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यजुर्वेद अध्याय - 10

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  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - अपां पतिर्देवता छन्दः - अभिकृतिः,निचृत् जगती, स्वरः - ऋषभः, निषादः
    5

    अ॒र्थेत॑ स्थ राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रं मे॑ दत्त॒ स्वाहा॒र्थेत॑ स्थ राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रम॒मुष्मै॑ द॒त्तौज॑स्वती स्थ राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रं मे॑ दत्त॒ स्वाहौज॑स्वती स्थ राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रम॒मुष्मै॑ द॒त्तापः॑ परिवा॒हिणी॑ स्थ राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रं मे॑ दत्त॒ स्वाहापः॑ परिवा॒हिणी॑ स्थ राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रम॒मुष्मै॑ दत्ता॒पां पति॑रसि राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रं मे देहि॒ स्वाहा॒ऽपां पति॑रसि राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रम॒मुष्मै॑ देह्य॒पां गर्भो॑ऽसि राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रं मे॑ देहि॒ स्वाहा॒ऽपां गर्भो॑ऽसि राष्ट्र्र॒दा रा॒ष्ट्रम॒मुष्मै॑ देहि॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्थेत॒ इत्य॑र्थ॒ऽइ॑तः। स्थ॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। मे॒। द॒त्त॒। स्वाहा॑। अ॒र्थेत॒ इत्य॑र्थ॒ऽइतः॑। स्थ॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। अ॒मुष्मै॑। द॒त्त॒। ओज॑स्वतीः। स्थ॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। मे॒। द॒त्त॒। स्वाहा॑। ओज॑स्वतीः। स्थ॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। अ॒मु॒ष्मै॑। द॒त्त॒। आपः॑। प॒रिवा॒हिणीः॑। प॒रि॒वा॒हिनी॒रिति॑ परिऽवा॒हिनीः॑। स्थ॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। मे॒। द॒त्त॒। स्वाहा॑। आपः॑। प॒रिवा॒हिणीः॑। प॒रि॒वा॒हिनी॒रिति॑ परिऽवा॒हिनीः॑। स्थ॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। अ॒मुष्मै॑। द॒त्त॒। अ॒पाम्। पतिः॑। अ॒सि॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। मे॒। दे॒हि॒। स्वाहा॑। अ॒पाम्। पतिः॑। अ॒सि॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। अ॒मुष्मै॑। दे॒हि॒। अ॒पाम्। गर्भः॑। अ॒सि॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। मे॒। दे॒हि॒। स्वाहा॑। अ॒पाम्। गर्भः॑। अ॒सि॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। अ॒मुष्मै॑। दे॒हि॒ ॥३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्थेत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त देह्यर्थेत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्तौजस्वती स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रम्मे दत्त स्वाहौजस्वती स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्तापः परिवाहिणी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रम्मे दत्त स्वाहापः परिवाहिणी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्तापम्पतिरसि राष्ट्रदा राष्ट्रम्मे देहि स्वाहापाम्पतिरसि राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै देह्यपाङ्गर्भासि राष्ट्रदा राष्ट्रम्मे देहि स्वाहापाङ्गर्भासि राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै देहि सूर्यत्वचस स्थ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अर्थेत इत्यर्थऽइतः। स्थ। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। मे। दत्त। स्वाहा। अर्थेत इत्यर्थऽइतः। स्थ। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। अमुष्मै। दत्त। ओजस्वतीः। स्थ। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। मे। दत्त। स्वाहा। ओजस्वतीः। स्थ। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। अमुष्मै। दत्त। आपः। परिवाहिणीः। परिवाहिनीरिति परिऽवाहिनीः। स्थ। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। मे। दत्त। स्वाहा। आपः। परिवाहिणीः। परिवाहिनीरिति परिऽवाहिनीः। स्थ। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। अमुष्मै। दत्त। अपाम्। पतिः। असि। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। मे। देहि। स्वाहा। अपाम्। पतिः। असि। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। अमुष्मै। देहि। अपाम्। गर्भः। असि। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। मे। देहि। स्वाहा। अपाम्। गर्भः। असि। राष्ट्रदा इति राष्ट्रऽदाः। राष्ट्रम्। अमुष्मै। देहि॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजाऽमात्यसेनाप्रजाजनाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! ये यूयमर्थेतस्सन्तः स्वाहा राष्ट्रदाः स्थ ते मे राष्ट्रं दत्त। ये यूयमर्थेतः सन्तो राष्ट्रदाः स्थ तेऽमुष्मै राष्ट्रं दत्त या यूयं स्वाहौजस्वतीः सत्यो राष्ट्रदाः स्थ ता मे राष्ट्रं दत्त। या ओजस्वती राष्ट्रदाः स्थ ता अमुष्मै राष्ट्रं दत्त। या यूयं स्वाहा परिवाहिणी राष्ट्रदाः स्थ ता मे राष्ट्रं दत्त। या यूयं परिवाहिणीरापो राष्ट्रदाः स्थ ता अमुष्मै राष्ट्रं दत्त। यस्त्वं अपां पतिरसि सोऽमुष्मै राष्ट्रं देहि। यस्त्वं स्वाहा राष्ट्रदा अपां गर्भोऽसि, स त्वं मे राष्ट्रं देहि। यस्त्वं राष्ट्रदा अपां गर्भोऽसि सोऽमुष्मै राष्ट्रं देहि॥३॥

