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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 51/ मन्त्र 8
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नम॒ इदु॒ग्रं नम॒ आ वि॑वासे॒ नमो॑ दाधार पृथि॒वीमु॒त द्याम्। नमो॑ दे॒वेभ्यो॒ नम॑ ईश एषां कृ॒तं चि॒देनो॒ नम॒सा वि॑वासे ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑ । इत् । उ॒ग्रम् । नमः॑ । आ । वि॒वा॒से॒ । नमः॑ । दा॒धा॒र॒ । पृ॒थि॒वीम् । उ॒त । द्याम् । नमः॑ । दे॒वेभ्यः॑ । नमः॑ । ई॒शे॒ । ए॒षा॒म् । कृ॒तम् । चि॒त् । एनः॑ । न॒म॒सा । आ । वि॒वा॒से॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नम इदुग्रं नम आ विवासे नमो दाधार पृथिवीमुत द्याम्। नमो देवेभ्यो नम ईश एषां कृतं चिदेनो नमसा विवासे ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। इत्। उग्रम्। नमः। आ। विवासे। नमः। दाधार। पृथिवीम्। उत। द्याम्। नमः। देवेभ्यः। नमः। ईशे। एषाम्। कृतम्। चित्। एनः। नमसा। आ। विवासे ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 51; मन्त्र » 8
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्याः सदैव नम्रा भवेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यन्नमः पृथिवीमुत द्यां दाधार तदहमुग्रं नम आ विवासे देवेभ्यो नम आ विवासे नमो नम ईशे तेन नमसैषां कृतं चिदेन इदा विवासे ॥८॥

    पदार्थः

    (नमः) सत्करणीयम् (इत्) (उग्रम्) तीव्रम् (नमः) अन्नम् (आ) (विवासे) सेवे (नमः) नमस्करणीयम्ब्रह्म (दाधार) दधाति (पृथिवीम्) भूमिम् (उत) अपि (द्याम्) सूर्य्यम् (नमः) (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (नमः) (ईशे) ईष्ट इच्छामि (एषाम्) (कृतम्) (चित्) अपि (एनः) (नमसा) सत्कारेण (आ) (विवासे) ॥८॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! सर्वैर्नमस्कणीयस्य परमेश्वरस्य सहायेन वयं सत्क्रियां धृत्वा दुष्टतां निवार्य्य विद्वद्भ्यो हितं सम्पाद्य सर्वोपकारं सदैव कुर्य्याम ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य सदैव नम्र हों, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (नमः) नमस्कार करने योग्य ब्रह्म (पृथिवीम्) भूमि (उत) और (द्याम्) सूर्य को (दाधार) धारण करते उस (उग्रम्) तीव्र (नमः) नमस्कार करने योग्य ब्रह्म का मैं (आ, विवासे) सेवन करूँ (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (नमः) अन्न की सेवा करूँ (नमः) सत्कार वा (नमः) अन्न की (ईशे) इच्छा करूँ उस (नमसा) सत्कार से (एषाम्) इनके (कृतम्) किये उत्तम कर्म (चित्) और (एनः) अनुत्तम कर्म का (इत्) ही (आ, निवासे) योग्य सेवन करूँ ॥८॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! सब से नमस्कार करने योग्य परमेश्वर के सहायरूप से हम लोग उत्तम क्रिया को धारण कर और दुष्टता को निवार विद्वानों के लिये हित सिद्ध कर सबका उपकार सदैव करें ॥८॥

