ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 39/ मन्त्र 2
यन्मन्य॑से॒ वरे॑ण्य॒मिन्द्र॑ द्यु॒क्षं तदा भ॑र। वि॒द्याम॒ तस्य॑ ते व॒यमकू॑पारस्य दा॒वने॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठयत् । मन्य॑से । वरे॑ण्यम् । इन्द्र॑ । द्यु॒क्षम् । तत् । आ । भ॒र॒ । वि॒द्याम॑ । तस्य॑ । ते॒ । व॒यम् । अकू॑पारस्य । दा॒वने॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यन्मन्यसे वरेण्यमिन्द्र द्युक्षं तदा भर। विद्याम तस्य ते वयमकूपारस्य दावने ॥२॥
स्वर रहित पद पाठयत्। मन्यसे। वरेण्यम्। इन्द्र। द्युक्षम्। तत्। आ। भर। विद्याम। तस्य। ते। वयम्। अकूपारस्य। दावने ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 39; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! त्वं यद्वरेण्यं द्युक्षं मन्यसे तदस्मभ्यमा भर यतोऽकूपारस्य तस्य ते दावने वयं प्रयत्नं विद्याम ॥२॥
पदार्थः
(यत्) (मन्यसे) (वरेण्यम्) वरितुमर्हम् (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त (द्युक्षम्) धर्मविद्याप्रकाशयुक्तम् (तत्) (आ) (भर) (विद्याम) जानीयाम (तस्य) (ते) (वयम्) (अकूपारस्य) अकुत्सितः पारो यस्य तस्य (दावने) दात्रे ॥२॥
भावार्थः
हे विद्वंस्त्वं यद्यदुत्तमं जानासि तदस्मान् प्रत्युपदिश येन वयं तव राजकार्य्यमलंकर्त्तुं शक्नुयाम ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त ! आप (यत्) जिस (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य (द्युक्षम्) धर्म्म और विद्या के प्रकाश से युक्त को (मन्यसे) मानते हो (तत्) उसको हम लोगों के लिये (आ, भर) धारण कीजिये जिससे (अकूपारस्य) श्रेष्ठ है पार जिनका (तस्य) उन (ते) आपके (दावने) दाता के लिये (वयम्) हम लोग प्रयत्न को (विद्याम) जानें ॥२॥
भावार्थ
हे विद्वन् ! आप जिस-जिस उत्तम विषय को जानते हैं, उसका हम लोगों के प्रति उपदेश कीजिये, जिससे हम लोग आपके राजकार्य्य को पूर्णरूप से करने को समर्थ होवें ॥२॥
विषय
राजा के प्रजा को समृद्ध करने के कर्तव्य । दानशील को उपदेश । सर्वदाता प्रभु । उसकी स्तुति ।
भावार्थ
भा०—हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! राजन् ! प्रभो ! तू ( यत् ) जो (वरेण्यम्) सर्वश्रेष्ठ और उत्तम मार्ग में लेजाने वाला (द्युक्षं) अन्न और धन (मन्यसे) मानता वा जानता हो ( तत् ) वह तू ( आ भर ) लेआ । ( अकूपारस्य तस्य ) जिसका परिणाम बुरा नहीं हो ऐसे वा समुद्रवत् अपार उस धनैश्वर्य को भी ( वयम् ) हम लोग ( ते दावने ) तुझ दाता का ( विद्याम ) जानते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अत्रिर्ऋषिः॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्द:- १ विराडनुष्टुप् । २, ३ निचृदनुष्टुप् । ४ स्वराडुष्णिक् । ५ बृहती ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
द्युक्ष [दीप्त सोम]
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आप (यत्) = जिस (द्युक्षम्) = दीप्त सोम को (वरेण्यम्) = वरणीय व श्रेष्ठ मन्यसे मानते हैं, (तद् आभर) = उसे हमारे लिये प्राप्त कराइये । [२] (वयम्) = हम (तस्य) = उस (अकूपारस्य) = अकुत्सित पारवाले, अत्यन्त प्रशस्त परिणामवाले, इस सोम के (ते दावने) = आपसे दिये जानेवाले दान में विद्याम- हों आपकी कृपा से हमें यह सोम प्राप्त हो, जो कि हमारे जीवन में सब शुभ परिणामों को पैदा करता है और जिस सोम के कारण हमारा निवास [क्षि] सदा ज्ञानदीप्ति [द्यु] में होता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारे जीवन में सब शुभ परिणामों को पैदा करता है, यह अकूपार है, अकुत्सित पार वाला, शुभ परिणामवाला ।
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वाना! तू जे जे उत्तम विषय जाणतोस त्यांचा आम्हाला उपदेश कर. ज्यामुळे आम्ही राज्यकार्य करण्यास समर्थ होऊ शकू. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, whatever you think is worthy of choice, bear and bring that brilliant gift of heavenly quality. Let us receive that and let us know that as a blessing of your unbounded generosity worthy to be received and justified with gratitude.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a learned person are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O endowed with abundant wealth ! whatever you regard as desirable and full of the light of Dharma (righteousness) and Vidya (knowledge), bestow it upon us. Let us possess this unlimited wealth to become like its donor and always try to please you.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O learned king ! whatever you take to be good O us, teach it, so that we may be able to carry on your work of administration properly.
Foot Notes
.(दयुक्षम् ) धर्मविद्याप्रकाशयुक्तम् (दयुक्षम् ) दिवि-क्षिपति निवसतीति । अतो दयुक्षम् -विद्याप्रकाशयुक्तम् । अन्नमिति सायणचार्यादयोऽन्येभाष्यकाराः । = Endowed with the light of Dharma and Vidya (righteousness and knowledge.) (अकूपारस्य) अकुत्सितः पारो यस्य तस्य | अकूपारः समद्रः । = Coran of virtues (दावने ) दात्रे । = For the donor.
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