    पदार्थः

    (अर्थेतः) येऽर्थं यन्ति (स्थ) भवत (राष्ट्रदाः) राज्यप्रदाः सभासदः (राष्ट्रम्) राज्यम् (मे) मह्यम् (दत्त) (स्वाहा) सत्यया वाचा (अर्थेतः) (स्थ) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (अमुष्मै) (दत्त) (ओजस्वतीः) विद्याबलपराक्रमयुक्ता राजस्त्रियः (स्थ) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (मे) मह्यम् (दत्त) (स्वाहा) न्याययुक्त्या नीत्या (ओजस्वतीः) जितेन्द्रियाः (स्थ) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (अमुष्मै) (दत्त) (आपः) जलप्राणवत् प्रियाः (परिवाहिणीः) स्वसदृशान् पतीन् परि वोढुं शीलाः (स्थ) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (मे) (दत्त) (स्वाहा) विनययुक्त्या वाण्या (आपः) (परिवाहिणीः) (स्थ) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (अमुष्मै) (दत्त) (अपाम्) पूर्वोक्तानाम् (पतिः) पालकः (असि) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (मे) (देहि) (स्वाहा) प्रियया वाचा (अपाम्) प्राणानाम् (पतिः) रक्षकः (असि) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (अमुष्मै) (देहि) (अपाम्) (गर्भः) अन्तर्हितः (असि) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (मे) (देहि) (स्वाहा) युक्तिमत्या वाचा (अपाम्) (गर्भः) स्तोतुं योग्यः (असि) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (अमुष्मै) (देहि)॥ अयं मन्त्रः (शत॰ ५। ३। ४। ७-११) व्याख्यातः॥३॥

    भावार्थः

    ये पुरुषा राजानो या राजस्त्रियश्च स्युस्ताः स्वोत्कर्षार्थं परोत्कर्षसहनं सर्वान् मनुष्यान् विद्यासुशिक्षायुक्तांश्च कृत्वा राज्यभागिनो राज्यसेवन्यश्च स्युः। न खल्वीर्ष्यया परेषां हानिकरणात् स्वराज्यभ्रंशमाकारयेयुः॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा, मन्त्री, सेना और प्रजा के पुरुष आपस में किस प्रकार वर्त्तें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जो तुम लोग (अर्थेतः) श्रेष्ठ पदार्थों को प्राप्त होते हुए (स्वाहा) सत्यनीति से (राष्ट्रदाः) राज्य सेवनेहारे सभासद् (स्थ) हो, वे आप लोग (मे) मुझे (राष्ट्रम्) राज्य को (दत्त) दीजिये, जो तुम लोग (अर्थेतः) पदार्थों को जानते हुए (राष्ट्रदाः) राज्य देने वाले (स्थ) हो, वे तुम लोग (अमुष्मै) राज्य के रक्षक उस पुरुष को (राष्ट्रम्) राज्य को (दत्त) दीजिये, जो तुम लोग (स्वाहा) सत्यनीति के साथ (ओजस्वतीः) विद्या बल और पराक्रम से युक्त हुई रानी लोग आप (राष्ट्रदाः) राज्य देने हारी (स्थ) हैं, वे (मे) मुझे (राष्ट्रम्) राज्य को (दत्त) दीजिये। जो आप लोग (ओजस्वतीः) जितेन्द्रिय (राष्ट्रदाः) राज्य की देने वाली (स्थ) हैं, वे आप लोग (अमुष्मै) विद्या, बल और पराक्रम से युक्त पुरुष को (राष्ट्रम्) राज्य को (दत्त) दीजिये। जो तुम लोग (स्वाहा) सत्यनीति से (परिवाहिणीः) अपने तुल्य पतियों के साथ विवाह करनेहारी (आपः) जल तथा प्राण के समान प्यारी (राष्ट्रदाः) राज्य देनेहारी (स्थ) हैं, वे आप लोग (मे) मुझे (राष्ट्रम्) राज्य को (दत्त) दीजिये। जो तुम लोग (परिवाहिणीः) अपने अनुकूल पतियों के साथ प्रसन्न होने वाली (आपः) आत्मा के समान प्रिय (राष्ट्रदाः) राज्य देने वाली (स्थ) हैं, वे आप (अमुष्मै) उस ब्रह्मचारी वीर पुरुष को (राष्ट्रम्) राज्य को (दत्त) दीजिये। हे सभाध्यक्ष! जो आप (राष्ट्रदाः) राज्य देनेहारे (अपाम्) जलाशयों के (पतिः) रक्षक (असि) हैं, सो (मे) मुझे (स्वाहा) सत्यनीति के साथ (राष्ट्रम्) राज्य को (देहि) दीजिए, हे सभापति! जो आप (स्वाहा) सत्य वचनों से (राष्ट्रदाः) राज्य देने वाले (अपाम्) प्राणों के (पतिः) रक्षक (असि) हैं, वे (अमुष्मै) उस प्राणियों के पोषक पुरुष को (राष्ट्रम्) राज्य को (देहि) दीजिये। हे वीर पुरुष राजन्! जो आप (स्वाहा) सत्यनीति के साथ (राष्ट्रदाः) राज्य देने वाले (अपाम्) सेनाओं के बीच (गर्भः) गर्भ के समान रक्षित (असि) हैं, सो आप (मे) विचारशील मुझे (राष्ट्रम्) राज्य को (देहि) दीजिये। हे राजन्! जो आप (राष्ट्रदाः) राज्य देनेहारे (अपाम्) प्रजाओं के विषय (गर्भः) स्तुति के योग्य (असि) हैं, सो आप (अमुष्मै) उस प्रशंसित पुरुष को (राष्ट्रम्) राज्य को (देहि) दीजिये॥३॥

