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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 114 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 114/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    य इन्दो॒: पव॑मान॒स्यानु॒ धामा॒न्यक्र॑मीत् । तमा॑हुः सुप्र॒जा इति॒ यस्ते॑ सो॒मावि॑ध॒न्मन॒ इन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । इन्दोः॑ । पव॑मानस्य । अनु॑ । धामा॑नि । अक्र॑मीत् । तम् । आ॒हुः॒ । सु॒ऽप्र॒जाः । इति॑ । यः । ते॒ । सो॒म॒ । अवि॑न्धत् । मनः॑ । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य इन्दो: पवमानस्यानु धामान्यक्रमीत् । तमाहुः सुप्रजा इति यस्ते सोमाविधन्मन इन्द्रायेन्दो परि स्रव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । इन्दोः । पवमानस्य । अनु । धामानि । अक्रमीत् । तम् । आहुः । सुऽप्रजाः । इति । यः । ते । सोम । अविन्धत् । मनः । इन्द्राय । इन्दो इति । परि । स्रव ॥ ९.११४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 114; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ मुक्तैश्वर्यं निरूप्यते।

    पदार्थः

    (यः) यो जनः (पवमानस्य) सर्वपावकस्य (इन्दोः) प्रकाशमयपरमात्मनः (धामानि) ज्ञानकर्मोपासनारूपकाण्डत्रयस्य (अनु, अक्रमीत्) अनुष्ठानं करोति (तं) तं जनं (सुप्रजाः, इति, आहुः) शुभजन्मानं कथयन्ति। (सोम) हे परमात्मन् ! (यः) यः पुरुषः (ते) त्वयि (मनः) चेतः (अविधत्) योजयति तस्मै (इन्द्राय) उपासकाय (इन्दो) हे परमात्मन् ! (परि, स्रव) ज्ञानगत्या प्रवहतु ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब मुक्तपुरुष के ऐश्वर्य का निरूपण करते हैं।

    पदार्थ

    (यः) जो पुरुष (पवमानस्य) सबको पवित्र करनेवाले (इन्दोः) प्रकाशस्वरूप परमात्मा के (धामानि) कर्म, उपासना तथा ज्ञानरूप तीनो काण्डों का (अनु, अक्रमीत्) भले प्रकार अनुष्ठान करता है, (तं) उसको (सुप्रजाः, इति, आहुः) शुभ जन्मवाला कहा जाता है। (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (यः) जो पुरुष (ते) तुम्हारे में (मनः) मन (अविधत्) लगाता है, (इन्द्राय) उस उपासक के लिये (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! आप (परि, स्रव) ज्ञानगति से प्रवाहित हों ॥१॥

    भावार्थ

    जो पुरुष कर्म, उपासना तथा ज्ञान द्वारा परमात्मप्राप्ति का भले प्रकार अनुष्ठान करता है, या यों कहो कि जब उपासक अनन्य भक्ति से परमात्मपरायण होकर उसी की उपासना में तत्पर रहता है, तब परमात्मा उसके अन्तःकरण में स्वसत्ता का आविर्भाव उत्पन्न करते हैं ॥१॥

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    विषय

    सुप्रजा:

    पदार्थ

    (यः) = जो (सोम) = हे सोम ! (पवमानस्य) = पवित्र करनेवाले (इन्दो:) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ये तेरे (धामानि) = तेजों को (अनु अक्रमीत्) = अनुक्रमेण प्राप्त करता है, (तम्) = उसी को ('सुप्रजाः') = शोभन प्रजा वाला व उत्तम विकास वाला (इति) = इस प्रकार (आहुः) = कहते हैं। सोम को सुरक्षित करके सोम के तेजों को धारण करनेवाला पुरुष ही 'सुप्रजा' बनता है । हे (इन्दो) = सोम ! (यः) = जो (ते) = तेरी प्राप्ति के लिये (मनः अविधत्) = मन को, दृढसंकल्प को करता है उस (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (परिस्स्रव) = तू शरीर में चारों ओर परिस्रुत हो । तूने ही शरीर में व्याप्त होकर सब शक्तियों का सम्यक् विकास करना है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण के लिये हम दृढ़संकल्प वाले बनें। इस सोम की शक्तियों को धारण ' बन पायेंगे।

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    विषय

    पवमान सोम। उत्तम गृहपति, उत्तम प्रजावान् का लक्षण।

    भावार्थ

    (यः) जो (इन्दोः) ऐश्वर्यवान् (पवमानस्य) सर्वव्यापक, सर्वप्रेरक प्रभु के (धामानि) तेजों, बलों और कार्यों का (अनु अक्रमीत्) अनुगमन करता है (तम्) उसको (सु-प्रजाः इति) उत्तम प्रजा और उत्तर पुत्र-पौत्रादि वाला राजा वा उत्तम गृहपति ऐसा (आहुः) कहते हैं। हे (सोम) उत्तम वीर्यवन् ! उत्तम शास्तः ! और (यः ते) जो तेरे (मनः अनु अविधत्) ज्ञान और चित्त के अनुकूल आचरण करता है, (तम् सुप्रजाः इति आहुः) उसको भी उत्तम प्रजा का स्वामी, ‘प्रजापति’ ऐसा ही कहते हैं। हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (इन्द्राय परिस्रव) ऐश्वर्य देने वाले, स्वामिपद के लिये आगे बढ़। वा हे प्रभो ! तू इस जीव के लिये सुखों की सब ओर से वर्षा कर। हे विद्वन् ! तू ऐश्वर्ययुक्त जीव के लिये ज्ञान प्रदान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २ विराट् पंक्तिः। ३, ४, पंक्तिः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    One who rises and lives upto the presence, rules and laws of vibrant omnipresent Soma, light of the world, they say, he is the man, fulfilled in the self and family. O Soma, spirit of light and joy divine, vibrate and bless the man who dedicates his mind and sense, will and action to your presence and law.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो पुरुष ज्ञान, कर्म, उपासनेद्वारे परमात्मप्राप्तीचे चांगल्या प्रकारे अनुष्ठान करतो किंवा जो उपासक अनन्य भक्तीने परमात्मपरायण बनून त्याच्याच उपासनेत तत्पर असतो तेव्हा परमात्मा त्याच्या अंत:करणात स्व सत्तेचा आविर्भाव (प्रकटीकरण) उत्पन्न करतो. ॥१॥

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