ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 21/ मन्त्र 11
त्वया॑ ह स्विद्यु॒जा व॒यं प्रति॑ श्व॒सन्तं॑ वृषभ ब्रुवीमहि । सं॒स्थे जन॑स्य॒ गोम॑तः ॥
स्वर सहित पद पाठत्वया॑ । ह॒ । स्वि॒त् । यु॒जा । व॒यम् । प्रति॑ । श्व॒सन्त॑म् । वृ॒ष॒भ॒ । ब्रु॒वी॒म॒हि॒ । सं॒स्थे । जन॑स्य । गोऽम॑तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वया ह स्विद्युजा वयं प्रति श्वसन्तं वृषभ ब्रुवीमहि । संस्थे जनस्य गोमतः ॥
स्वर रहित पद पाठत्वया । ह । स्वित् । युजा । वयम् । प्रति । श्वसन्तम् । वृषभ । ब्रुवीमहि । संस्थे । जनस्य । गोऽमतः ॥ ८.२१.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 21; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(वृषभ) हे शस्त्राणां वर्षितः ! (वयम्) वयं प्रजाः (गोमतः, जनस्य, संस्थे) तेजस्विनः समुदायस्य स्थाने युद्धादौ (त्वया, युजा, ह, स्वित्) त्वया हि सहायेन सन्तः (श्वसन्तम्) क्रुद्धमरिम् (प्रतिब्रुवीमहि) तिरस्कुर्मः ॥११॥
विषयः
तदुपासको विजयी भवतीति दर्शयति ।
पदार्थः
हे वृषभ ! गोमतः=पृथिवीश्वरस्य जनस्य । संस्थे=संग्रामे । श्वसन्तम्=क्रोधातिशयेन श्वासकारिणं शत्रुं प्रति । युजा=सहायेन । त्वया ह स्वित् । प्रति+ब्रुवीमहि=प्रतिवचनं कुर्मः । निराकरिष्याम इत्यर्थः ॥११ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(वृषभ) हे शस्त्रों की वर्षा करनेवाले ! (वयम्) हम सब प्रजाजन (गोमतः, जनस्य, संस्थे) तेजस्वी समुदाय के युद्ध में (त्वया, युजा, ह, स्वित्) आपकी सहायता ही से (श्वसन्तम्) क्रोध से उच्च श्वास लेते हुए शत्रु का (प्रतिब्रुवीमहि) प्रतिवचन=तिरस्कार करते हैं ॥११॥
भावार्थ
भाव यह है कि सैनिक लोग सेनापति की रक्षा द्वारा ही अनेक गर्वित शत्रुओं को तिरस्कृत कर सकते हैं, स्वतन्त्र नहीं, इसलिये सेनापति का होना अत्यावश्यक है, ताकि हम लोग शत्रुओं से सुरक्षित होकर अपने सब कार्य्यों को विधिवत् कर सकें ॥११॥
विषय
उसका उपासक विजयी होता है, वह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(वृषभ) हे निखिलमनोरथपूरक ! (गोमतः) पृथिवीश्वर मनुष्य के (संस्थे) संग्राम में (श्वसन्तम्) अतिशय क्रोध से हाँपते हुए शत्रुओं को (युजा) सहायक (त्वया+ह+स्वित्) तेरी ही सहायता से (प्रति+ब्रुवीमहि) प्रत्युत्तर देते हैं, अर्थात् तेरे ही साहाय्य से उनको जीतते हैं ॥११ ॥
भावार्थ
जो जन उसी को अपना आश्रय बनाते हैं, वे महान् शत्रुओं को भी जीत लेते हैं ॥११ ॥
विषय
सदा सहयोगी और सहायक प्रभु।
भावार्थ
( गो-मतः ) कान, आंख आदि इन्द्रियगण और वाणी से युक्त, अविकलेन्द्रिय ( जनस्य ) मनुष्य के ( संस्थे ) समीप ( श्वसन्तं ) और श्वास लेने वाले प्रत्येक प्राणी के ( प्रति ) प्रति हे ( वृषभ ) सुखों की वर्षा करने हारे ! ( त्वया ह स्वित् युजा ) तुझ अपने सहायक के साथ ( प्रति ब्रु वीमहि ) बात चीत करें। जनसमुदाय या किसी भी प्राणी के साथ बात चीत करते हुए तुझे अपना सहायक साथी जानें, किसी से मिथ्या व्यवहार न करें और न डरें। ( २ ) इसी प्रकार (जनस्य संस्थे ) मनुष्यों के संग्राम में ( श्वसन्तं ) क्रोध से फुफकारते शत्रु के प्रति तुझ सहायक से निर्भय होकर प्रतिवचन कहा करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सोभरिः काण्व ऋषिः॥ १—१६ इन्दः। १७, १८ चित्रस्य दानस्तुतिर्देवता॥ छन्दः–१, ३, १५ विराडुष्णिक्। १३, १७ निचृदुष्णिक्। ५, ७, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। २, १२, १४ पादनिचृत् पंक्तिः। १० विराट पंक्ति:। ६, ८, १६, १८ निचृत् पंक्ति:। ४ भुरिक् पंक्तिः॥
विषय
प्रभु की मैत्री व सज्जन संग
पदार्थ
[१] हे (वृषभ) = शक्तिशालिन् प्रभो ! (त्वया युजा) = तुझ साथी के साथ (वयम्) = हम (हस्वित्) = निश्चय से (श्वसन्तम्) = हमारे सामने फुंकार मारते हुए 'काम-क्रोध' आदि शत्रुओं को प्रति (ब्रुवीमहि) = प्रत्याहूत करते हैं। ललकारते हुए शत्रुओं की ललकार को स्वीकार करते हैं। आप को साथी पाकर हम भयङ्कर से भयङ्कर शत्रु का सामना कर पाते हैं। [२] इस जीवन में (गोमतः) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाले (जनस्य) = व्यक्ति के (संस्थे) = समीप संस्थान में हम इन शत्रुओं को आहूत करते हैं। इन सज्जनों का संग हमें काम-क्रोध आदि को जीतने के लिये सतत प्रेरणा प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु की मित्रता में व सज्जनों के संग में हम काम-क्रोध आदि शत्रुओं का पराभव करनेवाले बनते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
By you alone as our friend and comrade, O lord almighty, generous giver, can we counter a gasping contestant in this settled world order of humanity full of lands and cows, blest as we are with the light of knowledge and culture.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक त्यालाच आपले आश्रयस्थान बनवितात ते महान शत्रूंनाही जिंकून घेतात ॥११॥
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