    भावार्थ

    जो राज्य के अधिकारी पुरुष और उनकी स्त्रियां हों, उनको चाहिये कि अपनी उन्नति के लिये दूसरों की उन्नति को सह के सब मनुष्यों को राज्य के योग्य कर और आप भी चक्रवर्त्ती राज्य का भोग किया करें, ऐसा न हो कि ईर्ष्या से दूसरों की हानि करके अपने राज्य का भङ्ग करें॥३॥

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    विषय

    ब्रह्म+क्षत्र

    पदार्थ

    १. हे प्रजाजनो! तुम ( अर्थेतः [ अर्थं यन्ति ] स्थ ) = धन को कमानेवाले हो। ( राष्ट्रदाः ) = राष्ट्र के देनेवाले हो। ( राष्ट्रम् ) = राष्ट्र को ( मे दत्त ) = मुझे [ पुरोहित को ] सौंपो। ( स्वाहा ) = अपने उचित कर भाग के त्याग करनेवाले बनो। तुम ( अर्थेतः स्थ ) = धन कमानेवाले हो, ( राष्ट्रदाः ) = राष्ट्र के देनेवाले हो। ( राष्ट्रं अमुष्मै दत्त ) = राष्ट्र को अमुक चुने गये सभापति के लिए सौंपो। 

    २. ( ओजस्वतीः स्थ ) = हे प्रजाओ! तुम शक्ति व प्रकाश-[ vigour, light ]-वाली हो। ( राष्ट्रदाः ) = राष्ट्र के देनेवाली हो। ( राष्ट्रं मे दत्त ) = राष्ट्र को मुझ पुरोहित के लिए सौंपो। तुम ( स्वाहा ) = उचित कर देनेवाली हो। ( ओजस्वतीः स्थ ) = तुम शक्ति व प्रकाशवाली हो। ( राष्ट्रदाः ) = राष्ट्र के देनेवाली हो। ( राष्ट्रं अमुष्मै दत्त ) = राष्ट्र को अमुक चुने गये राज्याभिषिक्त पुरुष के लिए सौंपो। 

    ३. ( आपः परिवाहिणीः स्थ ) = [ आप्लृ व्याप्तौ ] सदा कर्मों में व्याप्त होनेवाली तथा [ परितः वहन्ति ] एक स्थान से दूसरे स्थान पर व्यापार के पदार्थों को ले-जानेवाली हो। ( राष्ट्रदाः ) = अपने व्यापार से उचित धनवृद्धि करती हुई तुम राष्ट्र को कर-भाग देनेवाली हो। ( राष्ट्रं मे दत्त ) = राष्ट्र को मुझ पुरोहित के लिए दो। ( स्वाहा ) = उचित कर देनेवाली हो। तुम ( आपः परिवाहिणीः स्थ ) = व्यापक कर्मोंवाली तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पदार्थों को ले-जानेवाली हो, ( राष्ट्रदाः ) = राष्ट्र को देनेवाली हो। ( राष्ट्रं अमुष्मै दत्त ) = राष्ट्र को अमुक पुरुष के लिए दो। 

