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यजुर्वेद अध्याय - 34

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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 21
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    3

    सोमो॑ धे॒नुꣳ सोमो॒ऽअर्व॑न्तमा॒शुꣳ सोमो॑ वी॒रं क॑र्म॒ण्यं ददाति।सा॒द॒न्यं विद॒थ्यꣳ स॒भेयं॑ पितृ॒श्रव॑णं॒ यो ददा॑शदस्मै॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमः॑। धे॒नुम्। सोमः॑। अर्व॑न्तम्। आ॒शुम्। सोमः॑। वी॒रम्। क॒र्म॒ण्य᳖म्। ददा॑ति ॥ सा॒द॒न्य᳖म्। स॒द॒न्य᳖मिति॑ सद॒न्य᳖म्। वि॒द॒थ्य᳖म्। स॒भेय॑म्। पि॒तृ॒श्रव॑ण॒मिति॑ पितृ॒ऽश्रव॑णम्। यः। ददा॑शत्। अ॒स्मै॒ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमो धेनुँ सोमोऽअर्वन्तमाशुँ सोमो वीरङ्कर्मण्यन्ददाति । सादन्यँविदथ्यँ सभेयम्पितृश्रवणँयो ददाशदस्मै ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः। धेनुम्। सोमः। अर्वन्तम्। आशुम्। सोमः। वीरम्। कर्मण्यम्। ददाति॥ सादन्यम्। सदन्यमिति सदन्यम्। विदथ्यम्। सभेयम्। पितृश्रवणमिति पितृऽश्रवणम्। यः। ददाशत्। अस्मै॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 21
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    यो मनुष्योऽस्मै सोमायोचितं ददाशत् तस्मै सोमो धेनुं ददाति, सोमोऽर्वन्तमाशुं ददाति, सोमः कर्मण्यं सादन्यं विदथ्यं पितृश्रवणं सभेयं वीरं च ददाति॥२१

    पदार्थः

    (सोमः) ऐश्वर्यवान् (धेनुम्) विद्याधारां वाचम् (सोमः) सत्याचारे प्रेरकः (अर्वन्तम्) वेगेन गच्छन्तमश्वम् (आशुम्) मार्गान् सद्योऽश्नुवन्तम् (सोमः) शरीरात्मबलम् (वीरम्) शत्रुबलानि व्याप्नुवन्तम् (कर्मण्यम्) कर्मणा सम्पन्नम् (ददाति) (सादन्यम्) सादनेषु स्थापनेषु साधुं (विदथ्यम्) विदथे यज्ञे साधुम् (सभेयम्) सभायां साधुम् (पितृश्रवणम्) पितुः सकाशाच्छ्रवणं यस्य तम् (यः) (ददाशत्) ददाति (अस्मै) सोमाय राज्ञेऽध्यापकायोपदेशकाय वा॥२१॥

    भावार्थः

    येऽध्यापकोपदेशका राजपुरुषा वा सुशिक्षिता वाचमग्न्यादितत्त्वविद्यां पुरुषज्ञानं सभ्यताञ्च सर्वेभ्यः प्रदद्युस्ते सर्वेः सत्कर्त्तव्याः स्युः॥२१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (यः) जो प्रजास्थ मनुष्य (अस्मै) इस धर्मिष्ठ राजा वा अध्यापक वा उपदेशक के लिये उचित पदार्थ (ददाशत्) देता है, उसके लिये (सोमः) ऐश्वर्य्ययुक्त उक्त पुरुष (धेनुम्) विद्या की आधाररूप वाणी को (ददाति) देता (सोमः) सत्याचरण में प्रेरणा करनेहारा राजादि जन (अर्वन्तम्) वेग से चलनेवाले तथा (आशुम्) मार्ग को शीघ्र व्याप्त होनेवाले घोड़े को देता और (सोमः) शरीर तथा आत्मा के बल से युक्त राजादि (कर्मण्यम्) कर्मों से युक्त पुरुषार्थी (सादन्यम्) बैठाने आदि में प्रवीण (विदथ्यम्) यज्ञ करने में कुशल (पितृश्रवणम्) आचार्य पिता से विद्या पढ़नेवाले (सभेयम्) सभा में बैठने योग्य (वीरम्) शत्रुओं के बलों को व्याप्त होनेवाले शूरवीर पुरुष को देता है॥२१॥

    भावार्थ

    जो अध्यापक, उपदेशक वा राजपुरुष सुशिक्षित वाणी, अग्नि आदि की तत्त्वविद्या, पुरुष का ज्ञान और सभ्यता सबके लिये देवें, वे सबको सत्कार करने योग्य हों॥२१॥

