ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 8
तमीं॑ हिन्वन्त्य॒ग्रुवो॒ धम॑न्ति बाकु॒रं दृति॑म् । त्रि॒धातु॑ वार॒णं मधु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ई॒म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अ॒ग्रुवः॑ । धम॑न्ति । बा॒कु॒रम् । दृति॑म् । त्रि॒ऽधातु॑ । वा॒र॒णम् । मधु॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमीं हिन्वन्त्यग्रुवो धमन्ति बाकुरं दृतिम् । त्रिधातु वारणं मधु ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । ईम् । हिन्वन्ति । अग्रुवः । धमन्ति । बाकुरम् । दृतिम् । त्रिऽधातु । वारणम् । मधु ॥ ९.१.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(तम्) तं पुरुषम् (अग्रुवः) उग्रगतयः (हिन्वन्ति) प्रेरयन्ति किञ्च (बाकुरम्) भासमानम् (दृतिम्) शरीरं स पुरुषः (धमन्ति) प्राप्नोति यत्र (त्रिधातु) प्रकारत्रयेण (वारणम्) अपरेषां वारकम् (मधु) मधुमयं शरीरं सङ्गच्छते ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(तम्) उस पुरुष को (अग्रुवः) उग्र गतियें (हिन्वन्ति) प्रेरणा करती हैं और (बाकुरम्) भासमान (दृतिम्) शरीर को वह पुरुष प्राप्त होता है, जिसमें (त्रिधातु) तीन प्रकार से (वारणम्) दुसरों का वारण करनेवाला (मधु) मधुमय शरीर मिलता है ॥८॥
भावार्थ
जो पुरुष श्रद्धा के भाव रखनेवाले होते हैं, उनके सूक्ष्म, स्थूल और कारण तीनों प्रकार के शरीर दृढ और शत्रुओं के वारण करनेवाले होते हैं। अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक तीनों प्रकार के बल उन पुरुषों को आकर प्राप्त होते हैं, जो श्रद्धा का भाव रखते हैं ॥८॥
विषय
'त्रिधातु- वारण- मधु' सोम
पदार्थ
[१] (तम्) = उस सोम को (ईम्) = निश्चय से (अग्रुवः) = अग्रगतिवाले पुरुष, उन्नतिपथ पर चलनेवाले पुरुष (हिन्वन्ति) = अपने अन्दर प्रेरित करते हैं । उन्नतिपथ पर चलनेवाले सोमरक्षण के लिये स्वभावतः प्रेरित होते हैं। इस सुरक्षित सोम से ही उन्होंने उज्ज्वल होना होता है । और उन्नतिपथ पर चलने की भावना उन्हें वासनाओं का शिकार नहीं होने देती । [२] ये व्यक्ति सोमरक्षण के द्वारा इस (बाकुरम्) = [भासमानं] तेजस्विता से चमकते हुए (दृतिम्) = चर्मपात्र रूप शरीर को (धमन्ति) = तेजस्विता की अग्नि से संयुक्त करते हैं [धा अग्निसंयोगे ] । सोमरक्षण इन्हें तेजस्वी व सोत्साह बनाता है । [३] यह सोम (त्रिधातु) = शरीर, मन व बुद्धि तीनों का धारण करनेवाला है। (वारणम्) = शरीरस्थ सब रोगों का निवारण करनेवाला है। और (मधु) = जीवन को मधुर बनानेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के लिये सदा उन्नतिपथ पर चलने की भावना सहायक है। यह सोम 'त्रिधातु, वारण व मधु' है ।
विषय
ऐश्वर्य-भाजन सोम गो-वत्सवत् गुरु शिष्य का वर्णन और। राजा प्रजाओं के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
(अग्रुवः) आगे आने वाले, प्रमुख प्रजाजन, (ईम्) सब ओर से (बाकुरम्) तेजस्वी, सूर्यवत् प्रकाशवान् (दृतिम्) पात्र के समान ऐश्वर्य को ग्रहण करने वाले (त्रि-धातु) तीनों प्रकार से (वारणं) शत्रुओं को वारण करने में समर्थ (मधु) मधुर स्वभाव से युक्त (तम्) उसको (हिन्वन्ति) बढ़ाते और (धमन्ति) अधिक तीक्ष्ण करते और उसका यशो-गान करते हैं।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथातः पावमानसौम्यं नवमं मण्डलम्॥ मधुच्छन्दा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१, २, ६ गायत्री। ३, ७– १० निचृद् गायत्री। ४, ५ विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That thrice energised honey sweet and sanctified soma for the good of body, mind and soul, the ten prime senses and pranas receive and then stimulate the light of the soul within, which dispels the darkness of ignorance and eliminates the junk of negative fluctuations.
मराठी (1)
भावार्थ
जे पुरुष श्रद्धा भाव बाळगतात. त्यांचे सूक्ष्म, स्थूल व कारण ही तिन्ही प्रकारची शरीरे दृढ बनतात व शत्रूंचे निवारण करतात अर्थात शारीरिक, आत्मिक व सामाजिक तिन्ही प्रकारचे बल त्यांना प्राप्त होते. जे श्रद्धेचा भाव बाळगतात ॥८॥
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