ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 109/ मन्त्र 2
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - स्वराडार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
इन्द्र॑स्ते सोम सु॒तस्य॑ पेया॒: क्रत्वे॒ दक्षा॑य॒ विश्वे॑ च दे॒वाः ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑ । ते॒ । सो॒म॒ । सु॒तस्य॑ । पे॒याः॒ । क्रत्वे॑ । दक्षा॑य । विश्वे॑ । च॒ । दे॒वाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रस्ते सोम सुतस्य पेया: क्रत्वे दक्षाय विश्वे च देवाः ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रः । ते । सोम । सुतस्य । पेयाः । क्रत्वे । दक्षाय । विश्वे । च । देवाः ॥ ९.१०९.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 109; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे सर्वोत्पादक ! (ते) तव (सुतस्य) साक्षात्काररसं (इन्द्रः) कर्मयोगी (क्रत्वे) विज्ञानाय (दक्षाय) चातुर्याय (पेयाः) पिबेत् (च) तथा च (विश्वे) सर्वे (देवाः) देवगणाः तवानन्दं पिबन्तु ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (ते) तुम्हारे (सुतस्य) साक्षात्काररूप रस को (इन्द्रः) कर्मयोगी (क्रत्वे) विज्ञान तथा (दक्षाय) चातुर्य्य के लिये (पेयाः) पान करें (च) और (विश्वे, देवाः) सब देव तुम्हारे आनन्द को पान करें ॥२॥
भावार्थ
परमात्मानन्द के पान करने का अधिकार एकमात्र दैवीसम्पत्तिवाले पुरुषों को ही हो सकता है, अन्य को नहीं, इसी अभिप्राय से यहाँ कर्मयोगी, ज्ञानयोगी तथा देवों के लिये ब्रह्मामृत का वर्णन किया गया है ॥२॥
विषय
प्रज्ञान+बल
पदार्थ
हे सोम ! (सुतस्य ते) = उत्पन्न हुए हुए तेरा (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (पेयाः) = पान करे । जितेन्द्रियता के द्वारा शरीर के अन्दर ही तेरा रक्षण करे। इस प्रकार यह जितेन्द्रिय पुरुष (क्रत्वे) = प्रज्ञान के लिये तथा (दक्षाय) = बल के लिये हो । (च) = और इस सोमरक्षण के द्वारा (विश्वे देवा:) = सब दिव्य गुण इस जितेन्द्रिय पुरुष को प्राप्त हों। 'इन्द्र' इन सब देवों का अधिष्ठाता हो ।
भावार्थ
भावार्थ - जितेन्द्रिय पुरुष सोम का पान करता हुआ प्रज्ञान बल व सब दिव्य गुणों को प्राप्त हो ।
विषय
सद्भावना।
भावार्थ
हे (सोम) जीवात्मन् वा जीव गण ! (सुतस्य ते) उत्पन्न हुए तेरी (इन्द्रः पेयाः) ऐश्वर्यप्रद स्वामी जगदीश्वर रक्षा करे। और (क्रत्वे) तेरे ज्ञान प्राप्त करने और (दक्षाय) बल-उत्साह की वृद्धि करने के लिये (विश्वे देवाः च) समस्त विद्वान् गण भी तेरा पालन करें। (२) सोम वनस्पति अन्नादि को ज्ञान बल की वृद्धयर्थ (इन्द्रः) जीवगण और विद्वान् (पिबन्तु) भोग करें वा पालन करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ७, ८, १०, १३, १४, १५, १७, १८ आर्ची भुरिग्गायत्री। २–६, ९, ११, १२, १९, २२ आर्ची स्वराड् गायत्री। २०, २१ आर्ची गायत्री। १६ पादनिचृद् गायत्री॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of glory and grandeur, loved, realised and reverenced, let Indra, the ruling soul, experience the ecstasy for noble action and efficiency. Let all divinities of the world enjoy the divine presence.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या आनंदाचे पान करण्याचा अधिकार एकमेव दैवी संपत्तिवान पुरुषांनाच होऊ शकतो, इतरांना नाही याच अभिप्रायाने येथे कर्मयोगी, ज्ञानयोगी व देवांसाठी ब्रह्मामृताचे वर्णन केलेले आहे. ॥२॥
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