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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 77 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 77/ मन्त्र 9
    ऋषिः - कुरुसुतिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ता च्यौ॒त्नानि॑ ते कृ॒ता वर्षि॑ष्ठानि॒ परी॑णसा । हृ॒दा वी॒ड्व॑धारयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ता । च्यौ॒त्नानि॑ । ते॒ । कृ॒ता । वर्षि॑ष्ठानि । परी॑णसा । हृ॒दा । वी॒ळु । अ॒धा॒र॒यः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एता च्यौत्नानि ते कृता वर्षिष्ठानि परीणसा । हृदा वीड्वधारयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एता । च्यौत्नानि । ते । कृता । वर्षिष्ठानि । परीणसा । हृदा । वीळु । अधारयः ॥ ८.७७.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 77; मन्त्र » 9
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    All these deeds and enterprises most generous and creative, planned and executed, you hold firmly in your mind with a liberal heart.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो राजा मनात दृढ संकल्प करतो तो उत्तमोत्तम कार्य करून दाखवितो. ॥९॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    हे राजन् ! ते=त्वया । एता=एतानि=मनुष्याणां व्यावहारिकाणि वस्तूनि । च्यौत्नानि=सुदृढानि नियमसुबद्धानि । कृता=कृतानि । वर्षिष्ठानि=अतिशयेन प्रवृद्धानि कृतानि । पुनः । परीणसा=परितो न तानि कृतानि । यतस्त्वम् । हृदा । वीळु=स्थिराणि । अधारयः । इदमवश्यमेव कर्त्तव्यमिति हृदि धारयसि ॥९ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    हे राजन् ! (ते) तुमने (एता) मनुष्यों की इन व्यवहारसम्बन्धी वस्तुओं को (च्यौत्नानि) सुदृढ़ और नियमों से सुबद्ध (कृता) किया है (वर्षिष्ठानि) अतिशय उन्नत किया है और (परीणसा) और जो अनम्र दुष्कर और कठिन काम थे, उनको नम्र सुकर और ऋजु कर दिया है, क्योंकि तुम (हृदा) हृदय से (वीळु) स्थिर करके (अधारयः) उनको रखते हो अर्थात् यह अवश्यकर्त्तव्य है, ऐसा मन में स्थिर करके रखते हो ॥९ ॥

    भावार्थ

    जो राजा मन में दृढ़ संकल्प रखता है, वह उत्तमोत्तम कार्य्य करके दिखलाता है ॥९ ॥

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    विषय

    वायु-मेघ के व्यवहारों के समान राजा और राजपुरुषों के कर्तव्य।

    भावार्थ

    ( एता ) ये ( च्योत्नानि ) सब बलशाली और ( वर्षिष्ठानि ) सुख जलादि वर्षाने वाले, बलवान् सैन्य (ते कृता) तेरे ही बनाये हैं। और तू उन को ( वीडु परीणसा ) महान् स्थिरतापूर्वक (हृदा अधारयः ) सद् हृदय से धारण कर। इसी प्रकार ये सब गतिशील, वर्षाकारक सूर्य पवन आदि प्रभु ने बनाये हैं, उन को वह ( हृदा ) मन के संकल्प मात्र से धारण करता और चलाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    * कुरुसुतिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ३, ४, ७, ८ गायत्री॥ २, ५, ६, ९ निचृद् गायत्री। १० निचृद् बृहती। ११ निचृत् पंक्ति:। एकादशर्चं सूक्तम्॥ *पुरुसुतिति प्रामादिकः।

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    विषय

    परीणसा

    पदार्थ

    (एता) = ये (च्यौत्नानि) = बली (वर्षिष्ठानि) = तथा बरसनेवाले (ते कृता) = तेरे बनाये हुये हैं। तू उनको (वीडु परीणसा) = स्थिरतापूर्वक (हृदा) = हृदय से (अधारयः) = धारण कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सभी बली, व बरसनेवाले बादलादि परमेश्वर ने धारण कर रखे हैं।

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