ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 97/ मन्त्र 2
आ दैव्या॑ वृणीम॒हेऽवां॑सि॒ बृह॒स्पति॑र्नो मह॒ आ स॑खायः । यथा॒ भवे॑म मी॒ळ्हुषे॒ अना॑गा॒ यो नो॑ दा॒ता प॑रा॒वत॑: पि॒तेव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । दैव्या॑ । वृ॒णी॒म॒हे॒ । अवां॑सि । बृह॒स्पतिः॑ । नः॒ । म॒हे॒ । आ । स॒खा॒यः॒ । यथा॑ । भवे॑म । मी॒ळ्हुषे॑ । अना॑गाः । यः । नः॒ । दा॒ता । प॒रा॒ऽवतः॑ । पि॒ताऽइ॑व ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ दैव्या वृणीमहेऽवांसि बृहस्पतिर्नो मह आ सखायः । यथा भवेम मीळ्हुषे अनागा यो नो दाता परावत: पितेव ॥
स्वर रहित पद पाठआ । दैव्या । वृणीमहे । अवांसि । बृहस्पतिः । नः । महे । आ । सखायः । यथा । भवेम । मीळ्हुषे । अनागाः । यः । नः । दाता । पराऽवतः । पिताऽइव ॥ ७.९७.२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 97; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सखायः) हे मित्राणि ! (बृहस्पतिः) परमात्मा (नः) अस्मान् (दैव्या, अवांसि) दिव्यतया, रक्षेत् वयं च स्वयज्ञे (आवृणीमहे) तं वृणीमहि (यथा) येन विधिना (मीळ्हुषे) विश्वम्भरस्य पुरः (अनागाः) निर्दोषाः (भवेम) स्याम (यः) यः परमात्मा (नः) अस्माकं (परावतः, पितेव) शत्रोस्त्रायमाणः पितेव (दाता) जीवनदातास्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सखायः) हे मित्र लोगों ! (बृहस्पतिः) “बृहतां पतिः बृहस्पतिः” “ब्रह्म वै बृहस्पतिः” शतपथ, काण्ड ९, प्रपा० ३। ब्रा० २। क० १८ ॥ यहाँ बृहस्पति नाम ‘ब्रह्म’ का है, (नः) वह परमात्मा हम लोगों की (दैव्या, अवांसि) रक्षा करे, हम लोग अपने यज्ञों में (आवृणीमहे) वरण करें अर्थात् उसको स्वामीरूप से स्वीकार करें, (यथा) जिस प्रकार (मीळ्हुषे) विश्वम्भर के लिये (अनागाः) हम निर्दोष (भवेम) सिद्ध हों, (यः) जो परमात्मा (नः) हमको (परावतः, पितेव) शत्रुओं से बचानेवाले पिता के समान (दाता) जीवनदाता है ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम उस बृहस्पति की उपासना करो, जो तुमको सब विघ्नों से बचाता है और पिता के समान रक्षा करता है। इस मन्त्र में बृहस्पति शब्द परमात्मा के लिये आया है, जैसा कि “शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्यमा। शन्न इन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः” यजुः ३६।९॥ इस मन्त्र में ‘बृहस्पति’ शब्द परमात्मा के अर्थ में है ॥२॥
विषय
प्रभु की उपासना ।
भावार्थ
( यः ) जो ( नः ) हमें ( पिता इव ) पिता के समान ( परावतः ) दूर २ से वा परम पद से ( दाता ) सब सुख ऐश्वर्यादि देने हारा है। वह ( बृहस्पतिः ) बड़े, ब्रह्माण्ड का पालक है ( नः ) हमें ( आ महे ) सब प्रकार से देता है। हे ( सखायः ) मित्रो ! हम उस ( मीढुषे ) मेघवत् ऐश्वर्य सुखों के वर्षाने वाले, महा दानी, प्रभु के प्रति (यथा) जिस प्रकार हो (अनागाः भवेम) निरपराध और निष्पाप हों, इसीलिये हम ( दैव्यानि अवांसि ) सर्वप्रद, सर्वप्रकाशक उसी प्रभु के दिये बलों, तृप्तिकारक अन्नादि ऐश्वर्यों और उसी की रक्षाओं को ( आ वृणीमहे ) अपने लिये चाहते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ १ इन्द्रः। २,४—८ बृहस्पतिः। ३,९ इन्द्राब्रह्मणस्पती। १० इन्द्राबृहस्पती देवते। छन्दः—१ आर्षी त्रिष्टुप्। २, ४, ७ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ५, ६, ८, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥
विषय
पदार्थ - (यः) = जो (नः) = हमें (पिता इव) = पिता तुल्य (परावतः) = दूर-दूर से, वा परम पद से (दाता) = सब सुख ऐश्वर्यादि दाता है वह (बृहस्पतिः) = ब्रह्माण्ड का पालक (नः) = हमें (आ महे) = सब प्रकार से देता है। हे (सखायः) = मित्रो ! हम उस (मीढुषे) = ऐश्वर्य सुखों के वर्षक प्रभु के प्रति (यथा) = जैसे हो (अनागाः भवेम) = निरपराध हों, इसीलिये हम (दैव्यानि अवांसि) = सर्वप्रकाशक प्रभु के दिये बलों, ऐश्वर्यों और रक्षाओं को (आ वृणीमहे) = चाहते हैं।
पदार्थ
भावार्थ-वह परमात्मा सब ऐश्वर्यों का दाता है उसकी उपासना से मनुष्य परमपद की प्राप्ति सान्निध्य की अनुभूति उसे अपराधों से बचाकर तथा दुःखों से निवृत्ति पा लेता है। ईश्वर के आत्मबल प्रदान करती है।
इंग्लिश (1)
Meaning
And there, O friends, let us pray for the protection and blessings of divinity, and may Brhaspati, lord of the mighty universe, exalt us in the spirit so that we grow sinless in the eyes of the generous lord of life and vitality who alone is our generous giver and supreme saviour as father for children.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे माणसांनो! तुम्ही या बृहस्पतीची उपासना करा. जो तुम्हाला सर्व विघ्नांपासून वाचवितो व पित्याप्रमाणे रक्षण करतो. या मंत्रात बृहस्पती शब्द परमेश्वरासाठी आलेला आहे. जसा ‘शन्नो मित्र: शं वरुण: शन्नो भवत्वर्यमा। शन्न इन्द्रो बृहस्पति: शन्नो विष्णुरुरुक्रम:’ यजु. ३६/९ या मंत्रात ‘बृहस्पति’ शब्द परमेश्वरासाठी वापरलेला आहे. ॥२॥
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