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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 10
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒स्येदिन्द्रो॒ मदे॒ष्वा विश्वा॑ वृ॒त्राणि॑ जिघ्नते । शूरो॑ म॒घा च॑ मंहते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्य । इत् । इन्द्रः॑ । मदे॑षु । आ । विश्वा॑ । वृ॒त्राणि॑ । जि॒घ्न॒ते॒ । शूरः॑ । म॒घा । च॒ । मं॒ह॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्येदिन्द्रो मदेष्वा विश्वा वृत्राणि जिघ्नते । शूरो मघा च मंहते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्य । इत् । इन्द्रः । मदेषु । आ । विश्वा । वृत्राणि । जिघ्नते । शूरः । मघा । च । मंहते ॥ ९.१.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 17; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्रः) विज्ञानी पुरुषः (अस्येत्) अनेनैव भावेन (विश्वा) सर्वाणि (वृत्राणि) अज्ञानानि (आजिघ्नते) नाशयति (च) किञ्च अनेनैव श्रद्धाभावेन (शूरः) वीरपुरुषः (मदे) स्वकीयवीर्य्यमदे दृप्तः (मघा) ऐश्वर्य्यम् (मंहते) प्राप्नोति ॥१०॥ इति प्रथमं सूक्तं सप्तदशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्रः) विज्ञानी पुरुष (अस्येत्) इसी भाव से (विश्वा) सम्पूर्ण (वृत्राणि) अज्ञानों को (जिघ्नते) नाश करता है (च) और इसी श्रद्धा के भाव से (शूरः) शूरवीर (मदेषु) अपनी वीरता के मद में मस्त होकर (मघा) ऐश्वर्य्यों को (मंहते) प्राप्त होता है ॥१०॥

    भावार्थ

    श्रद्धा के भाव से ही विज्ञानी पुरुष अज्ञानरूपी शत्रुओं का नाश करता है और श्रद्धा के भाव से ही वीर पुरुष युद्ध में शत्रुओं को जीतता है। श्रद्धा के भाव से ही ऐश्वर्य्य को प्राप्त होता है ॥१०॥ पहला सूक्त और सत्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    मघा मंहते

    पदार्थ

    [१] (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (इत्) = निश्चय से (अस्य मदेषु) = इस सोम के उल्लासों में (विश्वा) = सब (वृत्राणि) = ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को (आजिघ्नते) = सर्वथा विनष्ट करता है । सोमरक्षण उसे शक्तिशाली बनाता है, शक्ति सम्पन्न बनकर यह वासनाओं से ऊपर उठता है। निर्बल मनुष्य को ही रोग व वासनाएँ सताती हैं । [२] (च) = और (शूरः) = वासनाओं को शीर्ण करनेवाला बनकर यह पुरुष (मघा मंहते) = खूब ही ऐश्वर्यों का दान करनेवाला बनता है। वासनामय जीवनवाला पुरुष दान नहीं कर पाता ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम जितेन्द्रिय बनकर वासनाओं का विनाश करें व दान की वृत्तिवाले बनें । सूक्त का मूल विषय 'सोमरक्षण के साधन व फल' है। अगले सूक्त का भी विषय यही है। यह सोमरक्षण करनेवाला निरन्तर मेधा की ओर चलता हुआ 'मेधातिथि' कहलाता है [अत सातस्यगमने] । यह प्रार्थना करता है कि-

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    विषय

    शूर इन्द्र के कर्त्तव्य

    भावार्थ

    (अस्य इत् मदेषु) इस अभिषिक्त राजा के (मदेषु) आनन्दोत्सवों में प्रसन्न होकर (शूरः इन्द्रः) शूरवीर, शत्रुनाशक सेनापति (विश्वा वृत्राणि) समस्त शत्रुओं को (आ जिघ्नते) नाश करता है और वह (मघा च मंहते) नाना ऐश्वर्य प्रदान करता है। इति सप्तदशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथातः पावमानसौम्यं नवमं मण्डलम्॥ मधुच्छन्दा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१, २, ६ गायत्री। ३, ७– १० निचृद् गायत्री। ४, ५ विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And in the joy of this soma of peace and spiritual power, Indra, the human soul, blest with strength of body, power of mind and courage of the soul destroys all the evils and shades of darkness and rises in glory.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    श्रद्धेच्या भावनेनेच विज्ञानी पुरुष अज्ञानरूपी शत्रूंचा नाश करतो व श्रद्धेच्या भावनेनेच वीर पुरुष युद्धात शत्रूंना जिंकतो. श्रद्धेच्या भावनेनेच ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥१०॥

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