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    विषय

    विद्वानों और नायक राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    (सोमः) सबका प्रेरक, अभिषिक्त राजा (धेनुं ददाति) दुधार गौ देता है । (सोमः) वह अभिषेक योग्य, आज्ञापक राजा ही (आशुम् भर्वन्तम् ददाति) वेगवान् अश्वसैन्य और कर्म कुशल वीर पुरुष प्रदान करता है । (यः) जो प्रजाजन अपने आप को (अस्मै) इस राजा के अधीन (ददाशत् ) दे देता है उस प्रजा को वह ( सादन्यम् ) उत्तम गृह, राजसभा और उत्तम पदों पर विराजने योग्य, ( विदश्यम् ) ज्ञान- सत्संग, यज्ञ आदि के योग्य ( सभेयम् ) सभा में कुशल, (पितृश्रवणम् ) पिता, पालक गुरु जनों को उपदेश और आज्ञाओं के श्रवण करने वा पिताओं के यश कीर्ति फैलाने वाले पुरुष भी (ददाति) प्रदान करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमः । सोमः । भुरिक पंक्तिः । पंचमः ॥

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    विषय

    उत्तम सन्तान

    पदार्थ

    पिछले मन्त्र में वर्णित उत्कृष्ट जीवनवाले व्यक्तियों का निर्माण घरों में ही होगा। घरों में प्रत्येक गृहस्थ अपने सन्तान को उत्तम बनाए। वस्तुतः 'माता-पिता की प्रवृत्ति प्रभु - प्रवण होगी, वे प्रकृति में फँसे हुए न होंगे' तभी वे सन्तानों को अच्छा बना पाएँगे। प्रस्तुत मन्त्र में कहते हैं कि सोम: - वे सोम प्रभु उन माता-पिता को उत्तम सन्तान प्राप्त कराते हैं यः = जो अस्मै इनके लिए ददाशत्-अपना समर्पण करते हैं, अर्थात् अन्तःस्थित उस प्रभु के निर्देशों के अनुसार जीवनयापन करने पर प्रभु हमारे सन्तानों को बड़ा अच्छा बना देते हैं। (सोमः) = वे सोम सन्तान (ददाति) = देते हैं। कैसे सन्तान को ? १. (धेनुम्) = [धेट् पाने] अपने अन्दर उत्पन्न हुई हुई सोम-[वीर्य]-शक्ति का पान करनेवाले को। यह सोमशक्ति का पान आगे आनेवाली सारी उन्नतियों का मूल है, अतः सर्वप्रथम इसी का उल्लेख है । २. (अर्वन्तम्) = [अर्व हिंसायाम्] सोमरक्षा के द्वारा शरीर में सब रोगकृमियों को तथा मन में सब ईर्ष्या-द्वेष आदि की भावनाओं की हिंसा करनेवाले को । सुरक्षित सोम ही वह मन्त्र-तन्त्र - यन्त्र है जो सब रोगों को दूर करता है। सोमी पुरुष ईर्ष्या-द्वेषादि से ऊपर उठा रहता है । ३. (आशुम्) = [अश् व्याप्तौ] शीघ्रता से कार्यों में व्याप्त होनेवाले को । इसका जीवन स्फूर्तिमय होता है। आलस्य इसे कभी नहीं घेरता । ४. वे (सोमः) = सोम (वीरम्) = वीर सन्तान को (ददाति) = देते हैं। संसार में यह कभी कायर नहीं बनता । संसार-संघर्ष में घबरा नहीं जाता। आनेवाले विघ्नों का वीरता से मुकाबला करता है। ५. कर्मण्यम् उत्तम कर्मवाले को । प्रभु - प्रवण पति-पत्नी की सन्तान सदा क्रियाशील होती है। ६. (सादन्यम्) = यह सदन = घर का उत्तम निर्माण करनेवाला होता है। ७. (विदथ्यम्) = यह सन्तान ज्ञानयज्ञों में शोभावाला होता है । ८. (सभेयम्) = सभा में सभ्योचित व्यवहारवाला होता है, और ९. (पितृश्रवणम्) = माता-पिता की आज्ञा सुननेवाला होता है, उनका आज्ञाकारी बनता है। पूर्ण यहाँ मन्त्र में प्रभु का 'सोम' नाम से स्मरण किया है। इसका अर्थ [स उमा] = ज्ञानवाला, शान्त व शक्ति का पुञ्ज है। वस्तुतः सन्तान में यही गुण इष्ट हैं कि वे ज्ञानी हों, शान्त हों, सशक्त हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- गृहस्थ प्रभुभक्त होंगे तो उत्तम सन्तान का निर्माण कर पाएँगे।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे अध्यापक व उपदेशक किंवा राजपुरुष उत्तम वाणी, अग्निविद्या, ज्ञान व सभ्यता सर्वांना शिकवितात ते सन्माननीय ठरतात.