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    विषय

    पूज्यों का आदर ।

    भावार्थ

    ( नमः इत्) ‘नमस्’ अर्थात् दुष्टों और सज्जनों का नमाने का उपाय बड़ा ही ( उग्रं ) बलशाली होना उचित है। मैं उसी ( नमः ) विनय के साधन, दण्ड बल, या नमस्कार योग्य परब्रह्म का (आ विवासे) सेवन करूं । ( नमः ) वही सबको वश करने वाला बल, सर्वनमस्य ) परब्रह्म ही ( पृथिवीम् उत द्याम् दाधार ) पृथिवी और सूर्य दोनों को धारण कर रहा है । ( देवेभ्यः नमः ) विद्वानों, व्यवहारकर्त्ता, विजेताओं और द्यूतादि खेलने वाले लोग सबके लिये ( नमः ) उनको नमाने या वश करने वाला यह वज्र और विनय आदर का व्यवहार ही है । ( नमः ) वह विनयशाली दण्ड या आदर ही ( एषां ) इन सब पर ( ईशे ) प्रभुत्व करता है । इनके ( कृतं चित् एनः ) किये हुए पाप को भी मैं ( नमसा ) विनय से वा दण्ड से ही ( आ विवासे ) दूर करने में समर्थ होऊं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋजिश्वा ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः – १, २, ३, ५, ७, १०, ११, १२ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप् । ४, ६, ९ स्वराट् पंक्ति: । १३, १४, १५ निचृदुष्णिक् । १६ निचृदनुष्टुप् ।। षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    नमन की महिमा

    पदार्थ

    [१] (नम इत्) = नमन ही (उग्रम्) = अत्यन्त तेजस्वी है। प्रभु के प्रति नमन उपासक को तेजस्विता प्रदान करता है (नमः आविवासे) = मैं इस नमन का ही पूजन करता हूँ, इस नमन को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझता हूँ । (नमः) = नमन ही (पृथिवीम्) = पृथिवी को (उत) = और (द्याम्) = द्युलोक को (दाधार) = धारण करता है। प्रभु पूजन ही संसार का धारक है, इससे ही हमारे शरीर व मस्तिष्क [पृथिवीलोक व द्युलोक] ठीक बने रहते हैं। [२] (देवेभ्यः) = दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिये (नमः) = मैं नमस्कार करता हूँ। (नमः) = नमन ही (एषाम्) = इन देवों का (ईशे) = ईश है। नमन ही इन सब देवों को हमारे जीवन में लानेवाला है। नमसा नमन के द्वारा (कृतं चित् एन:) = किये हुए पापों को भी (आविवासे) = [परिवर्जयामि] अपने से दूर करता हूँ, विनष्ट करता हूँ। जो पाप आदत के रूप में परिवर्तित हो गये थे उन्हें भी नमन के द्वारा अपने से दूर कर पाता हूँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु नमन हमें तेजस्वी बनाता है। दिव्यगुणों को यह नमन प्राप्त कराता है और पाप प्रवृत्ति को विनष्ट करता है |

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! सर्वांना वंदनीय असणाऱ्या परमेश्वराच्या साह्याने आम्ही उत्तम क्रिया करावी. दुष्टतेचे निवारण करून विद्वानांचे हित करावे. सदैव सर्वांवर उपकार करावा. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Namas, the thunder of omnipotence and universal law, is mighty. Reverence on the human plane too has power. I respect law and reverence. Law and reverence sustain the earth and the sun. I offer reverence to the nobilities and the divinities. The power of the Divine and reverence for life rule the actions, good as well as evil, of all these people. I accept the power and value reverence with humility and submission to the divine dispensation.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Men should always be humble-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! I adore and serve that God who is worthy of salutation and upholds the earth and the sun. I bow before that Almighty God. I bow before the enlightened persons and serve them. I desire to be humble, with the help of that God, who, is ever to be saluted or adored. I throw away (in future) even the sin that has been committed (by ignorance or oversight).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Let us always do good to all by the help of God, who is worthy of reverential salutation, upholding good deeds removing wickedness and being benevolent to the enlightened persons.

    Foot Notes

    (नमः) नमस्करणीयम्ब्रह्म । गम-प्रहृत्वे (भ्वा.) । = God before whom all must bow. (विवासे) सेवे । विवासति परिचरण कर्मा (NG 3, 5) परिचरमं सेवा । = I serve.

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