    ४. राष्ट्र का एक-एक पुरुष ( अपांपतिः असि ) = [ आपः = रेतांसि ] वीर्यशक्ति का रक्षक है, ( राष्ट्रदाः ) = राष्ट्र को देनेवाला है। ( राष्ट्रं मे देहि ) = तू राष्ट्र को मुझ पुरोहित के लिए सौंप और ( स्वाहाः ) = उचित धन का कर के रूप में त्याग कर। ( अपांपतिः असि ) = तू अपनी शक्तियों का रक्षक है, ( राष्ट्रदाः ) = राष्ट्र को देनेवाला है। ( राष्ट्रम् अमुष्मै देहि ) = राष्ट्र को उस राज्याभिषिक्त पुरुष के लिए दे। 

    ५. ( अपां गर्भः असि ) = [ गर्भ = full of ] तू शक्तियों से परिपूर्ण है। तू ही ( राष्ट्रदाः ) = वास्तविक राष्ट्र को देनेवाला है। ( राष्ट्रं मे देहि ) = राष्ट्र को मुझे दे, और ( स्वाहा ) = उसके लिए उचित त्याग करनेवाला बन। ( अपां गर्भः असि ) = तू शक्तियों से परिपूर्ण है। ( राष्ट्रदा ) = राष्ट्र को देनेवाला है। ( राष्ट्रं अमुष्मै देहि ) = राष्ट्र को अमुक पुरुष को देनेवाला बन। 

    ६. ऊपर मन्त्र में अर्थेतः, ओजस्वतीः, आपः, परिवाहिणीः शब्द बहुवचनान्त हैं। पर अपांपतिः तथा अपां गर्भः ये एकवचन रक्खे गये हैं, क्योंकि ‘एक-एक व्यक्ति को शक्ति की रक्षा करनी है—शक्ति से परिपूर्ण बनना है’ इस बात की ओर वैयक्तिक ध्यान खींचना आवश्यक था।

    भावार्थ

    भावार्थ — प्रजाएँ १. धन कमानेवाली बनें। २. शक्ति व प्रकाश को धारण करें। ३. वीर्य की रक्षा करें। और ४. शक्ति से परिपूर्ण हों। ऐसी ही प्रजाएँ एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करनेवाली होती हैं।

