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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गोतमोः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुम्मतीगायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र सोमा॑सः स्वा॒ध्य१॒॑: पव॑मानासो अक्रमुः । र॒यिं कृ॑ण्वन्ति॒ चेत॑नम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सोमा॑सः । स्वा॒ध्यः॑ । पव॑मानासः । अ॒क्र॒मुः॒ । र॒यिम् । कृ॒ण्व॒न्ति॒ । चेत॑नम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सोमासः स्वाध्य१: पवमानासो अक्रमुः । रयिं कृण्वन्ति चेतनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सोमासः । स्वाध्यः । पवमानासः । अक्रमुः । रयिम् । कृण्वन्ति । चेतनम् ॥ ९.३१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 31; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ शूरवीरगुणा वर्ण्यन्ते।

    पदार्थः

    (सोमासः) शूरवीराः (स्वाध्यः) उच्चोद्देश्याः (पवमानासः) वीर्य्येण भुवनं पवित्रयन्तः (प्राक्रमुः) अन्यायकारिणः शत्रून् आक्राम्यन्ति किञ्च उक्ताक्रमणेन (रयिम्) स्वमैश्वर्य्यं (चेतनम्) लोकोत्तरं (कृण्वन्ति) विदधते ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब शूरवीरों के गुणों का वर्णन किया जाता है।

    पदार्थ

    (सोमासः) शूरवीर लोग (स्वाध्यः) उच्चोदेश्यवाले (पवमानासः) वीरता धर्म से संसार को पवित्र करते हुए (प्राक्रमुः) अन्यायकारी शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं और उक्त प्रकार के आक्रमण से (रयिम्) ऐश्वर्य को (चेतनम्) जीता जागता (कृण्वन्ति) बनाते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जो लोग उच्चोद्देश्य से अर्थात् देश की रक्षा के लिये शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं, वे लोग अपने ऐश्वर्य को पुनरुज्जीवित करके अपने यश को विमल करके दशों दिशाओं में फैलाते हैं ॥१॥

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    विषय

    चेतनं रयिम्

    पदार्थ

    [१] (सोमासः) = सोमकण (प्र अक्रमुः) = शरीर में प्रकृष्ट गतिवाले होते हैं। शरीर में गतिवाले होकर ये (स्वाध्यः) = उत्कृष्ट (धी) = बुद्धि व ज्ञानवाले होते हैं 'सुध्मानाः सुकर्माणो वा सा० ' उत्तम ध्यान व कर्मोंवाले होते हैं। (पवमानासः) = ये हमारे जीवनों को पवित्र करते हैं । [२] सुरक्षित होने पर ये (चेतनं रयिम्) = ज्ञान धन को (कृण्वन्ति) = हमारे लिये करनेवाले होते हैं। सोमकण ज्ञानाग्नि का ईंधन बनते हैं । इस दीप्त ज्ञानाग्नि से ज्ञानधन प्राप्त होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें उत्तम ध्यान कर्म व ज्ञानवाला बनाता है। हमें यह पवित्र करता है ।

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    विषय

    पवमान सोम। देह में प्राणों का कार्य। राष्ट्र में विद्वानों और वीरों का कार्य

    भावार्थ

    (सोमासः) देह को प्रेरणा देने, सञ्चालन करने वाले (पवमानासः) उसको गति देने और नाड़ी २ में रक्तादि रस रूप से व्यापने वाले (स्वाध्यः) उत्तम चेतना रूप ज्ञान और कर्म को धारण करने वाले, प्राण गण (प्र अक्रमुः) देह में उत्तम रीति से सञ्चार करते हैं, वे (रयिं) मूर्त्त देह को चेतन (कृण्वन्ति) चेतनायुक्त बनाये रखते हैं उसी प्रकार वीर विद्वान् जन, पवित्र हृदय, उत्तम कर्म प्रज्ञावान् होकर (प्र अक्रमुः) एक से एक आगे उत्तम पद बढ़ाते और (रयिं) ऐश्वर्य और (चेतनं) ज्ञान का (कृण्वन्ति) सम्पादन करें। वीर लोग धन, यश का और विद्वान् लोग ज्ञान का सम्पादन किया करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतम ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१ ककुम्मती गायत्री। २ यवमध्या गायत्री। ३, ५ गायत्री। ४, ६ निचृद् गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Exhilarating, thoughtful, pure and purifying soma powers of divine nature and humanity flow, advance, create and promote wealth, honour and excellence of enlightenment and divine awareness.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक उच्च उद्देशाने अर्थात देशाचे रक्षण करण्यासाठी शत्रूंवर आक्रमण करतात ते लोक आपल्या ऐश्वर्याला पुनरुज्जीवित करून आपले यश उज्ज्वल करून दाही दिशांना प्रसृत करतात. ॥१॥

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