ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 38/ मन्त्र 4
अ॒भि यं दे॒व्यदि॑तिर्गृ॒णाति॑ स॒वं दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्जु॑षा॒णा। अ॒भि स॒म्राजो॒ वरु॑णो गृणन्त्य॒भि मि॒त्रासो॑ अर्य॒मा स॒जोषाः॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । यम् । दे॒वी । अदि॑तिः । गृ॒णाति॑ । स॒वम् । दे॒वस्य॑ । स॒वि॒तुः । जु॒षा॒णा । अ॒भि । स॒म्ऽराजः॑ । वरु॑णः । गृ॒ण॒न्ति॒ । अ॒भि । मि॒त्रासः॑ । अ॒र्य॒मा । स॒ऽजोषाः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि यं देव्यदितिर्गृणाति सवं देवस्य सवितुर्जुषाणा। अभि सम्राजो वरुणो गृणन्त्यभि मित्रासो अर्यमा सजोषाः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठअभि। यम्। देवी। अदितिः। गृणाति। सवम्। देवस्य। सवितुः। जुषाणा। अभि। सम्ऽराजः। वरुणः। गृणन्ति। अभि। मित्रासः। अर्यमा। सऽजोषाः ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 38; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः कस्य प्रशंसा कार्येत्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्याः सवितुर्देवस्य सवं जुषाणा देव्यदितिर्यमभि गृणाति वरुणस्सजोषा अर्यमा यमभिगृणाति यं मित्रासस्सम्राजोऽभिगृणन्ति तमेव सर्वे सततं स्तुवन्तु ॥४॥
पदार्थः
(यम्) (देवी) विदुषी (अदितिः) माता (गृणाति) (सवम्) प्रसूतं जगत् (देवस्य) सर्वसुखप्रदातुः (सवितुः) प्रेरकस्यान्तर्यामिणः (जुषाणा) सेवमाना (अभि) (सम्राजः) सम्यग्राजमानश्चक्रवर्तिनो राजानः (वरुणः) वरो विद्वान् (गृणन्ति) स्तुवन्ति (अभि) (मित्रासः) सर्वस्य सुहृदः (अर्यमा) न्यायाधीशः (सजोषाः) समानप्रीतिसेवी ॥४॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यूयं तस्यैव प्रशंसनीयस्य परमेश्वरस्यैव स्तुतिं कुरुत यं स्तुत्वा विदुष्यः स्त्रियः राजानो विद्वांसश्चाऽभीष्टं प्राप्नुवन्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को किसकी प्रशंसा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (सवितुः) प्रेरणा देनेवाला अन्तर्यामी (देवस्य) सर्व सुखदाता जगदीश्वर के (सवम्) उत्पन्न किये जगत् की (जुषाणा) सेवा करती हुई (देवी) विदुषी (अदितिः) माता जिस को (अभि, गृणाति) सम्मुख कहती है वा (वरुणः) श्रेष्ठ विद्वान् जन (सजोषाः) समान प्रीति सेवनेवाला (अर्यमा) न्यायाधीश और (मित्रासः) सब के सुहृद् (सम्राजः) अच्छे प्रकार प्रकाशमान चक्रवर्ती राजजन (यम्) जिसकी (अभि, गृणन्ति) सब ओर से स्तुति करते हैं, उसी की सब निरन्तर स्तुति करें ॥४॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! तुम उसी प्रशंसा करने योग्य परमेश्वर की स्तुति करो, जिस की स्तुति करके विदुषी स्त्री राजा और विद्वान् जन चाहा हुआ फल पाते हैं ॥४॥
विषय
परमेश्वर से नाना रक्षा की प्रार्थनाएं ।
भावार्थ
( देवस्य ) सर्व प्रकाशक, सर्व सुखदाता ( सवितुः ) सर्व जगदुत्पादक प्रभु के ( सर्व ) शासन, ऐश्वर्य को (जुषाणा ) सेवन करती हुई ( देवी ) अन्नादि की देने वाली ( अदितिः ) यह पृथिवी, और प्रकृति उत्तम देवी पत्नी के समान ( यम् अभि गृणाति ) जिसका गुणानुवाद करती है । और ( यम् अभि सम्राजः वरुणः ) जिसकी स्तुति श्रेष्ठ पुरुष सम्राट् चक्रवर्ती राजे और ( मित्रासः ) मित्रगण तथा (सजोषाः अर्यमा) न्यायकारी न्यायाधीश ये सब भी समान प्रीतियुक्त होकर करते हैं हे पुरुषो ! ( सः नः चनः धात् ) वह हमें सब अन्न दे और ( पायुभिः नि पातु ) वह नाना साधनों से हमारी रक्षा करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १—६ सविता । ६ सविता भगो वा । ७, ८ वाजिनो देवताः॥ छन्दः-१, ३, ८ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ विराट् त्रिष्टुप् । २, ४,६ स्वराट् पंक्तिः । ७ भुरिक् पंक्तिः ॥ इत्यष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
सबका रक्षक परमेश्वर
पदार्थ
पदार्थ - (देवस्य) = सर्व प्रकाशक, (सवितुः) = जगदुत्पादक प्रभु के (सवम्) = ऐश्वर्य को (जुषाणा) = सेवन करती हुई (देवी) = अन्नादि देनेवाली (अदितिः) = पृथिवी और प्रकृति, पत्नी के समान (यम् अभि गृणाति) = जिसका गुणानुवाद करती है और (यम् अभि सम्राजः वरुणः) = जिसकी स्तुति सम्राट् राजे और (मित्रासः) = मित्रगण तथा (सजोषाः अर्यमा) = न्यायकारी न्यायाधीश ये प्रीतियुक्त होकर करते हैं, हे पुरुषो! (सः नः चनः धात्) = वह हमें अन्न दे और (पायुभिः नि पातु) = रक्षा-साधनों से रक्षा करे।
भावार्थ
भावार्थ- विद्वान् बताते हैं कि यह प्रकृति जिसकी महिमा का बखान करती है, चक्रवर्ती सम्राट् व राजे-महाराजे भी जिसके न्याय में रहकर स्तुति करते हैं। उस अन्न आदि से सबकी रक्षा करनेवाले परमेश्वर का तुम भी गुणगान किया करो।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! तुम्ही प्रशंसा करण्यायोग्य त्याच परमेश्वराची स्तुती करा, ज्याची स्तुती करून विदुषी स्त्री, राजा व विद्वान लोक इच्छित फळ प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The holy mother, divine earth and indestructible nature, all adore lord Savita, enjoying and celebrating the generous lord’s creation. So also do brilliant rulers, men of choice merit, friends of life and humanity, and the lord of justice and dispensation, Varuna, all enjoying and appreciating the lord’s creation, adore and worship him.
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