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    विषय

    राष्ट्रपद प्रजाओं के प्रतिनिधि रूप जलों से राज्याभिषेक ।

    भावार्थ

    [ राजा ] ( ३ ) हे ( आपः ) आप्त पुरुषो, प्राप्त समागत प्रजाजनो ! आप लोग (अर्थेत : स्थ) अर्थ - विशेष इष्ट प्रयोजन से बलपूर्वक गमन करने में, शत्रु पर चढ़ाई करने में समर्थ हैं, अतएव आप भी ( राष्ट्रदा ) राष्ट्र सम्पद् को देने में समर्थ हैं। आप लोग ( मे राष्ट्र स्वाहा दत्तम् ) उत्तम प्रीति से मुझे राष्ट्र, राज्यैश्वर्य प्रदान कीजिये । [अध्वर्यु ] हे वीर पुरुषो ! आप ( अर्थेतः राष्ट्रदा: स्थ ) अर्थ, धन, सम्पत् के बल पर शत्रु पर चढ़ाई करने में समर्थ हैं। अतः एव राष्ट्र दिलानेहारे हो, आप लोग अमुष्मै राष्ट्रं दत्त ) अमुक नाम के योग्य पुरुष को राष्ट्र प्रदान करो । इस मन्त्र से बहती नदियों के जल से राजा को स्नान कराते हैं । ( ४ ) [ राजा ] ( ओजस्वती: स्थ राष्ट्रदाः) आप लोग ओजस्वी, विशेष पराक्रमशील और राष्ट्र को देने में समर्थ हैं। ( राष्ट्रं मे दत्त ) मुझे राष्ट्र प्रदान करें | [ अध्वर्यु ] ( ओजस्वतीः राष्ट्रदाः स्थ ) आप लोग ओजस्वी हैं. आप राष्ट्र देने में समर्थ हैं । ( अमुष्मै राष्ट्रं दत्त ) अमुक योग्य पुरुष को राज्य प्रदान करें। जो जल प्रवाह से विपरीत बहें उन जलों से स्नान कराते हैं । ( ५ ) [ राजा ] ( परि वाहिणीः राष्ट्रदाः स्थ ) हे वीर प्रजाजनों ! आप लोग सब प्रकार से उत्तम सेनाओं से युक्त हो, अतः राष्ट्र प्राप्त कराने में समर्थ हो । आप ( मे राष्ट्रम् दत्त) मुझे राष्ट्र प्रदान करो। [ अध्वर्यु | हे वीर प्रजाजनो ! आप लोग (परिवाहिणीः राष्ट्रदाः स्थ, अमुष्मै राष्ट्रं दत्त ) सब प्रकार से सेनाओं से युक्त, राज्य प्रदान करने में समर्थ हो । आप अमुक नामक योग्य पुरुष को राज्य प्रदान करो। इस मन्त्र से जो नदियों को शाखाएं फूटकर पुनः उनमें जा मिलती हैं उनके जलों से स्नान कराते हैं । ( ६ ) [ राजा ] ( अपां पति: असि ) तू समस्त जलों के समान प्रजाजनों का पालक है । (राष्ट्रदाः राष्ट्र मे देहि ) तू राष्ट्र प्राप्त करानेवाला है, व मुझे राष्ट्र प्राप्त करा । [ अध्व० ] ( अपां पतिः असि, राष्ट्रदाः, राष्ट्रम् अमुष्मै देहि ) तू समस्त प्रजाओं का पालक है। तू सबका नेता राष्ट्र प्राप्त कराने में समर्थ है। तू अमुक योग्य पुरुष को राष्ट्र प्रदान कर इस मन्त्र से समुद्र के जल से स्नान कराते हैं। ( ७ ) [ राजा ] तू ( अपां गर्भः असि, राष्ट्रदाः राष्ट्र मे देहि स्वाहा ) तू प्रजाओं को अपने अधीन अपने साथ रखने में समर्थ है। तू मुझे राष्ट्र अच्छी प्रकार प्राप्त करा । तू मुझे राष्ट्र प्रदान कर । [ अध्व० तू ( अपां गर्भ राष्ट्रदाः असि राष्ट्रम् अमुष्मै देहि ) प्रजाओं को वश करने में समर्थ है। तू राष्ट्र प्राप्त कराने हारा है। तू अमुक योग्य पुरुष को राज्य प्रदान कर । [ इस मन्त्र से निवेष्य अर्थात् नदी के भँवर के जलों से स्नान कराते हैं । श० ५। ३ । ४ । ४ । - ११॥

    टिप्पणी

    १अर्थेत २ देहि

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आपः अपांपतिश्च देवताः । ( १ ) अतिकृतिः । ऋषभः ।२) निचृत् जंगती । निषादः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    राज्याचे अधिकारी व त्यांच्या स्त्रिया यांनी आपल्या उन्नतीबरोबरच इतरांच्या उन्नतीसाठीही प्रयत्न करावा व सर्व माणसांना राज्यात सहभागी होण्यायोग्य बनवावे आणि स्वतःही चक्रवर्ती राज्य भोगावे. ईर्षेने दुसऱ्याची हानी करून आपल्या राज्यात फूट पाडता कामा नये किंवा राज्य नष्ट होता कामा नये.

