ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 36/ मन्त्र 4
गि॒रा य ए॒ता यु॒नज॒द्धरी॑ त॒ इन्द्र॑ प्रि॒या सु॒रथा॑ शूर धा॒यू। प्र यो म॒न्युं रिरि॑क्षतो मि॒नात्या सु॒क्रतु॑मर्य॒मणं॑ ववृत्याम् ॥४॥
स्वर सहित पद पाठगि॒रा । यः । ए॒ता । यु॒नज॑त् । हरी॒ इति॑ । ते॒ । इन्द्र॑ । प्रि॒या । सु॒ऽरथा॑ । शू॒र॒ । धा॒यू इति॑ । प्र । यः । म॒न्युम् । रिरि॑क्षतः । मि॒नाति॑ । आ । सु॒ऽक्रतु॑म् । अ॒र्य॒मण॑म् । व॒वृ॒त्या॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
गिरा य एता युनजद्धरी त इन्द्र प्रिया सुरथा शूर धायू। प्र यो मन्युं रिरिक्षतो मिनात्या सुक्रतुमर्यमणं ववृत्याम् ॥४॥
स्वर रहित पद पाठगिरा। यः। एता। युनजत्। हरी इति। ते। इन्द्र। प्रिया। सुऽरथा। शूर। धायू इति। प्र। यः। मन्युम्। रिरिक्षतः। मिनाति। आ। सुऽक्रतुम्। अर्यमणम्। ववृत्याम् ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 36; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्स राजा कं सत्कृत्य रक्षेदित्याह ॥
अन्वयः
हे शूरेन्द्र ! यस्त एता सुरथा धायू प्रिया हरी गिरा युनजत् यो रिरिक्षतो मन्युं प्रमिणाति तं सुक्रतुमर्यमणमहमा ववृत्याम् ॥४॥
पदार्थः
(गिरा) वाण्या (यः) (एता) एतौ (युनजत्) युनक्ति (हरी) अश्वौ (ते) तव (इन्द्र) राजन् (प्रिया) कमनीयौ (सुरथा) सुष्ठु रथो ययोस्तौ (शूर) शत्रूणां हिंसक (धायू) धारकौ (प्र) (यः) (मन्युम्) क्रोधम् (रिरिक्षतः) हन्तुमिच्छतो दुष्टाच्छत्रोः (मिनाति) हिनस्ति (आ) (सुक्रतुम्) प्रशस्तप्रज्ञम् (अर्यमणम्) न्यायकारिणम् (ववृत्याम्) वर्तयेयम् ॥४॥
भावार्थः
हे राजन् ! ये यानचालने कुशला राजप्रियाः विद्वांसः स्युस्ताँस्त्वं न्यायकारिणः कुर्याः ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह राजा किस का सत्कार करके और उसकी रक्षा करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (शूर) शत्रुओं की हिंसा करनेवाले (इन्द्र) राजा ! (यः) जो (ते) आपके (एता) यह दोनों (सुरथा) सुन्दर रथवाले (धायू) धारणकर्त्ता (प्रिया) मनोहर (हरी) घोड़ों को (गिरा) वाणी से (युनजत्) युक्त करता है वा (यः) जो (रिरिक्षतः) हिंसा करने की इच्छा किये हुए दुष्ट शत्रु से (मन्युम्) क्रोध को (प्र, मिनाति) नष्ट करता है उस (सुक्रतुम्) प्रशंसित बुद्धियुक्त (अर्यमणम्) न्यायकारी सज्जन को मैं (आ, ववृत्याम्) अच्छे प्रकार वर्तूँ ॥४॥
भावार्थ
हे राजन् ! जो रथ आदि के चलाने में कुशल, राजप्रिय, विद्वान् हों, उनको आप न्यायकारी करो ॥४॥
विषय
उसको अधिकार
भावार्थ
हे ( शूर ) शूरवीर ! हे ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवन् ! ( यः ) जो ( ते ) तेरे ( एता ) इन दोनों ( धायू ) धारक पोषक ( सु-रथा ) उत्तम रथ वाले ( प्रिया ) प्रिय ( हरी ) अश्वों के समान बलवान् मुख्य नायक वा स्त्री पुरुषों को ( गिरा ) वेद वाणी से ( युनजत्) सन्मार्ग में प्रवृत्त करता है और ( पः ) जो (रिथतः ) हिंसक जनों को ( प्र मिनाति ) दण्डित करता है उस ( मन्युम् ) मननशील ( सु-क्रतुम् ) उत्तम ज्ञानवान् कर्मवान् ( अर्यमणं ) न्यायकारी, शत्रुनियामक पुरुष को मैं ( आ ववृत्याम्) प्राप्त करूं । अध्यात्म में—हे इन्द्र ! आत्मन् ! प्रभो ! जो योगी तेरे प्रति देह में स्थित, प्राण अपान रूप घोड़ों को योगद्वारा युक्त करता है जो मारने वाले के प्रति भी अपने मन्यु, क्रोध को मारता है अक्रोधी, क्षमावान् रहता है उस उत्तमकर्मा काम क्रोधादि, अन्तः-शत्रु के विजयी को मैं प्राप्त करूं।
टिप्पणी
missing
विषय
हिंसकजनों को राजा दण्ड दे
पदार्थ
पदार्थ- हे शूर वीर! हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् ! (यः) = जो (ते) = तेरे (एता) = इन दोनों (धायू) = धारक (सु-रथाः) = उत्तम रथवाले (प्रिया) = प्रिय (हरी) = अश्वों के समान बलवान् मुख्य नायक वा स्त्री पुरुषों को (गिरा) = वेद-वाणी से (युनजत्) = सन्मार्ग में प्रवृत्त करता है और (यः) = जो (रिरिक्षतः) = हिंसक जनों को (प्र मिनाति) = दण्डित करता है उस (मन्युम्) = मननशील (सु-क्रतुम्) = उत्तम ज्ञानवान् (अर्यमणं) = न्यायकारी पुरुष को मैं (आ ववृत्याम्) = प्राप्त करूँ।
भावार्थ
भावार्थ- मननशील, कर्मशील, न्यायकारी राजा ऐश्वर्ययुक्त होकर अश्वों के समान बलवान् नायक को नियुक्त करे। वह नायक राष्ट्र में हिंसा फैलानेवाले हिंसक जनों को दण्डित करे। उत्तम विद्वान् राष्ट्र में वेदवाणी का उपदेश करके उन लोगों को सन्मार्ग में प्रवृत्त करे। इस प्रकार से राष्ट्र आतंकवाद से रहित होगा।
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा! जे रथ इत्यादी चालविण्यात कुशल, राजप्रिय, विद्वान असतील तर त्यांच्याशी तू न्यायाने वाग. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, all powerful ruler of the world, I pray, let me come to have the benefit of the power and presence of Aryama, chief power of justice, holy in action, who, with his order and invitation deploys the noble and efficient forces that run the chariot of your social order, who controls and punishes the violent deeds and corrects the violent attitudes of the negative and destructive forces.
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