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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 91 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 91/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - आर्षीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नि॒यु॒वा॒ना नि॒युत॑: स्पा॒र्हवी॑रा॒ इन्द्र॑वायू स॒रथं॑ यातम॒र्वाक् । इ॒दं हि वां॒ प्रभृ॑तं॒ मध्वो॒ अग्र॒मध॑ प्रीणा॒ना वि मु॑मुक्तम॒स्मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि॒ऽयु॒वा॒ना । नि॒ऽयुतः॑ । स्पा॒र्हऽवी॑राः । इन्द्र॑वायू॒ इति॑ । स॒ऽरथ॑म् । या॒त॒म् । अ॒र्वाक् । इ॒दम् । हि । वा॒म् । प्रऽभृ॑तम् । मध्वः॑ । अग्र॑म् । अध॑ । प्री॒णा॒ना । वि । मु॒मु॒क्त॒म् । अ॒स्मे इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नियुवाना नियुत: स्पार्हवीरा इन्द्रवायू सरथं यातमर्वाक् । इदं हि वां प्रभृतं मध्वो अग्रमध प्रीणाना वि मुमुक्तमस्मे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    निऽयुवाना । निऽयुतः । स्पार्हऽवीराः । इन्द्रवायू इति । सऽरथम् । यातम् । अर्वाक् । इदम् । हि । वाम् । प्रऽभृतम् । मध्वः । अग्रम् । अध । प्रीणाना । वि । मुमुक्तम् । अस्मे इति ॥ ७.९१.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 91; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्रवायू) “इदङ्करणादित्याग्रयणः” ॥ नि० १०,८,९ ॥ अर्थात् सर्वकर्मसु व्यापकः “वाति सर्वं जानातीति वायुः”, हे कर्मयोगिनः ज्ञानयोगिनः विद्वांसः ! (अर्वाक्) अस्मदभिमुखं (सरथम्) स्वज्ञानयोगकर्मयोगमार्गमभिलक्ष्य (यातम्) आगच्छन्तु (स्पार्हवीराः) भवन्तः सर्वैरभिलषणीया अतः (नियुवाना) उपदेशे नियुक्ताः (नियुतः) यश्च स्वयोगमार्गस्तमुपदिशत (वाम्) युष्मभ्यमेव (मध्वः) मधुरः (इदम्) अयं (अग्रम्) मुख्यः सारभूतः उपह्रियते तं गृह्णीत (अथ) अन्यच्च (प्रीणाना) प्रसन्नाः सन्तः (अस्मे) अस्मान् (वि, मुमुक्तम्) बन्धनान्मोचयत ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्रवायू) “इदङ्करणादित्याग्रयणः”  ॥ नि० १०, ८, ९ ॥ अर्थात् सब कर्मों में जो व्याप्त हो, उसे इन्द्र कहते हैं। “वातीति वायुः” जो सर्व विषय को जानता है, वह वायु है। हे कर्मयोगी और ज्ञानयोगी पुरुषो ! (अर्वाक्) हमारे सम्मुख (सरथं) अपने कर्मयोग और ज्ञानयोग के मार्ग को लक्ष्य मानते हुए (यातं) हमारे सामने आयें, (स्पार्हवीराः) आप सर्वप्रिय हैं और (नियुवाना) उपदेश के मार्ग में नियुक्त किये गये हैं और (नियुतः) जो तुम्हारा योगमार्ग है, उसका आकर हमें उपदेश करो। (वाम्) तुम्हारे लिये ही निश्चय करके (मध्वः) मीठे पदार्थ का (इदम्) ये (अग्रम्) सार भेंट किया जाता है, आप इसे ग्रहण करें (अथ) और (प्रीणाना) प्रसन्न हुए आप (अस्मे) हम लोगों को (विमुमुक्तम्) पापरूपी बन्धनों से छुड़ायें ॥५॥