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    विषय

    राजा, मंत्री, सेना आणि प्रजाजन या सर्वांनी आपसात एकमेकांशी कसे आचरण ठेवावे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (एक विद्वान नागरिक अनेकांना उद्देशून म्हणत आहे) हे मनुष्यांनो, (राष्ट्रातील सर्वजनहो) आपण सर्वजण (अर्थेत:) श्रेष्ठ पदार्थ प्राप्त करीत आणि (स्वाहा) सत्य-आचरण करीत (राष्ट्रदा:) राष्ट्राचे सुख प्राप्त करणारे सभासद (लोकप्रतिनिधी) व्हा. आणि आपण (मे) मला (राष्ट्रम्) एक उत्तम राष्ट्र (दत्त) द्या (मला एक आदर्श राष्ट्र पाहू द्या) आपण सर्वजण (अर्थेत:) पदार्थांचे ज्ञान प्राप्त करून (त्या त्या पदार्थांपासून काय काय लाभ प्राप्त होऊ शकतील, याचे ज्ञान मिळवून) (राष्ट्रदा:) राष्ट्राला लाभ देणारे व्हा आणि (अमुष्मै) राज्याच्या रक्षक पुरुषाला (राष्ट्राध्यक्षाला) (राष्ट्रम्) राज्य (दत्त) द्या. (राष्ट्रोन्नतीकार्यात सहकार्य द्या) (स्वाहा) सत्य नीती आणि व्यवहाराने वागणार्‍या अशा (ओजस्वती:) विद्या बन आणि पराक्रम आणि पराक्रमयुक्त अशा आपण ज्या राणी (राजघराण्यातील राणी आदी महिला) (स्थ) आहेत, त्यांनी (मे) मला (नागरिकाला) (राष्ट्रम्) राज्य (दत्त) द्यावे (राज्याच्या प्रजेच्या उत्कर्ष साधण्यात साहाय्य करावे) (ओजस्वती:) राष्ट्रातील जितेंद्रिय अशा आणि (राष्ट्र दा:) राष्ट्राला उत्तम राष्ट्र बनविणार्‍या ज्या स्त्रिया आहेत त्या तुम्ही विद्या, शक्ती आणि पराक्रमाने समृद्ध अशा श्रेष्ठ पुरुषाला (राष्ट्रम्) हे राष्ट्र (दत्त) द्या (श्रेष्ठ स्त्रियांनी योग्य पुरुषाला राष्ट्राध्यक्ष म्हणून निवडावे व नेमावे). ज्या स्त्रिया (स्वाहा) सत्य नीतीच्या मार्गाने चालत (परिवाहिणी:) आपल्याप्रमाणे विचारसरणी असलेल्या पतीसह आनंदित आहेत, (आप:) स्वत:च्या जीवाप्रमाणे ज्यांना (राष्ट्रदा:) राष्ट्रप्रिय आहे, अशा सुराज्य देणार्‍या हे स्त्रियांनो, तुम्ही (अमुष्मै) त्या ब्रह्मचारी वीर पुरुषाला (राष्ट्रम्) हे राष्ट्र (दत्त) सोपवा (त्यालाच राष्ट्राध्यक्ष करा) हे सभाध्यक्ष, आपण राष्ट्रदा:) सुराष्ट्र देणारे असून (अपाम्) जलाशयांचे (सरोवर, धरण, नद्या आदींचे (पति:) रक्षक (असि) आहात, असे आपण (मे) मला (विद्वान नागरिकाला) (स्वाहा) सत्य निती-पद्धतीद्वारे (राष्ट्रम्) हे राष्ट्र (देहि) द्या (जलाचे योग्य नियोजन व वितरण, रक्षण व प्रबद्ध करा) हे सभापती, आप (स्वाहा) सत्यभाषणाद्वारे (राष्ट्रदा:) राज्य देणार्‍या (अपाम्) प्राणशक्तीचे (पति:) रक्षक असि) आहात, असे आपण (अयुष्मै) सर्व प्राण्यांना पोषण देणार्‍या त्या समर्थ पुरुषाला (राष्ट्रम्) हे राष्ट्र (देहि) द्या (सुयोग्य पुरुषालाच राष्ट्राध्यक्ष करा) हे वीर पुरुष राजा, आपण (स्वाहा) सत्यनीतीप्रमाणे (राष्ट्रदा:) राष्ट्र देणारे (राज्याचे संचालन करणारे) आणि (अपाम्) सैन्याद्वारे (गर्भ:) गर्भाप्रमाणे रक्षित (असि) आहात, असे आपण (मे) विचारी असलेल्या अशा मला (राष्ट्रम्) हे राष्ट्र (देहि) द्या. (विचारी व विवेकी नागरिकांच्या हाती अधिकारपद सोपवा) हे राजन्, आपण (राष्ट्रदा:) राज्य देणारे (अपाम्) प्रजाजनांकडे लक्ष देणारे आणि (गर्भ:) स्तुती करण्यास योग्य (असि) आहात, असे आपण (अमुष्मै) (माझ्याप्रमाणेच) त्या प्रशंसनीय व विचारशील पुरुषाला (राष्ट्रम्) हे राष्ट्र (देहि) द्या (अधिकार सोपवा) (राष्ट्रातील विचारी विवेकी स्त्री-पुरुषांनी सुपात्रवीर विद्वान व जितेंद्रिय व्यक्तीस सभाध्यक्ष निवडावे व सर्वांनी एकमेकास सहकार्य करीत राज्याला उत्कर्षाप्रत न्यावे) ॥3॥

