ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
म॒न्द्रया॑ सोम॒ धार॑या॒ वृषा॑ पवस्व देव॒युः । अव्यो॒ वारे॑ष्वस्म॒युः ॥
स्वर सहित पद पाठम॒न्द्रया॑ । सो॒म॒ । धार॑या । वृषा॑ । प॒व॒स्व॒ । दे॒व॒ऽयुः । अव्यः॑ । वारे॑षु । अ॒स्म॒ऽयुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
मन्द्रया सोम धारया वृषा पवस्व देवयुः । अव्यो वारेष्वस्मयुः ॥
स्वर रहित पद पाठमन्द्रया । सोम । धारया । वृषा । पवस्व । देवऽयुः । अव्यः । वारेषु । अस्मऽयुः ॥ ९.६.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनः सकाशाद्बलमाह्लादश्च प्रार्थ्यते।
पदार्थः
(सोम) हे शान्त्यादिगुणसम्पन्न परमात्मन् ! भवान् (मन्द्रया) आह्लादिकया (धारया) वृष्ट्या (पवस्व) अस्मान् पुनातु यतो भवान् (वृषा) सर्वकामनाप्रदः (देवयुः) देवप्रियः (वारेषु अव्यः) पृथ्व्यादिविविधलोकेषु व्यापकश्चास्ति भवान् (अस्मयुः) अस्मान्सदेच्छन् प्रीणातु ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा से बल और आह्लाद की प्रार्थना की जाती है।
पदार्थ
(सोम) हे शान्त्यादिगुणसम्पन्न परमात्मन् ! आप (मन्द्रया) आह्लाद करनेवाली (धारया) वृष्टि से (पवस्व) हमको पवित्र करें, क्योंकि आप (वृषा) सब कामनाओं के देनेवाले हैं। (देवयुः) देवताओं के प्रिय हैं और (वारेषु अव्यः) पृथिव्यादि लोक-लोकान्तरों में व्यापक हैं। आप (अस्मयुः) हमको प्राप्त होकर आनन्दित करें ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा इस ब्रह्माण्ड में सर्वत्र विराजमान है। दैवी सम्पत्तिवाले लोग उसको पा सकते हैं। इस अभिप्राय से परमात्मा को इस मन्त्र में देवप्रिय कथन किया गया है। वस्तुतः परमात्मा न किसी का प्रिय और न किसी का द्वेषी है ॥१॥
विषय
'देवयु - अस्मयु' सोम
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (मन्द्रया) = मदकर - उल्लास की जनक, (धारया) = धारा से, धारणशक्ति से (पवस्व) = हमारे जीवनों को पवित्र कर । सोम शरीर में ही प्रवाहित होता है, तो यह शरीर का धारण तो करता ही है, हृदय में आनन्द व उल्लास को उत्पन्न करता है । [२] (वृषा) = यह हमारे शरीरों को शक्तिशाली बनाता है, (देवयुः) = दिव्य गुणों को हमारे साथ जोड़नेवाला होता है। (अव्यः) = [अवति इति अव: 'अव्-अच्, तेषु साधु'] रक्षण करनेवालों में यह उत्तम है तथा (वारेषु) = रोग निवारणादि कार्यों में (अस्मयुः) = हमारे हित की कामनावाला होता है ।
भावार्थ
भावार्थ-रक्षित सोम हमारे साथ दिव्य गुणों को जोड़ता है और रोगादि का निवारण करता हुआ हमारा हित करता है ।
विषय
पवमान सोम। राजाके कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! तू (वारेषु) वरणीय पदों, और वारण करने योग्य शत्रुओं के बीच में भी (अस्मयुः) हमारा प्रिय, (अव्यः) रक्षक, स्नेही और (देवयुः) विद्वान् वीरों को चाहता हुआ, (वृषा) बलवान् होकर (मन्द्रया धारया) हर्षजनक वाणी से (पवस्व) हमें प्राप्त हो। हमें पवित्र कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवता वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः— १, २, ७ निचृद्र गायत्री। ३, ६, ९ गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, divine spirit of peace and beatitude, you are the generous power divine, lover of divinities, pervasive in stars and planets in space. You are for us too, pray flow in exciting streams of joy and bless us with peace and purity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा या ब्रह्मांडात सर्वत्र विराजमान आहे. दैवी संपत्तिवान लोक त्याला प्राप्त करू शकतात. या अभिप्रायाने परमात्म्याला या मंत्रात देवप्रिय म्हटलेले आहे. वास्तविक परमात्मा कुणाचा प्रिय नाही किंवा कुणाचा द्वेषी नाही. ॥१॥
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