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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 4
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अनु॑ द्र॒प्सास॒ इन्द॑व॒ आपो॒ न प्र॒वता॑सरन् । पु॒ना॒ना इन्द्र॑माशत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑ । द्र॒प्सासः॑ । इन्द॑वः । आपः॑ । न । प्र॒वता॑ । अ॒स॒र॒न् । पु॒ना॒नाः । इन्द्र॑म् । आ॒श॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु द्रप्सास इन्दव आपो न प्रवतासरन् । पुनाना इन्द्रमाशत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनु । द्रप्सासः । इन्दवः । आपः । न । प्रवता । असरन् । पुनानाः । इन्द्रम् । आशत ॥ ९.६.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 6; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (द्रप्सासः) गमनशील ईश्वरः (इन्दवः) ऐश्वर्यसम्पन्नः (अनु) सर्वत्र अश्नुते (प्रवता, आपः, न) स्यन्दमानं जलमिव (असरन्) सरति स एव (पुनानाः) लोकं शोधयन् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यं (आशत्) ददाति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (द्रप्सासः) गतिशील परमात्मा (इन्दवः) ऐश्वर्यसम्पन्न (अनु) सर्वत्र व्याप्त हो रहा है (प्रवता, आपः., न) बहते हुए जलों के समान (असरन्) गति करता है। उक्त परमात्मा (पुनानाः) पवित्र करता हुआ (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्य को (आशत्) देता है।

    भावार्थ

    जिस प्रकार सर्वत्र बहते हुए जल इस पृथिवी को नाना प्रकार के लता गुल्मादिकों से सुशोभित करते हैं, इसी प्रकार परमात्मा अपनी व्यापकता से प्रत्येक प्राणी में आह्लाद उत्पन्न करता है ॥४॥

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    विषय

    सोमरक्षण से पवित्रता

    पदार्थ

    [१] (द्रप्सास:) = [Drop ] कणों के रूप में होनेवाले (इन्दवः) = ये सोम [ वीर्यकण] (आप: न) = व्याप्त होनेवाले जलों के समान (प्रवता अनु असरन्) = [ प्रवत् Height, elevation] शरीर में उच्चता के अनुसार गतिवाले होते हैं। शरीर में, प्राणसाधना के द्वारा, जब इनकी ऊर्ध्वगति होती है तो ये सारे शरीर में व्याप्त हो जाते हैं । [२] (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय पुरुष को (पुनाना:) = पवित्र करते हुए (आशत) = ये व्याप्त करनेवाले होते हैं । जितेन्द्रियता इन सोमकणों के रक्षण का साधन बनती है । रक्षित सोमकण इस जितेन्द्रिय पुरुष को आधिव्याधियों से शून्य व पवित्र बनाते हैं।

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    विषय

    उसको निभाने का उपदेश ।

    भावार्थ

    (द्रप्सासः इन्दवः) द्रुत वेग से जाने वाले, स्नेहार्द्र जन (अपः न) जलधाराओं के समान (प्रवता) उत्तम मार्ग से (अनु असरन्) ऐश्वर्यवान् राजा का अनुसरण करें और वे भी (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान्, तेजस्वी, शत्रुहन्ता वीर को (पुनानाः) अभिषेकादि से पवित्र करते हुए उसको कलङ्कित न होने देते हुए (इन्द्रम् आशत) राज्य कार्य को प्राप्त हों।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवता वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः— १, २, ७ निचृद्र गायत्री। ३, ६, ९ गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The streams of that inspiring power and passion flow on without interruption like showers of rain and, inspiring, sanctifying and beatifying, bring us honour, excellence and fame for the soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या प्रकारे सर्वत्र वाहणारे जल या पृथ्वीला नाना प्रकारच्या वृक्ष लतांनी सुशोभित करते. याच प्रकारे परमेश्वर आपल्या व्यापकतेने प्रत्येक प्राण्यात आल्हाद उत्पन्न करतो. ॥४॥

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