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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 91 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 91/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - आर्षीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    या वां॑ श॒तं नि॒युतो॒ याः स॒हस्र॒मिन्द्र॑वायू वि॒श्ववा॑रा॒: सच॑न्ते । आभि॑र्यातं सुवि॒दत्रा॑भिर॒र्वाक्पा॒तं न॑रा॒ प्रति॑भृतस्य॒ मध्व॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । वा॒म् । श॒तम् । नि॒ऽयुतः॑ । याः । स॒हस्र॑म् । इन्द्र॑वायू॒ इति॑ । वि॒श्वऽवा॑राः । सच॑न्ते । आभिः॑ । या॒त॒म् । सु॒ऽवि॒दत्रा॑भिः । अ॒र्वाक् । पा॒तम् । न॒रा॒ । प्रति॑ऽभृतस्य । मध्वः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या वां शतं नियुतो याः सहस्रमिन्द्रवायू विश्ववारा: सचन्ते । आभिर्यातं सुविदत्राभिरर्वाक्पातं नरा प्रतिभृतस्य मध्व: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । वाम् । शतम् । निऽयुतः । याः । सहस्रम् । इन्द्रवायू इति । विश्वऽवाराः । सचन्ते । आभिः । यातम् । सुऽविदत्राभिः । अर्वाक् । पातम् । नरा । प्रतिऽभृतस्य । मध्वः ॥ ७.९१.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 91; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्रवायू) हे ज्ञानयोगिनः कर्मयोगिनश्च ! (वाम्) युष्मान् (याः) ये यूयं (विश्ववाराः) विश्वैर्वरणीयास्तान् (याः) ये नराः (शतम्) शतशः (सहस्रम्) सहस्रशश्च (नियुतः) नियुक्ताः (सचन्ते) सेवन्ते, ते सङ्गतिं प्राप्नुवन्ति (नरा) हे वैदिकनरः ! (अर्वाक्) अस्मदभिमुखम् (आभिः) एभिः (सुविदत्राभिः) शोभनमार्गैः (यातम्) आगच्छत तथा (मध्वः, प्रतिभृतस्य) भवदर्थे निहितं मधुरं रसं (पातम्) पिबत ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्रवायू) हे ज्ञानयोगी और कर्मयोगी पुरुषो ! (वाम्) तुम लोगों को (याः) जो आप (विश्ववाराः) सबके वरणीय हो, ऐसे आपको (याः) जो लोग (शतम्) सैकड़ों वार (सहस्रं) सहस्रों वार (नियुतः) नियुक्त हुए (सचन्ते) सेवन करते हैं, वे संगति को प्राप्त होते हैं, इसलिये (नरा) वैदिक मार्ग के नेता लोगों ! (अर्वाक्) हमारे सम्मुख (आभिः) सुन्दर मार्गों से (यातं) आओ और (मध्वः, प्रतिभृतस्य) आपके निमित्त जो मीठा रस रक्खा गया है, इसे आकर (पातं) पिओ ॥६॥

    भावार्थ

    जो लोग कर्मयोगी और ज्ञानयोगी पुरुषों की सैकड़ों और सहस्रों वार संगति करते हैं, वे लोग उद्योगी और ब्रह्मज्ञानी बन कर जन्म के धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी चारों फलों को प्राप्त होते हैं ॥६॥

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    विषय

    विद्युत्-वायुवत् दो नायकों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्रवायू ) विद्युत्, पवन के समान तेजस्वी और बलशाली पुरुषो ! ( याः ) जो ( वां ) आप दोनों के ( शतं ) सैकड़ों और (याः सहस्रं ) जो हज़ारों ( नियुतः ) अश्वों के सैन्यगण ( विश्व-वारा: ) सब शत्रुओं के वारण करने में समर्थ होकर ( सचन्ते ) समवाय बनाकर रहते हैं ( आभिः ) इन ( सु-विदत्राभिः ) उत्तम ऐश्वर्य लाभ कराने या उत्तम ज्ञान शिक्षा से युक्त सुशिक्षित सेनाओं से आप दोनों ( अर्वाक् यातं ) आगे बढ़ो । हे (नरा ) नायक पुरुषो ! आप दोनों ( प्रतिभृतस्य ) वेतन द्वारा परिपुष्ट ( मध्वः ) सैन्य बल की ( पातम् ) सदा रक्षा करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १, ३ वायुः । २, ४–७ इन्द्रवायू देवते। छन्दः—१, ४,७ विराट् त्रिष्टुप् । २, ५, ६ आर्षी त्रिष्टुप् ॥ ३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सुशिक्षित सेना

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (इन्द्रवायू) = विद्युत्, पवन के समान तेजस्वी, बलशाली पुरुषो! (याः) = जो (वां) = आप दोनों के (शतं) = सैकड़ों और (याः सहस्त्रं) = जो सहस्रों (नियुतः) = अश्वों के सैन्यगण (विश्ववारा:) = शत्रुओं के वारण में समर्थ होकर (सचन्ते) = संघ बनाकर रहते हैं (आभिः) = इन (सु-विदत्राभिः) = उत्तम ऐश्वर्य लाभ करानेवाली सुशिक्षित सेनाओं से आप दोनों (अर्वाक् यातं) = आगे बढ़ो। हे (नरा) = नायक पुरुषो! आप दोनों (प्रतिभृतस्य) = वेतन द्वारा परिपुष्ट (मध्वः) = सैन्य बल की (पातम्) = रक्षा करो।

    भावार्थ

    भावार्थ- सेनानायक अपनी पैदल तथा अश्वारोही सेना को गणों तथा संघों में बाँटकर उत्तम प्रशिक्षण प्रदान कर सेना को सुशिक्षित करे। अपने सैनिकों को वेतन बढ़ाकर उत्साहित करता रहे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra and Vayu, leading lights of knowledge and action, heroes of universal faith and choice, hundreds are your supporters, thousands indeed, who join and support you. With these, come hither to us by propitious paths with blissful gifts and, O leaders and pioneers, accept the honey sweets of our homage of abundant soma.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक कर्मयोगी व ज्ञानयोगी पुरुषांची शेकडो व सहस्रो वेळा संगती करतात ते लोक उद्योगी व ब्रह्मज्ञानी बनून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ही फळे प्राप्त करतात. ॥६॥

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