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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 93/ मन्त्र 29
    ऋषिः - सुकक्षः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स नो॒ विश्वा॒न्या भ॑र सुवि॒तानि॑ शतक्रतो । यदि॑न्द्र मृ॒ळया॑सि नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । विश्वा॑नि । आ । भ॒र॒ । सु॒वि॒तानि॑ । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । यत् । इ॒न्द्र॒ । मृ॒ळया॑सि । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो विश्वान्या भर सुवितानि शतक्रतो । यदिन्द्र मृळयासि नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । नः । विश्वानि । आ । भर । सुवितानि । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । यत् । इन्द्र । मृळयासि । नः ॥ ८.९३.२९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 93; मन्त्र » 29
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of infinite acts of kindness, when you are kind and gracious to us, bear and bring us all the good fortunes, prosperity and welfare of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमप्रभूद्वारे प्रेरित सुकर्मात रमणारा जीवच सुखी राहतो. या मंत्राचा हा आशय आहे. ॥२९॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे (शतक्रतो) नानाकर्मकर्ता! (यत्) क्योंकि आप (नः) हमें (मृडयासि) सुख देते हैं, इसलिये (सः) वह आप (नः) हमें (विश्वानि) सम्पूर्ण (सुवितानि) सुष्ठुतया प्रेरित कर्म प्रदान कर (आ, भर) पूर्णतया पालन करें॥२९॥

    भावार्थ

    प्रभु द्वारा प्रेरित सुकर्मों में व्याप्त जीव ही सुखी रहता है--यही इस मन्त्र का तात्पर्य है।॥२९॥

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    विषय

    पक्षान्तर में परमेश्वर के गुण वर्णन।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( यत् नः मृडयासि ) जो तू हमें सुखी करता है। हे ( शत-क्रतो ) अपरिमित ज्ञानवन् ! ( सः ) वह तू ( विश्वानि सुवितानि) समस्त प्रकार के सुखजनक पुण्य पदार्थ वा साधन ( आ भर ) प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    ‘सुवितानि’ सुख प्राप्ति के साधन, उत्तम आचरण, इस के विपरीत ‘दुरितानि’ दुःखदायी बुरे काम, २९, ३० मन्त्रों के साथ “विश्वानि देव सवित०” इस मन्त्र की तुलना करो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सुकक्ष ऋषिः॥ १—३३ इन्द्रः। ३४ इन्द्र ऋभवश्च देवताः॥ छन्दः—१, २४, ३३ विराड़ गायत्री। २—४, १०, ११, १३, १५, १६, १८, २१, २३, २७—३१ निचृद् गायत्री। ५—९, १२, १४, १७, २०, २२, २५, २६, ३२, ३४ गायत्री। १९ पादनिचृद् गायत्री॥

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    विषय

    विश्वानि सुवितानि

    पदार्थ

    [१] हे (शतक्रतो) = अनन्त शक्ति व प्रज्ञानवाले प्रभो ! (सः) = वे आप (नः) = हमारे लिये (विश्वानि) = सब (सुवितानि) = सुष्ठु प्राप्तव्य अभ्युदयों को (आभर) = प्राप्त कराइये। सब दुरितों को दूर करके हमें सदाचरण जनित अभ्युदय को ही दीजिये । [२] हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (यत्) = क्योंकि आप ही (नः) = हमें (मृडयासि) = सुखी करते हैं। आप ही सब सुख साधक अभ्युदयों के देनेवाले हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु की उपासना हमारे लिये सब सुवितों को, सुष्ठु प्राप्तव्य अभ्युदयों को प्राप्त कराती है।

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