. They purify all things by honest and proper means and with stream of sweetness.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The rivers carry water from all directions in their catchment areas and having gone to the sea become pure and turn into gems. In the same manner, men become blessed with pure bliss by acquiring knowledge with the observance of Brahamcharya (celibacy and continences) and strong dispassion. They purify themselves with all legitimate means and attain God, thus enjoying perfect Bliss.
Foot Notes
(सोमम् ) पदार्थ समूहम्। = The group of many articles.
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