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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पु॒नाति॑ ते परि॒स्रुतं॒ सोमं॒ सूर्य॑स्य दुहि॒ता । वारे॑ण॒ शश्व॑ता॒ तना॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒नाति॑ । ते॒ । प॒रि॒ऽस्रुत॑म् । सोम॑म् । सूर्य॑स्य । दु॒हि॒ता । वारे॑ण । शश्व॑ता । तना॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनाति ते परिस्रुतं सोमं सूर्यस्य दुहिता । वारेण शश्वता तना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुनाति । ते । परिऽस्रुतम् । सोमम् । सूर्यस्य । दुहिता । वारेण । शश्वता । तना ॥ ९.१.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ रूपकालङ्कारेण श्रद्धां सूर्य्यस्य पुत्रीरूपेण वर्णयति।

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (ते) तव (परिस्रुतम्) सर्वत्र विस्तृतप्रभावम् (सोमम्) सौम्यस्वभावम् (सूर्य्यस्य दुहिता) सूर्य्यस्य पुत्री (पुनाति) पवित्रयति (वारेण) बाल्यादारभ्य (शश्वता) निरन्तरम् (तना) शरीरेण पुनाति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब रूपकालङ्कार से श्रद्धा को सूर्य्य की पुत्रीरूप से वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (ते) तुम्हारे (परिस्रुतम्) जिसका सर्वत्र प्रभाव फैल रहा है, ऐसे (सोमम्) सौम्यस्वभाव को (सुर्य्यस्य दुहिता) सूर्य्य की पुत्री (पुनाति) पवित्र करती है और (वारेण) बाल्यपन से (शश्वता) निरन्तर (तना) शरीर से पवित्र करती है ॥६॥

    भावार्थ

    जो पुरुष श्रद्धा द्वारा ईश्वर को प्राप्त होता है, वह मानों प्रकाश की पुत्री द्वारा अपने सौम्यस्वभाव को बनाता है। जिस प्रकार सूर्य्य की पुत्री उषा मनुष्यों के हृदय में आह्लाद उत्पन्न करती है, इसी प्रकार जिन मनुष्यों के ह्रदय में श्रद्धा देवी का निवास है, वे लोग उषा देवी के समान सबके आह्लादजनक सौम्यस्वभाव को उत्पन्न करते हैं ॥ कई एक लोग इसके ये अर्थ करते हैं कि सूर्य्य की पुत्री कोई व्यक्तिविशेष श्रद्धा थी, यह अर्थ वेद के आशय से सर्वथा विरुद्ध है, क्योंकि उसका सौम्यस्वभाव के साथ क्या सम्बन्ध ? यहाँ स्वभाव के साथ उसी श्रद्धा देवी का सम्बन्ध है, जो मनुष्य के शील को उत्तम बनाती है ॥६॥

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    विषय

    सूर्य दुहिता द्वारा सोम शोधन

    पदार्थ

    [१] हे मनुष्य! (ते) = तेरे (परिस्स्रुतं सोमम्) = चारों ओर गति करनेवाले सोम को (सूर्यस्य दुहिता) = सूर्य की दुहिता, अर्थात् श्रद्धा (पुनाति) = पवित्र करती है । 'सूर्य' ज्ञान है, उसकी (दुहिता) = पूरिका [दुह प्रपूरणे] श्रद्धा है। अकेला ज्ञान मनुष्य को ब्रह्म राक्षस बना देता है। मनुष्य उस समय ऐटम बम्ब बनाकर सर्वनाश का उपाय करता है । 'श्रद्धा' ज्ञान की इस कमी को दूर करती है। मस्तिष्क की पूर्ति हृदय से होती है। ज्ञान के श्रद्धा के साथ होने पर शरीर में हम शक्ति का रक्षण करते हैं । सामान्यतः सोम नीचे की ओर प्रवाहवाला होता है। हृदय में श्रद्धा के होने पर वहाँ वासनाएँ नहीं उठतीं, और परिणामतः सोमशक्ति पवित्र बनी रहती है। [२] यह सुरक्षित सोम (वारेण) शत्रुनिवारक बल से (शश्वता) = [शश प्लुत गतौ] प्लुत गतिवाले (तना) = शक्ति के विस्तार से हमें पवित्र करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्ञान की पूरक श्रद्धा सोम [वीर्य] को पवित्र रखती है। तथा हमें बल तथा स्फूर्तियुक्त शक्ति विस्तार को प्राप्त कराती है।

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    विषय

    सोम-विद्यार्थी, सूर्यदुहिता विद्या ।

    भावार्थ

    (सूर्यस्य दुहिता) सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष से दुही गई, प्रदान की गई विद्या वा पदवी (ते) तुझ (परिस्रुतं सोमं) अभिषिक्त सोम विद्यार्थी को (शश्वता) सनातन नित्य (वारेण) वरण करने योग्य (तना) विस्तृत ज्ञानैश्वर्य से (पुनाति) पवित्र करती है। (२) हे सौम्य युवक ! (सूर्यस्य दुहिता) तेजस्वी पिता की कन्या (ते परिस्रुतं सोमं) तेरे निषिक्त वीर्य को (वारेण) वरणीय (शश्वता तना) स्थायी उत्तम पुत्र रूप से (पुनाति) प्राप्त करे। (३) सूर्य की पुत्री श्रद्धा का अभिप्राय वह उत्तम ज्ञानी पुरुष की सत्य विद्या, सत्य ज्ञानधारण कराने से ‘श्रद्धा’ है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथातः पावमानसौम्यं नवमं मण्डलम्॥ मधुच्छन्दा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१, २, ६ गायत्री। ३, ७– १० निचृद् गायत्री। ४, ५ विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The soma of your eternal peace and joy flowing universally, the dawn, daughter of the sun, glorifies with the sanctity of her exquisite cover of beauty.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो पुरुष श्रद्धेद्वारे ईश्वराला प्राप्त करतो तो जणू प्रकाशाच्या लेकीद्वारे आपला सौम्य स्वभाव बनवितो. ज्या प्रकारे सूर्याची पुत्री उषा माणसांच्या हृदयात आल्हाद उत्पन्न करते. त्याच प्रकारे ज्या माणसांच्या हृदयात श्रद्धादेवीचा निवास असतो. ते लोक उषादेवी प्रमाणे आल्हाददायक सौम्य स्वभावाला उत्पन्न करतात.

    टिप्पणी

    कित्येक लोक याचा हाही अर्थ करतात की, सूर्याची पुत्री कोणी व्यक्तिविशेष श्रद्धा होती. हा अर्थ वेदाच्या आशयापेक्षा सर्वस्वी विरुद्ध आहे. कारण त्याचा सौम्य स्वभावाशी काय संबंध? येथे स्वभावाबरोबर त्याच श्रद्धादेवीचा संबंध आहे, जी माणसाचे शील उत्तम बनविते. ॥६॥

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