Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 52 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 52/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - उषाः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    या॒व॒यद्द्वे॑षसं त्वा चिकि॒त्वित्सू॑नृतावरि। प्रति॒ स्तोमै॑रुभूत्स्महि ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या॒व॒यत्ऽद्वे॑षसम् । त्वा॒ । चि॒कि॒त्वित् । सू॒नृ॒ता॒ऽव॒रि॒ । प्रति॑ । स्तोमैः॑ । अ॒भु॒त्स्म॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यावयद्द्वेषसं त्वा चिकित्वित्सूनृतावरि। प्रति स्तोमैरुभूत्स्महि ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यवयत्ऽद्वेषसम्। त्वा। चिकित्वित्। सूनृताऽवरि। प्रति। स्तोमैः। अभूत्स्महि ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 52; मन्त्र » 4
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स्त्रीगुणानाह ॥

    अन्वयः

    हे चिकित्वित् सूनृतावरि स्त्रि ! वयं स्तोमैर्यावयद्द्वेषसं त्वा प्रत्यभूत्स्महि ॥४॥

    पदार्थः

    (यावयद्द्वेषसम्) यावयन्तं द्वेष्टारं द्वेषसं द्वेष्टारं पृथक्कारयन्तीम् (त्वा) त्वाम् (चिकित्वित्) ज्ञापयन्तीम् (सूनृतावरि) सत्यवाक्प्रकाशिके (प्रति) (स्तोमैः) प्रशंसाभिः (अभूत्स्महि) विजानीयाम ॥४॥

    भावार्थः

    या कदाचिद् द्वेषं द्वेष्टृसङ्गन्न करोति सत्यवाक् प्रशंसिता वर्त्तते सैव स्त्री वरा ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर स्त्री गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (चिकित्वित्) जनाने और (सूनृतावरि) सत्यवाणी का प्रकाश करनेवाली स्त्री ! हम लोग (स्तोमैः) प्रशंसाओं से (यावयद्द्वेषसम्) द्वेष करनेवाले को पृथक् करानेवाली (त्वा) तुझको (प्रति, अभूत्स्महि) जानें ॥४॥

    भावार्थ

    जो कभी द्वेष और द्वेष करनेवाले के सङ्ग को नहीं करती और सत्यवाणी और प्रशंसायुक्त है, वही स्त्री श्रेष्ठ है ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'यावयद्वेषा' उषा

    पदार्थ

    [१] हे (चिकित्वत्) = ज्ञान को प्राप्त करानेवाली, (सूनृतावरि) = प्रिय सत्यवाणियोंवाली उषा ! (त्वाम्) = तुझे (स्तोमैः) = स्तुतियों द्वारा प्(रति अभुत्स्महि) = प्रतिदिन प्रबुद्ध करते हैं। इस उषाकाल में हम स्वाध्याय द्वारा ज्ञान को बढ़ाते हैं [चिकित्वत्] शान्तचित्त होकर प्रिय सत्यवाणियों को बोलने का ही व्रत लेते हैं [सूनृतावरि] तथा प्रभु स्तवन करते हैं [स्तोमैः] । [२] उस उषाकाल का हम स्तवन करते हैं, जो कि (यावयद् द्वेषसम्) = हमारे से सब द्वेषों को दूर करनेवाला है। उषा के शान्त वातावरण में हम द्वेष आदि बुरी वासनाओं से आक्रान्त नहीं होते।

    भावार्थ

    भावार्थ– उषाकाल ज्ञान, प्रियसत्यवाणी, निद्वेष व प्रभुस्तवन के लिए है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पक्षान्तर में—उषा, तीव्र ताप शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (चिकिवित्) उत्तम रीति से बालकों को ज्ञान कराने वाली, और उनको रोगादि से मुक्त करने हारी ! हे (सुनृतावरि) उत्तम वचन बोलने वाली और उत्तम अन्न की स्वामिनी ! हम (स्तोमैः) उत्तम २ प्रशंसा वचनों से (यवयद्-द्वेषसं) द्वेष के भावों और द्वेष करने वाले अप्रिय, अप्रीतिजनक पदार्थों और पुरुषों को दूर करने वाली (त्वा प्रति अभुत्स्महि) तुझको प्रत्येक कार्य का बोध करावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्द:- १, २, ३, ४, ६ निचृद्गायत्री । ५, ७ गायत्री ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी कधी द्वेष करीत नाही व द्वेष करणाऱ्यांची संगत धरत नाही. जिची वाणी सत्य व प्रशंसित असते तीच स्त्री श्रेष्ठ असते. ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O bright and illuminative dawn, spirit and beauty of truth and holiness, while you dispel hate and anger and inspire love and admiration, let us know and celebrate you with songs of praise and honour.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The qualities of a good woman.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O noble woman! you drive away all malicious or malevolent persons, and enlighten and illuminate true speech. May we know you well with words of praise.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That woman alone is noble who does not have malice towards any one, nor has the company of malicious persons. She possesses admirable true speech.

    Foot Notes

    (यावयद्दवेषसम् ) यावयन्तं द्वेष्टारं द्वेषसं द्वेष्टारं पुथक्कुर्वन्तीम् । यु-मिश्रणे अमिश्रणे च (अदा० ) अत्र अभिश्रणार्थः । ऋतमिति सत्यनाम (NG 3, 10)। = Driving away a malicious or malevolent person. ( सूनृतावरि ) सत्यवाक्प्रकाशिके । सुनृता -सत्यमधुरा वाक् तद्वती । सुनृतेति वाङनाम तद्वितीम्। = Illuminator of true speech. It is noteworthy that while Sayanacharya, Prof. Wilson, Griffith and others take this and other mantras addressed only to the dawn, Rishi Dayananda Sarasvati taking into consideration यावयद् द्वेषसम् चिकित्वत् सूनृतावरि । and other epithets used for the Usha, takes them addressed to a noble woman, charming like the dawn. Even Sayanacharya translated these epithets like a यवयन्तौ वियुज्यमानौ द्वेषांसि द्वेष्टारो यस्यास्तादृशौ | पृथक् क्रियन्ते द्वेषास्थनयेति वा । रात्रौ हननायोद्यता द्वेषिणः उषा काले हि पलायन्ते (सा) ( चिकित्वत्) ज्ञापयन्तीम् । Prof. Wilson translates सूनृतावरि as endowed with truth यावयद्द्द्वेषसम् as baffler of animosities चिकित्वत् as restorer of consciousness. Griffith has translated यावयद्द्द्वेषसम् as who driveth hate away. These epithets are not applicable in the case of formal or nature's dawn. They are clearly applicable to the noble woman, charming like the dawn. Rishi Dayanand Sarasvati's interpretation is therefore the most authoritative, relevant and rational.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top