    भावार्थ

    यजमान कर्मयोगी और ज्ञानयोगी विद्वानों से यह प्रार्थना करते हैं कि हे भगवन् ! आप हमारे यज्ञों में आकर हमको कर्मयोग तथा ज्ञानयोग का उपदेश करें, ताकि हम उद्योगी तथा ज्ञानी बन कर निरुद्योगिता और अज्ञानरूपी पापों से छुट कर मोक्ष फल के भागी बनें ॥५॥

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    विषय

    विद्युत्-वायुवत् दो नायकों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्रवायू ) विद्युत् और वायु के समान तीव्र, बलवान् नायक पुरुषो ! ( स्पार्हवीराः ) स्पृहणीय, मनोहर वीर पुरुषों से युक्त ( नियुतः ) अश्व सेनाओं को ( नियुवाना ) अपने अधीन सञ्चालित करते हुए आप दोनों ( स-रथं ) रथ सहित ( अर्वाक् यातम् ) आगे बढ़ो । ( इदं हि ) यह कार्य ही ( मध्वः प्रभृतम् ) आप दोनों को अन्न या आजीविका प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है । अथवा ( इदं हि ) यह ही ( वां ) आप दोनों ( मध्वः ) शत्रु को पीड़ित करने वाले बल का (अग्रम् ) श्रेष्ठ भाग (प्रभृतम्) खूब परिपुष्ट हो, और आगे २ बढ़ने वाला हो, ( अध ) और ( प्रीणानां ) प्रसन्न एवं प्रजा को प्रसन्न करते हुए ( अस्मे वि मुमुक्तम् ) हमें विविध बन्धनों से युक्त करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १, ३ वायुः । २, ४–७ इन्द्रवायू देवते। छन्दः—१, ४,७ विराट् त्रिष्टुप् । २, ५, ६ आर्षी त्रिष्टुप् ॥ ३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    उत्तम सेना

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (इन्द्रवायू) - विद्युत् और वायु के तुल्य बलवान् नायक पुरुषो! (स्पार्हवीराः) = मनोहर वीर पुरुषों से युक्त (नियुतः) = अश्व सेनाओं को (नियुवाना) = सञ्चालित करते हुए आप दोनों (स रथं) = रथ सहित (अर्वाक् यातम्) = आगे बढ़ो। (इदं हि) = यह कार्य ही (मध्वः अग्रं प्रभृतम्) = आप दोनों को अन्न या आजीविका प्राप्त करने का साधन है। (अध) = और (प्रीणाना) = प्रजा को प्रसन्न करते हुए (अस्मे वि मुमुक्तम्) = हमें विविध बन्धनों से मुक्त करो।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा तथा सेनापति राष्ट्र की सेना को उत्तम वीरों, अश्वों एवं शस्त्रास्त्रों से अच्छी प्रकार से सुसज्जित करके रणक्षेत्र में आगे बढ़ें। प्रजा की रक्षा करें। राष्ट्र में राजनियमों का कठोरता में से पालन कराकर राष्ट्र को सुदृढ़ बनावें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, universal power and presence of all human action, Vayu, universal inspiration and motivation for progress, loved and revered heroes of universal life, users and supporters of all human energy, the entire humanity takes recourse to you. Come hither to us with your wealth of knowledge, action and advancement. This best of the honey sweets of our yajnic achievement is reserved and first offered to you. Pray take it and, pleased and loving, release us from the snares of sin and evil.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    यजमान कर्मयोगी व ज्ञानयोगी विद्वानांना ही प्रार्थना करतात, की हे भगवान! तुम्ही आमच्या यज्ञात येऊन आम्हाला कर्मयोग व ज्ञानयोगाचा उपदेश करा. त्यामुळे आम्ही उद्योगी व ज्ञानी बनून उद्योगहीनता व अज्ञानरूपी पापापासून सुटका करून मोक्षफळ प्राप्त करावे. ॥५॥

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