ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 77/ मन्त्र 11
ऋषिः - कुरुसुतिः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
तु॒वि॒क्षं ते॒ सुकृ॑तं सू॒मयं॒ धनु॑: सा॒धुर्बु॒न्दो हि॑र॒ण्यय॑: । उ॒भा ते॑ बा॒हू रण्या॒ सुसं॑स्कृत ऋदू॒पे चि॑दृदू॒वृधा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतु॒वि॒ऽक्षम् । ते॒ । सुऽकृ॑तम् । सु॒ऽमय॑म् । धनुः॑ । सा॒धुः । बु॒न्दः । हि॒र॒ण्ययः॑ । उ॒भा । ते॒ । बा॒हू इति॑ । रण्या॑ । सुऽसं॑स्कृता । ऋ॒दु॒ऽपे । चि॒त् । ऋ॒दु॒ऽवृधा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तुविक्षं ते सुकृतं सूमयं धनु: साधुर्बुन्दो हिरण्यय: । उभा ते बाहू रण्या सुसंस्कृत ऋदूपे चिदृदूवृधा ॥
स्वर रहित पद पाठतुविऽक्षम् । ते । सुऽकृतम् । सुऽमयम् । धनुः । साधुः । बुन्दः । हिरण्ययः । उभा । ते । बाहू इति । रण्या । सुऽसंस्कृता । ऋदुऽपे । चित् । ऋदुऽवृधा ॥ ८.७७.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 77; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 30; मन्त्र » 6
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 30; मन्त्र » 6
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Mighty is your bow, shooting far your arrow, well doing and protecting peace and well being. Safe and secure is your defence, golden gracious. Both your arms, internal security and external defence, are fully trained and civilised, they protect property, safeguard truth and law, and advance culture and refinement.
मराठी (1)
भावार्थ
राज्याधीशाची सर्व आयुधे प्रजारक्षक असावीत. शरीर मन व धन त्यांचेच हित करणारे असावेत. अर्थात् राजा कधी स्वार्थी भोगविलासी व आळशी नसावा. ॥११॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे राजन् ! ते=तव । धनुः । तुविक्षम्= बहुविक्षेपम्=महाविक्षेपम् । सुकृतम्=सुष्ठु विरचितम् । सुमयम्=सुसुखम् । तव बुन्दः=इषुः । साधुः । हिरण्ययः=सुवर्णमयः । ते=तव । उभा=उभौ बाहू । रण्या=रमणीयौ । सुसंस्कृतौ । ऋदुपे=अर्दनपातिनौ चित् । ऋदुवृधा=सम्पद्वर्धिनौ ॥११ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हे राजन् महाराज ! (ते+धनुः) तुम्हारा धनुष् (तुविक्षम्) बाणों को बहुत दूर फेंकनेवाला (सुकृतम्) सुविरचित और (सुमयम्) सुखकारी है । (बुन्दः) तुम्हारा बाण (साधुः) उपकारी और (हिरण्ययः) सुर्वणमय और दुःखहारी है । (ते+उभा) तुम्हारे दोनों (बाहू) हाथ (रण्या) रमणीय (सुसंस्कृता) सुसंस्कृत (ऋदुपे) सम्पत्तिरक्षक और (ऋदुवृधा) सम्पत्तिवर्धक हैं ॥११ ॥
भावार्थ
राज्याधीश के सर्व आयुध प्रजारक्षक हों और शरीर मन और धन उनके ही हितकारी हों । अर्थात् राजा कभी स्वार्थी भोगविलासी और आलसी न हो ॥११ ॥
विषय
राजा वा प्रभु के अनेक बल, उनकी श्लिष्ट तुलना कैसे हो।
भावार्थ
हे राज़न् ! (ते ) तेरा (धनुः) धनुष, शस्त्रबल, (सु-मयं) उत्तम सुखकारक, ( सु-कृतं ) उत्तम कर्म करने वाला, (तुवि-क्षं) दूर तक वाणों के फेंकने वाला, बहुत से शत्रुओं को उखाड़ फेंकने वाला हो। ( तेः बुन्दः ) तेरा तेज और शत्रु को भयप्रद वाण, ( साधुः ) उत्तम, लक्ष्य पर लगने हारा, (हिरण्ययः ) सुवर्णमय और हित, रम्य हो। (ते बाहू) तेरी बाहुएं, शत्रुबाधक सेनाएं दोनों ( रण्या ) रमणीय, सुन्दर एवं रणकुशल (सु-संस्कृते) उत्तम संस्कार से युक्त, अलंकृत और उत्तम अभ्यस्त, ( ऋदुपे ) वेग से शत्रु को गिराने वाले और (ऋदुवृधा चित्) पीडक जनों को वेधने, उन को काटने छांटने वाली हो। इति त्रिंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
* कुरुसुतिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ३, ४, ७, ८ गायत्री॥ २, ५, ६, ९ निचृद् गायत्री। १० निचृद् बृहती। ११ निचृत् पंक्ति:। एकादशर्चं सूक्तम्॥ *पुरुसुतिति प्रामादिकः।
विषय
धनुः, बुन्दः व बाहू
पदार्थ
[१] (ते धनुः) = हे इन्द्र ! तेरा धनुष (तुविक्षम्) = शत्रुओं का महान् क्षय करनेवाला है, (सुकृतम्) = शोभन कर्मोंवाला व (शभयम्) = उत्तम सुख को देनेवाला है। वस्तुतः 'प्रणवो धनुः' प्रभु का नाम ही धनुष है। यह प्रभु नामस्मरण शत्रुओं का विनाशक, शुभ का उत्पादक तथा सुखद है। (बुन्दः) = बाण [इषु] (साधुः) = सब कार्यों को सिद्ध करनेवाला व (हिरण्ययः) = ज्योतिर्मय है। आत्मा ही बाण है- यह साधु व हिरण्य बना है। [२] हे इन्द्र ! (ते) = तेरी (उभा बाहू) = दोनों भुजाएँ (रण्या) = रमणीय वरण के लिये उत्तम हैं, (सुसंस्कृते) = ये भुजाएँ पूर्णरूप से परिष्कृत हैं। (ऋदूपे) = सब पीड़कों को दूर फेंकनेवाली हैं तथा (चित्) = निश्चय से (ऋदूवृधा) = इन पीड़क शत्रुओं को विद्ध करनेवाली हैं।
भावार्थ
भावार्थ - प्रणवरूप धनुष को हम ग्रहण करें। यह शत्रुओं का क्षय करनेवाला, शुभ कर्मोंवाला व सुख को देनेवाला है। हम आत्मरूप बाण को उत्तम कार्यों का साधक व ज्योतिर्मय बनायें। हमारी भुजाएँ संग्राम में उत्तम व शत्रुओं को परे फेंकनेवाली व उन्हें विद्ध करनेवाली हों। अगले सूक्त का ऋषि भी 'कुरुसुति काण्व' ही है-
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal