ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 109/ मन्त्र 14
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
बिभ॑र्ति॒ चार्विन्द्र॑स्य॒ नाम॒ येन॒ विश्वा॑नि वृ॒त्रा ज॒घान॑ ॥
स्वर सहित पद पाठबिभ॑र्ति । चारु॑ । इन्द्र॑स्य । नाम॑ । येन॑ । विश्वा॑नि । वृ॒त्रा । ज॒घान॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
बिभर्ति चार्विन्द्रस्य नाम येन विश्वानि वृत्रा जघान ॥
स्वर रहित पद पाठबिभर्ति । चारु । इन्द्रस्य । नाम । येन । विश्वानि । वृत्रा । जघान ॥ ९.१०९.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 109; मन्त्र » 14
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
स परमात्मा (इन्द्रस्य) कर्मयोगिनः (चारु) सुन्दरं (नाम) शरीरं (बिभर्ति) निर्माति (येन) येन शरीरेण (विश्वानि) सकलानि (वृत्रा) अज्ञानानि (जघान) कर्मयोगी नाशयति ॥१४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्रस्य) परमात्मा कर्मयोगी के (चारु, नाम) सुन्दर शरीर को (बिभर्ति) निर्माण करता है, (येन) जिससे वह (विश्वानि) सम्पूर्ण (वृत्रा) अज्ञान (जघान) नाश करता है ॥१४॥
भावार्थ
इस मन्त्र का तात्पर्य यह है कि यद्यपि स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण ये तीनों प्रकार के शरीर सब जीवों को प्राप्त हैं, परन्तु कर्मयोगी के सूक्ष्मशरीर में परमात्मा एक प्रकार का दिव्यभाव उत्पन्न कर देता है, जिससे अज्ञान का नाश और ज्ञान की वृद्धि होती है, इस भाव से मन्त्र में कर्मयोगी के शरीर को बनाना लिखा है ॥१४॥
विषय
प्रभु नाम स्मरण व वासना विनाश
पदार्थ
शरीर में सोम के रक्षण को करनेवाला पुरुष (इन्द्रस्य) = उस परमैश्वर्यशाली सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु के (चारु नाम) = सुन्दर कल्याणकर नाम को (बिभर्ति) = धारण करता है । वस्तुतः यह नाम स्मरण ही हमें सोमरक्षण के योग्य बनाता है। (येन) = जिस प्रभु के नाम स्मरण के द्वारा (विश्वानि) = सब (वृत्रा) = ज्ञान पर आवरण के रूप में आ जानेवाली वासनाओं को (जघान) = नष्ट करता है। नाम स्मरण से वासनाएँ नष्ट होती हैं, वासना विनाश से सोम का रक्षण होता है, सोमरक्षण से प्रभु दर्शन होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- 'प्रभु नाम स्मरण' सब वासनाओं के विनाश का साधन बनता है ।
विषय
प्राणायाम साधन।
भावार्थ
वह (इन्द्र) उस ऐश्वर्यवान्, सब विघ्नों के नाशक प्रभु, परमेश्वर का (चारु नाम बिभर्त्ति) सुन्दर नाम लेता है, धारण करता है, (येन) जिससे (विश्वानि वृत्रा जवान) वह समस्त विघ्नों का नाश कर देता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ७, ८, १०, १३, १४, १५, १७, १८ आर्ची भुरिग्गायत्री। २–६, ९, ११, १२, १९, २२ आर्ची स्वराड् गायत्री। २०, २१ आर्ची गायत्री। १६ पादनिचृद् गायत्री॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That Soma spirit of beauteous and blissful divinity bears the name of Indra, power of omnipotence, by virtue of which it overcomes and destroys all the darkness and evil of the world.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्राचे तात्पर्य हे आहे की, जरी स्थूल, सूक्ष्म व कारण या तीन प्रकारचे शरीर सर्व जीवांना प्राप्त आहेत. तरी कर्मयोग्याच्या सूक्ष्म शरीरात परमात्मा एक प्रकारचा दिव्यभाव उत्पन्न करतो, ज्यामुळे अज्ञानाचा नाश व ज्ञानाची वृद्धी होते. या भावाने मंत्रात कर्मयोग्याच्या शरीराबाबत लिहिले आहे. ॥१४॥
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