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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 30/ मन्त्र 14
    ऋषिः - बभ्रु रात्रेयः देवता - इन्द्र ऋणञ्चयश्च छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    औच्छ॒त्सा रात्री॒ परि॑तक्म्या॒ याँ ऋ॑णंच॒ये राज॑नि रु॒शमा॑नाम्। अत्यो॒ न वा॒जी र॒घुर॒ज्यमा॑नो ब॒भ्रुश्च॒त्वार्य॑सनत्स॒हस्रा॑ ॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    औच्छ॑त् । सा । रात्री॑ । परि॑ऽतक्म्या । या । ऋ॒ण॒म्ऽच॒ये । राज॑नि । रु॒शमा॑नाम् । अत्यः॑ । न । वा॒जी । र॒घुः । अ॒ज्यमा॑नः । ब॒भ्रुः । च॒त्वारि॑ । अ॒स॒न॒त् । स॒हस्रा॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    औच्छत्सा रात्री परितक्म्या याँ ऋणंचये राजनि रुशमानाम्। अत्यो न वाजी रघुरज्यमानो बभ्रुश्चत्वार्यसनत्सहस्रा ॥१४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    औच्छत्। साः। रात्री। परिऽतक्म्या। या। ऋणम्ऽचये। राजनि। रुशमानाम्। अत्यः। न। वाजी। रघुः। अज्यमानाः। बभ्रुः। चत्वारि। असनत्। सहस्रा ॥१४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 14
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! या रुशमानामृणञ्चये राजनि रघुरज्यमानो बभ्रुरत्यो वाजी न चत्वारि सहस्रासनत् सा परितक्म्या रात्री सर्वानौच्छदिति विजानन्तु ॥१४॥

    पदार्थः

    (औच्छत्) निवासयति (सा) (रात्री) (परितक्म्या) आनन्दप्रदा (या) (ऋणञ्चये) ऋणं चिनोति यस्मात्तस्मिन् (राजनि) (रुशमानाम्) हिंसकमन्त्रीणाम् (अत्यः) अतति मार्गं व्याप्नोति सः (न) इव (वाजी) वेगवान् (रघुः) लघुः (अज्यमानः) चाल्यमानः (बभ्रुः) धारकः पोषको वा (चत्वारि) (असनत्) विभजति (सहस्रा) सहस्राणि ॥१४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यूयं रात्रिदिनकृत्यानि विज्ञाय स्वयमनुष्ठाय सुपरीक्ष्य राजादिभ्यः उपदिशत यत एते सर्वे सुखिनः स्युर्यथा सद्योगाम्यश्वो धावति तथैवाऽहर्निशं धावतीति विज्ञेयम् ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (या) जो (रुशमानाम्) हिंसा करनेवाले मन्त्रियों के (ऋणञ्चये) ऋण को इकट्ठा करता है, जिससे उस (राजनि) राजा में (रघुः) छोटा (अज्यमानः) चलाया गया (बभ्रुः) धारण वा पोषण करनेवाले और (अत्यः) मार्ग को व्याप्त होनेवाले (वाजी) वेगयुक्त के (न) सदृश (चत्वारि) चार (सहस्रा) सहस्रों का (असनत्) विभाग करता है (सा) वह (परितक्म्या) आनन्द देनेवाली (रात्री) रात्री सम्पूर्णों को (औच्छत्) निवास देती है, यह जानो ॥१४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे विद्वानो ! आप लोग रात्रि और दिन के कृत्यों को जान कर और स्वयं करके, उत्तम परीक्षा करके राजा आदिकों के लिये उन कृत्यों का उपदेश दीजिये, जिससे ये सब सुखी हों और जैसे शीघ्र चलनेवाला घोड़ा दौड़ता है, वैसे ही दिन और रात्रि व्यतीत होता है, यह जानना चाहिये ॥१४॥

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    विषय

    सूर्यवत् राजा का राष्ट्र भोग ।

    भावार्थ

    भा०- ( रुशमानां ) शत्रुनाशकारी वीर पुरुषों को ( ऋणञ्चये राजनि ) धन संग्रही राजा के रहते हुए ( या ) जो प्रजा ( परितक्म्यायां ) सब प्रकार के आनन्द प्रमोदों से पूर्ण होती है ( सा ) वह (रात्री ) रात्रि के समान सुखदायक होकर भी ( औच्छत् ) सूर्य से रात्रिवत् ही और अधिक प्रकाशित हो जाती है । ( वाजी अत्यः न ) वेगवान् अश्ववत् सूर्य के तुल्य ही वह राजा ऐश्वर्यवान् और सबको अति क्रमण करके ( रघुः ) वेग से उन्नति-पथ पर जाने वाला ( बभ्रुः ) प्रजा का धारक पोषक और ( अज्यमानः ) स्वयं प्रकाशित होकर ( चत्वारि सहस्रा ) चारों सहस्रों भूमियों, ऐश्वर्यों या अध्यक्षों को सहस्रों किरणों को सूर्यवत् (असनत् ) उपभोग करता है, उनपर अधिपति होकर रहता है |

