ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
राजा॑नो॒ न प्रश॑स्तिभि॒: सोमा॑सो॒ गोभि॑रञ्जते । य॒ज्ञो न स॒प्त धा॒तृभि॑: ॥
स्वर सहित पद पाठराजा॑नः । न । प्रश॑स्तिऽभिः । सोमा॑सः । गोभिः॑ । अ॒ञ्ज॒ते॒ । य॒ज्ञः । न । स॒प्त । धा॒तृऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
राजानो न प्रशस्तिभि: सोमासो गोभिरञ्जते । यज्ञो न सप्त धातृभि: ॥
स्वर रहित पद पाठराजानः । न । प्रशस्तिऽभिः । सोमासः । गोभिः । अञ्जते । यज्ञः । न । सप्त । धातृऽभिः ॥ ९.१०.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(राजानः, न) नृपा इव (सोमासः) सौम्यस्वभाववान् परमात्मा (गोभिः) स्वप्रकाशमयज्योतिभिः (अञ्जते) प्रकाशते (यज्ञः, न) यथा यज्ञः (सप्त, धातृभिः) सप्तविधहोतृभिर्विराजते तथावत् परमात्मापि प्रकृतिविकृतिरूपमहदादिसप्तप्रकृतिभिः संसारावस्थायां द्योतत इत्यर्थः ॥३॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(राजानः, न) राजाओं के समान (सोमासः) सौम्य स्वभाववाला परमात्मा (गोभिः) अपनी प्रकाशमय ज्योतियों से (अञ्जते) प्रकाशित होता है (यज्ञः, न) जिस प्रकार यज्ञ (सप्त, धातृभिः) ऋत्विगादि सात प्रकार के होताओं से सुशोभित होता है, इसी प्रकार परमात्मा प्रकृति की विकृति महदादि सात प्रकृतिओं से संसारावस्था में सुशोभित होता है ॥३॥
भावार्थ
संसार भी एक यज्ञ है और इस यज्ञ के कार्यकारी ऋत्विगादि होता प्रकृति की शक्तियें हैं, जब परमात्मा इस बृहत् यज्ञ को करता है तो प्रकृति की शक्तियें उसमें ऋत्विगादि का काम करती हैं। इसी अभिप्राय से यह कथन किया है कि “तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः। तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये” यजुः ३१।९। उस पुरुषमेध यज्ञ को करते हुए ऋषि लोग सर्वद्रष्टा परमात्मा को अपना लक्ष्य बनाते हैं। इस प्रकार परमात्मा का इस मन्त्र में यज्ञरूप से वर्णन किया है। इसी अभिप्राय से “यज्ञो वै विष्णुः” शत० इत्यादि वाक्यों में परमात्मा को यज्ञ कथन किया है ॥३॥
Bhajan
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भाग 1/2
*ओ३म् अजी॑जनो॒ हि प॑वमान॒ सूर्यं॑ वि॒धारे॒ शक्म॑ना॒ पय॑: ।
गोजी॑रया॒ रंह॑माण॒: पुरं॑ध्या ॥
ऋग्वेद 9/10/3
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
मिलता है इस विश्व को आश्रय
चहुं दिशी उसी की कृपा है,
अतिशय
चहुं दिशी उसकी कृपा है
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
वह ब्रह्माण्ड की वस्तुएँ रचता
करता है उनको परिपावन
ऽऽऽऽऽऽऽ
इसलिए कहलाता है वो सोम
है पवमान उसका दामन
सदा संलग्न ना रहते यदि प्रभु
कैसे इनका होता निर्वासन?
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
मलिन, विषैले अशुद्ध पदार्थ
बन जाते हैं कष्ट का कारण
ऽऽऽऽऽऽऽ
सूर्य, वायु, वृष्टि-माध्यम से
अपवित्रता का करे निवारण
कण-कण है प्रभु के आश्रय में
कैसा अद्भुत दान का सावन !
