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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    यमत्य॑मिव वा॒जिनं॑ मृ॒जन्ति॒ योष॑णो॒ दश॑ । वने॒ क्रीळ॑न्त॒मत्य॑विम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । अत्य॑म्ऽइव । वा॒जिन॑म् । मृ॒जन्ति॑ । योष॑णः । दश॑ । वने॑ । क्रीळ॑न्तम् । अति॑ऽअविम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमत्यमिव वाजिनं मृजन्ति योषणो दश । वने क्रीळन्तमत्यविम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । अत्यम्ऽइव । वाजिनम् । मृजन्ति । योषणः । दश । वने । क्रीळन्तम् । अतिऽअविम् ॥ ९.६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 6; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यम् अत्यम्) यं सर्वगं परमात्मानं (योषणः दश) दश प्रकृतयः (वाजिनम् इव) जीवात्मानमिव (मृजन्ति) शोधयन्ति स जीवात्मा यो हि (वने) शरीररूपे वने (क्रीळन्तम्) विहरति तथा च (अत्यविम्) इन्द्रियग्रामात्परोऽस्ति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यम्) जिस (अत्यम्) सर्वव्यापक परमात्मा को (योषणः दश) दश प्रकार की प्रकृतियें (वाजिनम् इव) जीवात्मा के समान (मृजन्ति) शोभायुक्त करती हैं, वह जीवात्मा जो (वने) शरीररूपी वन में (क्रीळन्तम्) कीड़ा कर रहा है और (अत्यविम्) इन्द्रियसङ्घात से परे है ॥५॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार पाँच ज्ञानेन्द्रिय और पाँच कर्मेन्द्रिय ये दशों मिल कर जीवात्मा की महिमा को बताते हैं, इसी प्रकार पाँच सूक्ष्मभूत और स्थूलभूत ये दोनों प्रकृतियें मिलकर परमात्मा के महत्त्व का वर्णन करते हैं। कई एक लोगों ने दश के अर्थ यहाँ दश उँगुलियें दी हैं, उनके मत में सोम रस दश उँगुलियों से लपेटकर खाया जाता है, इसलिये दश से उन्होंने दश उँगुलियें ली हैं। पहले तो ये वात अन्यथा है कि सोमरस उँगुलियों से खाया जाता है, क्योंकि सोमरस पीने की चीज है, खाने की नहीं। अन्य युक्ति ये है कि इस मण्डल के प्रथम सूक्त मं० ७ में गृभ्णन्ति योषणा दश ये पाठ आया है, जिससे दश इन्द्रियों का ग्रहण किया गया है, उँगुलियों का नहीं ॥५॥२६॥

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    विषय

    दश मोषण:

    पदार्थ

    [१] 'योषा' शब्द पत्नी का वाचक है। 'इन्द्र' जीवात्मा है, इन्द्रियाँ उसकी पत्नी के समान हैं। संख्या में ये १० हैं, सो 'दश योषण:' इन शब्दों में यहाँ इनका उल्लेख हुआ है। ये (दश योषण): = दस इन्द्र की पत्नियाँ के रूप में विद्यमान १० इन्द्रियाँ (वाजिनम्) = शक्तिशाली (अत्यं इव) = घोड़े के समान (यम्) = जिस सोम को (मृजन्ति) = शुद्ध करती हैं। सोम शरीर में घोड़े के समान है । रथ घोड़े से गतिवाला होता है। यह शरीर सोम से गतिवाला होता है । सोम के अभाव में शरीर समाप्त हो जाता है । इन्द्रियाँ यदि विषयासक्त नहीं होती तो यह सोम पवित्र बना रहता है। इस प्रकार इन्द्रियाँ इसका शोधन करती हैं । [२] इस सोम का ये शोधन करती हैं जो कि वने (क्रीडन्तम्) = उपासना में यह ज्ञान की किरणों में [worshipping; A Ray of light] क्रीडा करता है, अर्थात् हमें उपासना की वृत्तिवाला बनाता है और हमारे जीवन को प्रकाशमय करता है। इस प्रकार ('अत्यविम्') = जो अतिशयेन रक्षा करनेवाला है। [३] प्रस्तुत मन्त्र में सोमरक्षण के तीन लाभों का संकेत है- [क] यह हमें शक्तिशाली बनाता है [वाजिनम्], [ख] हमें उपासना की वृत्तिवाला करता है [वन] तथा हमारी ज्ञानरश्मियों को दीप्त करता है [वन] ।

    भावार्थ

    भावार्थ- इन्द्रियाँ विषयासक्त नहीं होती तो सोम को शुद्ध बनायें रखती हैं। यह सोम हमें शक्तिशाली, उपासनामय और ज्ञान की रश्मियोंवाला बनाता है।

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    विषय

    बलशाली वीरों का जलधाराओं के समान कर्त्तव्य । समस्तप्रजाओं का राज्याभिषेक में योग।

    भावार्थ

    (यम्) जिस (वाजिनम्) बलवान्, ऐश्वर्यवान् (अत्यविम्) सूर्य से भी अधिक तेजस्वी, (वने क्रीडन्तम्) ऐश्वर्य में शत्रु-हनन के संग्राम आदि कार्य में रमण करने, वा उसे क्रीडावत् अनायास करने वाले पुरुष (अत्यम् इव) अश्व के समान ही (दश) दशों दिशाओं की (योषणः) प्रेमयुक्त प्रजाएं (मृजन्ति) अभिषिक्त करती हैं हे राष्ट्र ! तू (तम् इन्द्रम् आशत) उस ऐश्वर्यवान् पुरुष को ही प्राप्त कर। इति षड्वंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवता वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः— १, २, ७ निचृद्र गायत्री। ३, ६, ९ गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The soul, now that it is past the process of purification, like soma after filteration, and sports in the world of beauty, ten youthful senses and pranas invigorate and shine like a chivalrous warrior on way to victory.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या प्रकारे पाच ज्ञानेन्द्रिये व पाच कर्मेन्द्रिये हे दहा मिळून जीवात्म्याची महिमा वाढवितात. त्याप्रमाणे पाच सूक्ष्म भूत व स्थूल भूत हे दोन्ही मिळून परमात्म्याचे महत्त्व पटवून देतात. कित्येक लोकांनी दशचा अर्थ येथे दहा बोटे केलेला आहे. त्यांच्या मते सोमरस दहा बोटांनी खाल्ला जातो. त्यामुळे दशला त्यांनी दहा बोटे मानलेली आहेत. प्रथम ही गोष्ट असत्य आहे की सोमरस बोटांनी खाल्ला जातो कारण सोमरस पिण्याची वस्तू आहे खाण्याची नव्हे. दुसरी युक्ती ही आहे या मंडलाच्या प्रथम मं. ७ मध्ये गृभ्णन्ति योषणा दश हा पाठ आलेला आहे. ज्यामुळे दहा इन्द्रियांचे ग्रहण केलेले आहे. बोटांचे नव्हे ॥५॥

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