ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 52/ मन्त्र 5
प्रति॑ भ॒द्रा अ॑दृक्षत॒ गवां॒ सर्गा॒ न र॒श्मयः॑। ओषा अ॑प्रा उ॒रु ज्रयः॑ ॥५॥
स्वर सहित पद पाठप्रति॑ । भ॒द्राः । अ॒दृ॒क्ष॒त॒ । गवा॑म् । सर्गाः॑ । न । र॒श्मयः॑ । आ । उ॒षाः । अ॒प्राः॒ । उ॒रु । ज्रयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रति भद्रा अदृक्षत गवां सर्गा न रश्मयः। ओषा अप्रा उरु ज्रयः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठप्रति। भद्राः। अदृक्षत। गवाम्। सर्गाः। न। रश्मयः। आ। उषाः। अप्राः। उरु। ज्रयः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 52; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ स्त्रीणामुत्तमव्यवहारेषु प्रशंसामाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! या उरु ज्रयो रश्मयो न भद्रा गवां सर्गाः प्रत्यदृक्षत यथोषास्ता आऽप्रास्तथा स्त्री भवेत् ॥५॥
पदार्थः
(प्रति) (भद्राः) कल्याणकर्यः (अदृक्षत) दृश्यन्ते (गवाम्) पृथिवीनाम् (सर्गाः) सृष्टयः (न) इव (रश्मयः) किरणाः (आ) (उषाः) प्रभातवेलाः (अप्राः) प्राति व्याप्नोति (उरु) बहु (ज्रयः) अतितेजोमय ॥५॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । याः स्त्रियो रश्मिवदुत्तमान् व्यवहारान् प्रकाशयन्ति ताः सततं कल्याणाय कुलोन्नतिकर्य्यो जायन्ते ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब स्त्रियों की उत्तम व्यवहारों में प्रशंसा कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (उरु) बहुत (ज्रयः) अत्यन्त तेजःस्वरूप मण्डल को (रश्मयः) किरणों के (न) सदृश (भद्राः) कल्याण करनेवाली (गवाम्) पृथिवियों की (सर्गाः) सृष्टियाँ, रचना (प्रति, अदृक्षत) प्रति समय देखी जाती हैं जैसे (उषाः) प्रभातवेला उनको (आ, अप्राः) व्याप्त होती है, वैसे स्त्री हो ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो स्त्रियाँ किरणों के समान उत्तम व्यवहारों का प्रकाश कराती हैं, वे निरन्तर कल्याण के लिये कुल की उन्नति करनेवाली होती हैं ॥५॥
विषय
इन्द्रियों का निर्माण-ज्ञानरश्मियाँ व तेज
पदार्थ
[१] इन उषाकालों में (भद्रा:) = कल्याणकर (गवां सर्गाः न) = इन्द्रियों के निर्माण की तरह (रश्मय:) = ज्ञानरश्मियाँ (प्रति अदृक्षत) = प्रतिदिन दृष्टिगोचर होती हैं। उषाकाल के जागरण से इन्द्रियों का निर्माण उत्तम होता है, इन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है और हमारी ज्ञानरश्मियों का विकास होता है। [२] (उषः) = यह उषावेला (उरु ज्रयः) = विशाल तेज को (आ अप्रा:) = हमारे जीवन में समन्तात् भरती है। इस समय सोये हुए पुरुषों के तेज को सूर्य हर लेता है 'उद्यन सूर्य इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे' ।
भावार्थ
भावार्थ– उषाकाल का जागरण [क] इन्द्रियों का उत्तम निर्माण करता है, [ख] ज्ञानरश्मियों को प्राप्त कराता है और [ग] हमारे में तेजस्विता को भरता है -
विषय
पक्षान्तर में—उषा, तीव्र ताप शक्ति का वर्णन।
भावार्थ
जब (उषाः उरु-ज्रयः आ अप्राः) प्रभात वेला, उषा बहुत तेज को पूर्ण करती है तब जिस प्रकार (भद्राः गवां सर्गाः न) सुखदायिनी, कल्याणकारिणी गौओं वा वाणियों की रचना के तुल्य (रश्मयः प्रति अदृक्षत) रश्मियें देखने में आती हैं उसी प्रकार जब, (उषा) पति की प्रिया, कमनीय गुणों से युक्त स्त्री (उरु) बहुत (ज्रयः) तेज, वीर्य को (आ अप्राः) आदरपूर्वक धारण कर लेती है तब (गवां) जंगम सन्तानों की (सर्गाः) नाना सृष्टियां भी (रश्मयः न) उषाकी किरणों के तुल्य ही (भद्राः) सुखदायिनी, कल्याण गुण से युक्त (प्रति अदृक्षत) देखी जाती हैं। पति पत्नी के प्रेमपूर्वक निषेक द्वारा गर्भ आहित होने पर सन्तान उज्वल गुणयुक्त, उत्तम होती हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्द:- १, २, ३, ४, ६ निचृद्गायत्री । ५, ७ गायत्री ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या स्त्रिया किरणांप्रमाणे उत्तम व्यवहार करतात त्या निरंतर कल्याणासाठी कुलाची उन्नती करणाऱ्या असतात. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The bright and blessed light rays of the dawn appear moving like herds of cows, like showers of solar energy and like clusters of galaxies: the refulgent dawns filling the wide spaces with light and splendour.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
In the praise of women in good dealings.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! various objects of the world are seen which are like the resplendent rays of the sun pervaded by the dawn. An ideal woman should be like that.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those women who illuminate good dealings like the rays of the sun always promote the reputation of their family for its welfare.
Foot Notes
(सर्गा:) सृष्त्यः = Creations, created objects. (ज्त्रयः:) अतितेजोमयाः = Resplendent.
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