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
सूर्य के द्वारा सौरमण्डल का
करते हो तुम पूर्ण सञ्चालन
ऽऽऽऽऽऽऽ
चमकाया आध्यात्मिक सूर्य
आत्मा का भी किया प्रकाशन
मेघ से निर्झर जल बरसाया
कैसा आनन्द पा रहा आत्मन्
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
मिलता है इस विश्व को आश्रय
चहुं दिशी उसी की कृपा है,
अतिशय
चहुं दिशी उसकी कृपा है
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :-- १.११.२०११ २२.२५ रात्रि*
राग :- खमाज
गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर, ताल कहरवा 8 मात्रा
निर्वासन = निकलना और विसर्जन होना
परिपावन = अत्यंत पवित्र, पवमान
दामन = आंचल
संलग्न = पूर्णता से जुड़ा हुआ
मलिन = मैला
निवारण = दूर करना, हटाना
संचालन = नियंत्रण,चलाना
प्रकाशन = प्रकाश करने वाला
निर्झर = लगातार, बिना रुके
Vyakhya
https://youtu.be/H8II-jPDnRc?si=kSwXumNcAHBnFclG
गायक, वादक व वैदिक भजन रचना:-
ललित मोहन साहनी
वीडियो निर्माण:-
अदिति शेठ
आज बिटिया अदिति ने ऋग्वेद के 9.10.3 मन्त्र पर एक और 91 वां नया वीडियो बनाया है जो मैं अपने प्रिय सभी श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ शेयर कर रहा हूं।
Hindi & English version
विषय
ज्ञान की वाणियों द्वारा सोमकणों का शरीर में स्थापन
पदार्थ
[१] (सोमासः) = सोमकण (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों से (अञ्जते) = शरीर में अलंकृत किये जाते हैं [अज्यन्ते सा० ] (न) = जैसे कि (राजानः) = राजा लोग (प्रशस्तिभिः) = प्रशंसा की वाणियों से तथा (न) = जैसे कि (यज्ञः) = यज्ञ (सप्त) = सात (धातृभिः) = होताओं से अलंकृत किया जाता है । [२] जैसे राजाओं की प्रशस्तियाँ की जाती हैं, इसी प्रकार इन सोमकणों की भी प्रशंसा होती है। जैसे यज्ञ सात होताओं द्वारा प्रणीत होता है, इसी प्रकार यह सोम शरीर में 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम् ' इन सात के संयम से सुरक्षित होता है । [३] 'शस्' धातु हिंसार्थक भी है । राजाओं का अलंकार यही है कि वे खूब ही शत्रुओं का शसन [हिंसन] करें। सोम भी शरीर में रोगकृमिरूप शत्रुओं का हिंसन करता है । इसी प्रकार यज्ञ जैसे सात होताओं द्वारा अलंकृत किया जाता है, यह सोम भी सात छन्दोंवाली इन ज्ञान की वाणियों से शरीर में अलंकृत किया जाता है। मनुष्य जब इन वाणियों में रुचिवाला बनता है तो वह वासनाओं से बचा रहता है। इस प्रकार ये सोमकण शरीर में ही सुरक्षित रहते हैं और शरीर को श्री - सम्पन्न बनाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोमकण शरीर को अलंकृत करनेवाले होते हैं। इनकी सुरक्षा के लिये आवश्यक है कि हम ज्ञान की वाणियों की ओर झुकाववाले बने रहें ।
विषय
नवाभिषिक्तों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सोमासः) स्नातक वा अभिषिक्त पदाधिकारी जन भी (प्रशस्तिभिः) उत्तम २ प्रशंसाओं से (राजानः) राजाओं के समान और (सप्त धातृभिः यज्ञः) सात छन्दों रूप वाणियों से यज्ञ के समान (सप्त धातृभिः) सर्पणशील व्यापक (गोभिः) वाणियों से (अञ्जते) कान्ति और तेज से प्रकट होते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ६, ८ निचृद् गायत्री। ३, ५, ७, ९ गायत्री। ४ भुरिग्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Like kings celebrated by songs of praise, like yajna beautified by seven priests, the soma seekers are hallowed by songs of praise as soma is energised by sun-rays.
मराठी (1)
भावार्थ
जग ही एक यज्ञ आहे व या यज्ञाचे कार्यकारी ऋत्विग इत्यादी होता प्रकृतीच्या शक्ती आहेत. जेव्हा परमात्मा हा बृहत यज्ञ करतो तेव्हा प्रकृतीच्या शक्ती ऋत्विग इत्यादी कार्य करतात. याच अभिप्रायाने हे कथन केलेले आहे की ‘‘तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रत:’’ ‘‘तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये’’ यजु. ३१।९ त्या पुरुषमेध यज्ञाला करत ऋषी लोक सर्वदृष्टा असलेल्या परमेश्वराला आपले लक्ष्य बनवितात. या प्रकारे परमेश्वराचे या मंत्रात यज्ञरूपाने वर्णन केलेले आहे. याच अभिप्रायाने ‘‘यज्ञो वै विष्णु’’ शत. इत्यादी वाक्यात परमेश्वराच्या यज्ञाचे कथन केलेले आहे. ॥३॥
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