    भावार्थ

    भावार्थ : राष्ट्रात जे जे राज्याधिकारी पुरुष वा स्त्रिया असतील, त्यांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी स्वत:प्रमाणे इतर सर्वांचीही उन्नती करावी. इतरांच्या उन्नतीचा द्वेष करूं नये आणि अशाप्रकारे सर्व मनुष्यांना राष्ट्रहितकारी बनवावे. तसेच स्वत: देखील राज्याचा उपभोग आनंदाने घ्यावा. असे कधीही होऊ नये वा नाही करून नये की इतरांविषयी ईर्ष्या व द्वेषभावना बाळगून स्वत: आपली हानी करून घ्यावी आणि इतरांनाही दु:ख द्यावे. ॥3॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O’ wealthy people, givers of Kingship, bestow on me the Kingdom in a righteous manner. Ye, the masters of knowledge, and givers of Kingship, bestow Kingdom on him who can protect it. Ye royal women, imbued with knowledge, strength and supremacy, givers of Kingship, bestow kingdom on me in a righteous manner. Ye self-controlled ladies, the givers of Kingship, bestow kingdom on him, who deserves it. Ye kind ladies, givers of kingship, bestow kingdom on me in a righteous manner. Ye kind ladies, givers of kingship, bestow kingdom on the self-controlled hero. O’ ye protectors of the people, givers of kingship, bestow kingdom on me in a righteous manner. Ye controllers of breath and givers of kingship, bestow kingdom on him, who protects his subjects. O valiant King, guarded by the armies which give thee women-like protection, and are the givers of Kingship help me a considerate successor in the election as a king, O’ King, praised by the subjects, the electors of a ruler, help pass on the Kingship to the well-praised deserving person.

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    Meaning

    Men of the country striving for wealth, builders of the nation, keep on striving, build a republic of truth in word and action for me. Men of wealth, go on striving for prosperity, contributing to the republic, and give him and all a great republic. Brilliant women of the republic, maintain your vigour and brilliance, contributing to the republic, and build for me a nation of love and justice. Keep up your genius and vigour contributing to the republic, and give him and all a great nation. Married women of the nation, dear as water and the breath of life to your partners, stay good and faithful in your love to your home, contributing to the families of the nation and give me a state of true discipline and virtue. Keep the channels of the nation flowing, contributing to the growth of the nation’s life, and give him and all a dynamic state of brilliant leaders. Lord of the waters of the state, builder of a progressive state, give me a dynamic state of governance in truth of word and action. Lord of the national movements, keep the flow on for the nation and give him and all a state of clean governance and administration. Protector of the waters, generous giver of the republic, give me an affluent state of prosperity with values of truth and honesty. Protector of national progress, contributing to management and development, give him and all a republic, a state and a nation marching ahead and onward.

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    Translation

    You are accomplishers of the work, bestowers of kingdom; bestow kingdom on me. Svaha. (1) You are accomplishers of the work, bestowers of kingdom; bestow kingdom on this sacrificer, so and so. (2) You are full of vigour, bestowers of kingdom; bestow kingdom on me. Svaha. (3) You are full of vigour, bestowers of kingdom; bestow kingdom on this sacrificer, so and so. (4) You are streams flowing around, bestowers of kingdom; bestow kingdom on me. Svaha. (5) You are waters flowing around, bestowers of kingdom; bestow kingdom on this sacrificer, so and so. (6) You are the Lord of waters, bestower of kingdom; bestow kingdom on me. Svaha. (7) You are the Lord of waters, bestower of kingdom; bestow kingdom on this sacrificer, so and so. (8) You are the child of waters, bestower of kingdom; bestow kingdom on me. Svaha. (9) You are the child of waters, bestower of kingdom; bestow kingdom on this sacrificer, so and so. (10)

