ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 109/ मन्त्र 13
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
इन्दु॑: पविष्ट॒ चारु॒र्मदा॑या॒पामु॒पस्थे॑ क॒विर्भगा॑य ॥
स्वर सहित पद पाठइन्दुः॑ । प॒वि॒ष्ट॒ । चारुः॑ । मदा॑य । अ॒पाम् । उ॒पऽस्थे॑ । क॒विः । भगा॑य ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्दु: पविष्ट चारुर्मदायापामुपस्थे कविर्भगाय ॥
स्वर रहित पद पाठइन्दुः । पविष्ट । चारुः । मदाय । अपाम् । उपऽस्थे । कविः । भगाय ॥ ९.१०९.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 109; मन्त्र » 13
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दुः) प्रकाशस्वरूपः परमात्मा (कविः) यः सर्वज्ञः (अपां, उपस्थे) कर्मणां सन्निधौ (भगाय) ऐश्वर्य्यप्राप्तये (चारुः, मदाय) सर्वोपर्यानन्दप्राप्तये (पविष्ट) मां पुनातु ॥१३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दुः) प्रकाशस्वरूप परमात्मा (कविः) जो सर्वज्ञ है, वह (अपां, उपस्थे) कर्मों की सन्निधि में (भगाय) ऐश्वर्य्यप्राप्ति तथा (चारुः, मदाय) सर्वोपरि आनन्दप्राप्ति के लिये (पविष्ट) हमको पवित्र बनाता है ॥१३॥
भावार्थ
इस मन्त्र का भाव यह है कि जो पुरुष यज्ञादि कर्म तथा अन्य सत्कर्म करते हैं, उन्हीं को परमात्मा पवित्र बनाता है, जिससे वह ऐश्वर्य्यप्राप्ति द्वारा आनन्दोपभोग करते हैं ॥१३॥
विषय
मदाय - भगाय
पदार्थ
(अपाम् उपस्थे) = कर्मों की गोद में, अर्थात् निरन्तर यज्ञादि उत्तम कर्मों में लगे रहने पर यह (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला सोम (पविष्ट) = प्राप्त होता है। यह (चारुः) = सुन्दर व कल्याण कर है, (मदाय) = जीवन में उल्लास के लिये है । यह सोम (कविः) = क्रान्तदर्शी होता हुआ, हमें सूक्ष्म व तीव्र बुद्धि वाला बनाता हुआ (भगाय) = ज्ञानैश्वर्य की प्राप्ति के लिये होता है।
भावार्थ
भावार्थ - सोम 'इन्दु, चारु व कवि' है यह आनन्द व ज्ञानैश्वर्य को प्राप्त करानेवाला होता है
विषय
उसका ध्यानाभ्यास।
भावार्थ
(इन्दुः) तेजः स्वरूप, इस देह की ओर जाने वाला, (चारुः) कर्मफल का भोक्ता (कविः) स्तुति करने वाला, जीव वा क्रान्तदर्शी विद्वान् साधक (मदाय) आनन्दस्वरूप (भगाय) ऐश्वर्यवान् प्रभु को प्राप्त करने के लिये (अपाम् उपस्थे) प्राणों के बल पर (पविष्ट) अपने को पवित्र करे। वह प्राणायाम द्वारा साधना करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ७, ८, १०, १३, १४, १५, १७, १८ आर्ची भुरिग्गायत्री। २–६, ९, ११, १२, १९, २२ आर्ची स्वराड् गायत्री। २०, २१ आर्ची गायत्री। १६ पादनिचृद् गायत्री॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indu, Soma spirit of refulgent divinity, blissful and poetically creative is the omniscient highest purifying and saving spirit and power for the sake of honour and joy on the basis of one’s own Karmic performance.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात हा भाव आहे की, जो पुरुष यज्ञ इत्यादी कर्म व इतर सत्कर्म करतात त्यांनाच परमात्मा पवित्र बनवितो, ज्यामुळे ते ऐश्वर्य प्राप्तीद्वारे आनंदाचा उपभोग करतात. ॥१३॥
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