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बभ्रुरात्रेय ऋषिः ॥ इन्द्र ऋणञ्चयश्च देवता ॥ छन्दः–१,५, ८, ९ निचृत्त्रिटुप् । १० विराट् त्रिष्टुप् । ७, ११, १२ त्रिष्टुप् । ६, १३ पंक्तिः । १४ स्वराट् पंक्तिः । १५ भुरिक् पंक्तिः ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    तीन रात्रियों का बीतना

    पदार्थ

    १. 'प्रकृति जीव परमात्मा' के ज्ञान का अभाव ही रात्रि है। इन तीन रात्रियों के बीतने तक विद्यार्थी आचार्य कुल में ही रहता है। ये आचार्य 'ऋणञ्चय' है - शक्तिकणों का शरीर में संचार करनेवाले ऊर्ध्वरेता पुरुष हैं। अन्य उपाध्याय भी वासनाओं का संहार करनेवाले 'रुशम' हैं। ये ऋणञ्चय रुशमों के राजा ही है, सब उपाध्यायों में आचार्य की अद्भुत ही शोभा है - वे अपनी ज्ञानदीप्ति से चमकते प्रतीत होते हैं। सा (परितक्म्या रात्री) = वह चारों ओर से अन्धकार से कांपनेवाली रात (औच्छत्) = आज समाप्त हो गई है [= विवासित हो गई है], (यान्) = जिस रात्रि में मैंने (रुशमानाम्) = रुशमों के अतीत वासनाओंवाले उपाध्यायवाले उपाध्यायों राजनि राजा ऋणञ्चये = ऊर्ध्वरेता आचार्य के समीप रहकर बिताया है। इन्होंने ही अपने ज्ञान के प्रकाश से मेरी अज्ञानान्धकारवाली रात्रि को समाप्त किया है । २. आज यह विद्यार्थी (अत्यः न) = सततगामी अश्व के समान (वाजी) = शक्तिशाली बना है। (रघुः) = खूब तीव्र गतिवाला - आलस्य..... स्फूर्तिमय जीवनवाला हुआ है। (अज्यमानः) = विद्या आदि गुणों से इसका जीवन अलंकृत हुआ है। (बभ्रुः) = यह भरणपोषण में समर्थ बना है। क्योंकि इसने (चत्वारि सहस्त्रा) = इन चार हज़ार यजु व साम वाणियों का (सनत्) = सम्भजन किया है। यह यज्ञों व उपासना के द्वारा सचमुच 'घर का सुन्दर भरण कर पाएगा' ।

    भावार्थ

    भावार्थ – अज्ञानान्धकार दूर होने तक आचार्यकुल में रहकर यह विद्यार्थी स्फूर्तिमय गुणालंकृत जीवनवाला बना है। यह घर का उत्तमता से भरण करनेवाला 'बभ्रु' क्यों न बनेगा? इसने यज्ञों व उपासना का पाठ पढ़ा है। ये यज्ञ व उपासना इसके घर को उत्तम बनाएँगे ही।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! तुम्ही रात्र व दिवस यांचे कार्य जाणून स्वतः अनुष्ठान करून चांगले परीक्षण करून राजा इत्यादींना उपदेश करा. ज्यामुळे ते सुखी व्हावेत व जसा शीघ्र चालणारा घोडा पळतो तसेच दिवस व रात्र व्यतीत होतात, हे जाणले पाहिजे. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When the fugitive night of rest and peace in the home departs, having made up the want of light at the rise of dawn, blest and beautiful, collecting and bearing nature’s gifts, then babhru, the crimson sun, sustainer of life, moving like a flying horse at instant speed, showers four thousand gifts of energy and intelligence and the creative yajaka receives and shares the gifts on and from the vedi.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the enlightened persons are narrated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should know that joy-giving night causes all to go to the dwellings which distributes four thousands (many) objects under a king (administrators) pays off the debts of the violent (strict discipline-sponsoring). In fact, he administers, like a light and speedy horse driven by a rider, bearer and sustainer of the person.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! you should know the duties that are to be discharged day and night, and discharge them well. And having experimented assignments and, duties with them satisfactorily, ask the kings and others about the progress made with regard to them, so that they may all be happy. The cycle of day and night runs on like a speedy horse. (Distribution of 4000 objects under a king needs further research. Ed ).

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