    Notes

    Arthetah, अर्थं प्रवोजनं निष्पादयितुं यंति गच्छंति ता, those who goto accomplish the work. Parivahinth, flowing around. Apah,अपयतीरिति वहंतीनां अपां मध्याद्या मार्गांतरेण गत्वा पुन: मिलंति ता अपयत्य:, streams that branch out from the main stream and then come to meet it again after following a different course. (Mahidhara). Apam garbhah, child of waters; embryo of waters.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনা রাজাऽমাত্যসেনাপ্রজাজনাঃ পরস্পরং কথং বর্ত্তেরন্নিত্যুপদিশ্যতে ॥
    রাজা, মন্ত্রী সেনা ও প্রজাগণ পরস্পর কী প্রকার আচরণ করিবে এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা (অর্থেতঃ) শ্রেষ্ঠ পদার্থগুলিকে প্রাপ্ত হইয়া (স্বাহা) সত্য নীতি পূর্বক (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্য সেবনকারী সভাসদ্ (স্থ) হও । তোমরা (মে) আমাকে (রাষ্ট্রেম্) রাজ্য (দত্ত) প্রদান কর যাহা তোমরা (অর্থেতঃ) পদার্থগুলি জানিয়া (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্য প্রদাতা (স্থ) হও । তোমরা (অমুষ্মৈ) রাজ্যের রক্ষক সেই পুরুষকে (রাষ্ট্রম্) রাজ্য (দত্ত) প্রদান কর । (স্বাহা) সত্য নীতিসহ (ওজস্বতীঃ) বিদ্যা-বল ও পরাক্রম যুক্ত রাণীরা তোমরা (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্য দাত্রী (স্থ) হও (মে) আমাকে (রাষ্ট্রম্) রাজ্য (দত্ত) প্রদান কর । তোমরা (ওজসূতীঃ) জিতেন্দ্রিয় (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্যদাত্রী (স্থ) হও । সেই তোমরা (অমুষ্মৈ) বিদ্যা-বল ও পরাক্রমযুক্ত পুরুষকে (রাষ্ট্রম্) রাজ্য (দত্ত) প্রদান কর । তোমরা (স্বাহা) সত্যনীতিপূর্বক (পরিবাহিণীঃ) নিজের সমান প্রিয় (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্যদাত্রী (স্থ) হও সেই তোমরা (মে) আমাকে (রাষ্ট্রম্) রাজ্য (দত্ত) প্রদান কর । তোমরা (পরিবাহিণীঃ) স্বীয় অনুকূল পতি সহ প্রসন্নবতী (আপঃ) আত্মাসমান প্রিয় (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্য দাত্রী (স্থ) হও । তোমরা (অমুষ্মৈ) সেই ব্রহ্মচারী বীর পুরুষকে (রাষ্ট্রম্) রাজ্য (দত্ত) প্রদান কর । হে সভাধ্যক্ষ! আপনি (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্য দিবার (অপাম্) জলাশয়গুলির (পতিঃ) রক্ষক (অসি) হন্ সুতরাং (মে) আমাকে (স্বাহা) সত্যনীতি সহ (রাষ্ট্রম্) রাজ্য প্রদান করুন । হে সভাপতি! আপনি (স্বাহা) সত্য বচনের দ্বারা (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্য প্রদাতা (অপাম্) প্রাণগুলির (পতিঃ) রক্ষক (অসি) হন । (অমুষ্মৈ) সেই প্রাণিদের পোষক পুরুষকে (রাষ্ট্রম্) রাজ্য (দেহি) প্রদান করুন । হে বীর পুরুষ রাজন্ ! আপনি (স্বাহা) সত্য নীতি সহ (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্য প্রদাতা (অপাম্) সেনাদের মধ্যে (গর্ভঃ) গর্ভের সমান রক্ষিত (অসি) আছেন সুতরাং আপনি (রাষ্ট্রদাঃ) রাজ্য প্রদাতা (অপাম্) প্রজাদের বিষয় (গর্ভঃ) স্তুতিযোগ্য (অসি) হন, সুতরাং আপনি (অমুষ্মৈ) সেই প্রশংসিত পুরুষকে (রাষ্ট্রম্) রাজ্য (দেহি) প্রদান করুন ॥ ৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যাহারা রাজ্যের অধিকারী পুরুষ এবং তাহাদের স্ত্রীগণ হন তাহাদের উচিত যে, স্বীয় উন্নতির জন্য অন্যের উন্নতি সহ্য করিয়া সকল মনুষ্য কে রাজ্যের যোগ্য করিয়া এবং স্বয়ংও চক্রবর্ত্তী রাজ্যের ভোগ করিতে থাকিবেন । এমন না হয় যে, ঈর্ষা বশতঃ অপরের হানি করিয়া স্বীয় রাজ্য ভঙ্গ করে ॥ ৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒র্থেত॑ স্থ রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রং মে॑ দত্ত॒ স্বাহা॒র্থেত॑ স্থ রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রম॒মুষ্মৈ॑ দ॒ত্তৌজ॑স্বতী স্থ রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রং মে॑ দত্ত॒ স্বাহৌজ॑স্বতী স্থ রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রম॒মুষ্মৈ॑ দ॒ত্তাপঃ॑ পরিবা॒হিণী॑ স্থ রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রং মে॑ দত্ত॒ স্বাহাপঃ॑ পরিবা॒হিণী॑ স্থ রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রম॒মুষ্মৈ॑ দত্তা॒পাং পতি॑রসি রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রং মে দেহি॒ স্বাহা॒ऽপাং পতি॑রসি রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রম॒মুষ্মৈ॑ দেহ্য॒পাং গর্ভো॑ऽসি রাষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রং মে॑ দেহি॒ স্বাহা॒ऽপাং গর্ভো॑ऽসি রার্ষ্ট্র॒দা রা॒ষ্ট্রম॒মুষ্মৈ॑ দেহি ॥ ৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অর্থেত ইত্যস্য বরুণ ঋষিঃ । অপাং পতির্দেবতা । পূর্বস্যাভিকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ । দেহীত্যস্য নিচৃজ্জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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