Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 36 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 36/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ वात॑स्य॒ ध्रज॑तो रन्त इ॒त्या अपी॑पयन्त धे॒नवो॒ न सूदाः॑। म॒हो दि॒वः सद॑ने॒ जाय॑मा॒नोऽचि॑क्रदद्वृष॒भः सस्मि॒न्नूध॑न् ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ वात॑स्य । ध्रज॑तः । र॒न्ते॒ । इ॒त्याः । अपी॑पयन्त । धे॒नवः॑ । न । सूदाः॑ । म॒हः । दि॒वः । सद॑ने । जाय॑मानः । अचि॑क्रदत् । वृ॒ष॒भः । सस्मि॑न् । ऊध॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ वातस्य ध्रजतो रन्त इत्या अपीपयन्त धेनवो न सूदाः। महो दिवः सदने जायमानोऽचिक्रदद्वृषभः सस्मिन्नूधन् ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ वातस्य। ध्रजतः। रन्ते। इत्याः। अपीपयन्त। धेनवः। न। सूदाः। महः। दिवः। सदने। जायमानः। अचिक्रदत्। वृषभः। सस्मिन्। ऊधन् ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 36; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यो महो दिवस्सदने जायमानो वृषभः सस्मिन्नूधन्नचिक्रदत् यस्मिन् ध्रजतो वातस्य सूदा न धेनव इत्या रन्ते सर्वानापीपयन्त तं सूर्यं संयुक्त्या सम्प्रयोजयन्तु ॥३॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (वातस्य) वायोः (ध्रजतः) गच्छतः (रन्ते) रमते (इत्याः) एतुं प्राप्तुं योग्याः (अपीपयन्त) प्याययन्ति (धेनवः) गावः (न) इव (सूदाः) पाककर्त्तारः (महः) महतः (दिवः) प्रकाशस्य (सदने) सीदन्ति यस्मिंस्तस्मिन् (जायमानः) उत्पद्यमानः (अचिक्रदत्) आह्वयति (वृषभः) बलिष्ठः (सस्मिन्) अन्तरिक्षे (ऊधन्) ऊधन्युषसि ॥३॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यथा प्रकाशवता जायमानो रविरन्तरिक्षे प्रकाशते यस्मिन्नन्तरिक्षे सर्वे प्राणिनो रमन्ते तस्मिन्नेव सर्वे सुखमश्नुवते ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (महः) महान् (दिवः) प्रकाश के (सदने) घर में (जायमानः) उत्पन्न होता हुआ (वृषभः) बलिष्ठ (सस्मिन्) अन्तरिक्ष में और (ऊधन्) उषाकाल में (अचिक्रदत्) आह्वान करता जिस में (ध्रजतः) जाते हुए (वातस्य) पवन के सम्बन्धी (सूदाः) पाप करनेवालों के (न) समान (धेनवः) गायें (इत्याः) जो कि पाने योग्य हैं उन को (रन्ते) रमता और सब को (आ, अपीपयन्त) सब ओर से बढ़ाता है, उस सूर्य को युक्ति के साथ उत्तम प्रयोग में लाओ ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जैसे प्रकाशमान पदार्थों में उत्पन्न हुआ रवि अन्तरिक्ष में प्रकाशित होता है वा जिस अन्तरिक्ष में सब प्राणी रमते हैं, उसी में सब सुख को प्राप्त होते हैं ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    श्रेष्ठ पुरुष का कर्त्तव्य उत्तम उपदेष्टा और न्यायी शासक का वरण

    भावार्थ

    ( वृषभः ) श्रेष्ठ बलवान् पुरुष ( सस्मिन् ) अन्तरिक्ष में मेघ के समान ( ऊधन् ) उषाकाल में सूर्य के समान तेजस्वी होकर ( जायमानः ) प्रसिद्ध होकर ( महः दिवः ) बड़े भारी प्रकाश, ज्ञान या लोक व्यवहार के ( सदने ) स्थान, राजसभा, लोकसभा और गुरु-गृह में ( अचिक्रदत् ) प्राप्त हो, अन्यों को उपदेश करे। (वातस्य धजतः इत्याः सूदाः न रन्ते ) वेग से जाते हुए वायु की गतियों में जिस प्रकार वर्षाशील मेघ विहरते हैं उसी प्रकार ( वातस्य ) वायु के समान बलवान् (घ्रजतः ) वेग से जाते हुए उस सेनापति के (इत्या:) गमनों को प्राप्त ( सूदा: ) उत्तम करप्रद प्रजाएं ( धेनवः ) गौओं के समान ( रन्ते ) सुखी होती हैं और ( अपीययन्त ) आप बढ़तीं और राजा को भी समृद्ध करती हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि: ।। विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः – २ त्रिष्टुप् । ३, ४, ६ निचृत्त्रिष्टुप् । ८, ९ विराट् त्रिष्टुप् । ५ पंक्तिः । १, ७ भुरिक् पंक्तिः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजसभाओं में उपदेश

    पदार्थ

    पदार्थ- (वृषभः) = बलवान् पुरुष (सस्मिन् ऊधन्) = अन्तरिक्ष में मेघ-तुल्य, उषाकाल में सूर्यतुल्य तेजस्वी होकर (जायमानः) = प्रसिद्ध होकर (महः दिवः) = बड़े भारी प्रकाश, ज्ञान या लोकव्यवहार के (सदने) = स्थान, राजसभा और गुरु-गृह में (अचिक्रदत्) = प्राप्त हो । (वातस्य ध्रुजतः इत्याः सूदाः न रन्ते) = वेग से जाते हुए वायु की गतियों में जैसे वर्षाशील मेघ विहरते हैं वैसे (वातस्य) = वायु तुल्य बलवान् ध्रजतः वेग से जाते हुए सेनापति के (इत्या:) = गमनों को प्राप्त (सूदाः) = उत्तम करप्रद प्रजाएँ (धेनवः) = गौओं के समान (रन्ते) = सुखी होती हैं, वे (अपीपयन्त) = आप बढ़तीं और राजा को भी बढ़ाती हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूर्य के समान तेजस्वी बलवान् राजा प्रतिष्ठित होकर राजसभा में लोकव्यवहार का उपदेश-निर्देश करे कि सेनापति सेना को वायु के समान गतिशील व मेघ के समान बलवान् बनावे तथा प्रजा राष्ट्र की प्रगति हेतु समय पर कर प्रदान करे। इससे राजा तथा प्रजा दोनों समृद्ध होते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा प्रकाशमय पदार्थात उत्पन्न झालेला सूर्य अंतरिक्षात प्रकाशित होतो किंवा त्या अंतरिक्षात सर्व प्राणी रमतात व त्यातच सर्व सुखाला प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The currents of sportive wind play around like abundant cows yielding milk, and the mighty cloud laden with vapour, bom of the great regions of heaven, roars in its house of mid skies.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top