ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
त्वामच्छा॑ चरामसि॒ तदिदर्थं॑ दि॒वेदि॑वे । इन्दो॒ त्वे न॑ आ॒शस॑: ॥
स्वर सहित पद पाठत्वाम् । अच्छ॑ । च॒रा॒म॒सि॒ । तत् । इत् । अर्थ॑म् । दि॒वेऽदि॑वे । इन्दो॒ इति॑ । त्वे इति॑ । नः॒ । आ॒ऽशसः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वामच्छा चरामसि तदिदर्थं दिवेदिवे । इन्दो त्वे न आशस: ॥
स्वर रहित पद पाठत्वाम् । अच्छ । चरामसि । तत् । इत् । अर्थम् । दिवेऽदिवे । इन्दो इति । त्वे इति । नः । आऽशसः ॥ ९.१.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे परमात्मन् ! (त्वां) भवन्तम् (अच्छ) अक्लेशेन (चरामसि) वयं प्राप्नुयाम किञ्च (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (तत्त्वे अर्थम्) त्वदर्थम् (इत्) एव (नः) अस्माकं जीवनं स्यात् इत्येव (आशसः) प्रार्थनाः सन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे परमात्मन् ! (त्वां) तुमको (अच्छ) भली-भाँति (चरामसि) हम लोग प्राप्त हों और (दिवेदिवे) प्रतिदिन हे परमात्मन् ! (तत्त्वे अर्थम्) आपके लिये (इत) ही (नः) हमारा जीवन हो, ये ही (नः) हमारी (आशसः) प्रार्थनाएँ हैं ॥५॥
भावार्थ
जो पुरुष प्रतिदिन निष्काम कर्म्म करते हुए अपने जीवन को व्यतीत करते हैं और ईश्वर से भिन्न किसी अन्य देव की उपासना नहीं करते, वे परमात्मस्वरूप को प्राप्त होते हैं ॥५॥१६॥
विषय
सोमरक्षण से आप्तकामता
पदार्थ
[१] हे (इन्द्रो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! [ इन्द् To be powerful ] (त्वां अच्छा) = तेरी ओर (चरामसि) = हम गतिवाले होते हैं । तुझे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं । (दिवेदिवे) = प्रतिदिन (तत् इत्) = वह ही (अर्थम्) = हमारा प्रयोजन होता है। हमारे जीवन का यही लक्ष्य होता है कि हम सोम का रक्षण करनेवाले बनें। इसी को जीवन का केन्द्रीभूत बिन्दु बनाकर हम सब व्यवहार करते हैं । आहार-विहार ऐसा ही करने का प्रयत्न करते हैं, जो कि इसके रक्षण के अनुकूल हो । [२] हे (इन्दो) = सोम ! (नः आशसः) = हमारी सब कामनायें (त्वे) = तेरे में ही आधारित हैं। तेरे द्वारा ही हमारी सब कामनायें पूर्ण होती हैं। वस्तुतः सोमरक्षण ही ब्रह्मचर्य कहा है, और यही परमधर्म है 'ब्रह्मचर्यं परोधर्मः' यही सब उत्तम कामनाओं को पूर्ण करनेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ- हमारा लक्ष्य सोम का रक्षण हो। इसके रक्षण में ही सब कामनाओं की पूर्ति है ।
विषय
उसके अनेक रूप ।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! दयार्द्र ! हम (दिवे-दिवे) दिन प्रतिदिन, (त्वाम्) तुझको (अच्छ चरामसि) उत्तम रीति से प्राप्त होते हैं। (नः) हमारा (तत् इत्) वह तू ही (अर्थम्) धनवत् प्राप्य है। (नः आशसः) हमारी सब आशाएं और कामनाएं तुझ पर ही आश्रित हैं। इति षोडशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथातः पावमानसौम्यं नवमं मण्डलम्॥ मधुच्छन्दा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१, २, ६ गायत्री। ३, ७– १० निचृद् गायत्री। ४, ५ विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Lord giver of showers of joy, we serve you with all our will and dedication, that alone is our end and aim of life day in and day out. All our hopes and aspirations centre in you.
मराठी (1)
भावार्थ
जे पुरुष प्रत्येक दिवशी निष्काम कर्म करत आपले जीवन व्यतीत करतात व ईश्वरापेक्षा भिन्न इतर देवाची उपासना करत नाहीत. ते परमेश्वराला प्राप्त करतात. ॥५॥
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