ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 52/ मन्त्र 3
उ॒त सखा॑स्य॒श्विनो॑रु॒त मा॒ता गवा॑मसि। उ॒तोषो॒ वस्व॑ ईशिषे ॥३॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । सखा॑ । अ॒सि॒ । अ॒श्विनोः॑ । उ॒त । मा॒ता । गवा॑म् । अ॒सि॒ । उ॒त । उ॒षः॒ । वस्वः॑ । ई॒शि॒षे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत सखास्यश्विनोरुत माता गवामसि। उतोषो वस्व ईशिषे ॥३॥
स्वर रहित पद पाठउत। सखा। असि। अश्विनोः। उत। माता। गवाम्। असि। उत। उषः। वस्वः। ईशिषे ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 52; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे उष इव वर्त्तमाने स्त्रि ! त्वं पत्युः सखेवासि उताऽश्विनोः सखासि उत गवां मातासि उत वस्व ईशिषे ॥३॥
पदार्थः
(उत) (सखा) (असि) (अश्विनोः) सूर्य्याचन्द्रमसोरिवाऽध्यापकोपदेशकयोः (उत) (माता) जननीव (गवाम्) किरणानां धेनूनां वा (असि) (उत) (उषः) उष इव शुम्भमाने (वस्वः) धनस्य (ईशिषे) इच्छसि ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सैव स्त्री सुखप्रदा या सुहृद्वदाज्ञानुकारिणी सेविका वर्त्तते सैवोषर्वत् कुलप्रकाशिका भवति ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (उषः) प्रातर्वेला के सदृश वर्त्तमान सुन्दर स्त्री ! तू अपने पति की (सखा) सखी के सदृश वर्त्तमान (असि) है (उत) और (अश्विनोः) सूर्य्य और चन्द्रमा के सदृश अध्यापक और उपदेशक की सखी (असि) है (उत) और (गवाम्) किरण वा गौओं की (माता) माता (उत) और (वस्वः) धन की (ईशिषे) इच्छा करती है ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वही स्त्री सुख देनेवाली जो मित्र के सदृश आज्ञा मानने और सेवा करनेवाली है, वही प्रातर्वेला के सदृश कुल की प्रकाशिका होती है ॥३॥
विषय
'प्राण, ज्ञान व वसु' प्रदा उषा
पदार्थ
[१] हे (उषः) = उषा! तू (उत) = निश्चय से (अश्विनोः सखा असि) = प्राणापान की मित्र है । प्रातः प्रबुद्ध होकर हमें प्राणायाम द्वारा प्राणों को वश में करने का यत्न करना चाहिए। (उत) = और तू (गवाम्) = ज्ञानरश्मियों की (माता असि) = माता है। यह उषा प्राणसाधना द्वारा हमें ऊर्ध्वरेतस् बनाती है। यह रेतस् ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है। इस प्रकार स्वाध्याय से हमारी ज्ञानरश्मियाँ फैलती हैं । [२] (उत) = और हे उषः ! तू (वस्वः) = सब वसुओं के (ईशिषे) = ऐश्वर्यवाली है। शरीर में निवास के लिए जो भी आवश्यक तत्त्व हैं, उन्हें तू प्राप्त करानेवाली है।
भावार्थ
भावार्थ- उषा प्राणों को, ज्ञान को व वसुओं को प्राप्त कराती है।
विषय
पक्षान्तर में—उषा, तीव्र ताप शक्ति का वर्णन।
भावार्थ
(उत) और हे (उषः) प्रभात वेला के समान तू पूर्वोक्त प्रकार से (अश्विनोः सखा असि) दिन रात्रिवत् मिथुन युगल में सखा, मित्रतुल्य सहायक है। (उत) और (गवां माता असि) गौओं मातृवत् पालक, दूध, खीर, मलाई, मठा, मखन, घी आदि पदार्थों की उत्पादक और ज्ञान युक्त वाणियों की जानने वाली हो । (उत वस्वः) धन और बसने योग्य घर की तू (ईशिषे) मालिकन हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्द:- १, २, ३, ४, ६ निचृद्गायत्री । ५, ७ गायत्री ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी मित्रासारखी असून आज्ञाधारक व सेवा करणारी असते, तीच स्त्री सुखदायक असते. तीच उषेप्रमाणे कुल प्रकाशित करणारी असते. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Dawn, while you are a friend of the sun and moon and mother of sunrays, you also command the wealths of the world.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of an ideal woman are continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O noble woman! you are shining like the dawn. You are like friend or companion of your husband. You are the friend of a teacher and preacher. You are mother like the cows (because of feeding them). You keenly desire to have good wealth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
That woman gives happiness who is like a friend and is obedient. She illuminates the family like the dawn.
Foot Notes
(अश्विनोः) सूर्याचन्द्रमसोरिवाऽध्यापकोपदेशकयोः । तत्कावश्विनौ ? सूर्याचन्द्रमसावित्येके (NKT 12, 1, 1) अश्विनावध्वर्यू (ऐतरेय ब्राह्मणे 1, 18, Stph 1, 1, 2, 16 ) गोपथ ब्राह्मणे 3, 2, 6 अध्वर इति यज्ञनाम (NG 3, 17) अध्यापनं ब्रह्मयज्ञ: (मनुस्मृती ) । ब्रह्मयज्ञस्य नेतारौ अध्यापकोपदेशकावेव । i = Of the teacher and preacher who are like the sun and the moon.
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