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    विषय

    पुनश्‍च तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - प्रजाजनांपैकी जो जन (अस्मै) या धार्मिक राजाला, वा अध्यापकाला अथवा उपदेशकाला उचित, आवश्यक ते पदार्थ (ददाशत्) देतो, त्यासाठी (सोमः) ऐश्‍वर्ययुक्त तो जन (ददाति) जणू (धेनुम्) विद्येचा आधार जी वाणी, ती वाणीच तो माणूस अध्यापकांना देतो (त्याने दिलेल्या आवश्यक पदार्थांमुळे अध्यापक व उपदेशक वाणीचा प्रसार व उपदेश करू शकतो) (सोमः) सत्याचरण करणारा राजा व अन्य जन (अर्वन्तम्) वेगाने दौडणारा (आशुम्) घोडा (प्रजाजनांना देतो) तसेच (सोमः) शारीरिक व आत्मिक बलाने युक्त तो राजा व राजपुरुष (कर्मण्यम्) कर्मवीर पुरुषार्थी मनुष्याला तसेच (सादन्यम्) आतिथ्य आदी कर्मात प्रवीण मनुष्याला तसेच (सादन्यम्) आतिथ्य आदी कर्मात प्रवीण मनुष्याला तसेच (विदथ्यम्) यज्ञकर्ता कुशल मनुष्याला (पितृश्रवशम्) पिता वा आचार्यापासून विद्या घेणार्‍या शिष्याला तसेच (सभेयम्) सभेत बसण्यास पात्र अशा सभ्य (वीरम्) शत्रुजेता वीर पुरुषाला (आवश्यक ते ते पदार्थ) देतो (राजा कर्मवीर, अतिथिप्रिय, आचार्य आणि वीर, या लोकांना सर्व आवश्यक साधनें पुरवितो) ॥21॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे अध्यापक, उपदेशक अथवा राजपुरुष सर्वांना सुसंस्कृत वाणी शिकवितात, वा अग्नी आदीची विद्या शिकवतात, ज्ञानी व सभ्य मनुष्य निर्माण करतात, त्यांचा सर्वांनी अवश्य सत्कार केला पाहिजे. ॥21॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    To him who reveres the king, teacher or preacher, he gives speech full of learning, wealth conducive to truthful conduct, a fleet steed, a brave son, active in duties, well-mannered, skilled in the performance of sacrifice (yajna), recipient of knowledge from his father, and competent in council.

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    Meaning

    Whoever offers honour and oblations to Soma, ruler of life and yajna, Soma blesses him with the gift of cows and cultured speech, Soma gives him the fastest carrier ‘horse’, Soma blesses him with a brave son or daughter heroic in action, gracious in gatherings, pious in yajna, worthy of high office in assemblies, and obedient follower of parental tradition.

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    Translation

    To him, who worships you, O blissful Lord, you give a milch cow, a swift horse, and a son, who is worthy of noble deeds, eminent in society and an honour to his father. He is assiduous in worship and valorous in action. (1)

    Notes

    Sadanyam, सदने साधुं, eminent in society; or skilled in home duties. Vidathyam, विदथेषु यज्ञेषु साधुं, prominent in sacrificial gatherings. Sabheyam, TT, respected in assemblies. Pitṛśravaṇam, one who listens to his father's advice and follows his commands.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- (য়ঃ) যে প্রজাস্থ মনুষ্য (অস্মৈ) এই ধর্মিষ্ঠ রাজা বা অধ্যাপক বা উপদেশকের জন্য উচিত পদার্থ (দদাশৎ) দেয় তাহার জন্য (সোমঃ) ঐশ্বর্য্যযুক্ত উক্ত পুরুষ (ধেনুম্) বিদ্যার আধাররূপ বাণীকে (দদাতি) দেয় (সোমঃ) সত্যাচরণে প্রেরণাকারী রাজাদি ব্যক্তি (অর্বন্তম্) বেগ সহ গমনরত তথা (আশুম্) মার্গকে শীঘ্র ব্যাপ্ত হইবার অশ্বগুলিকে দান করে এবং (সোমঃ) শরীর ও আত্মার বল সহ যুক্ত রাজাদি (কর্মণ্যম্) কর্ম্ম দ্বারা যুক্ত পুরুষার্থী (সাদন্যম্) উপবেশনাদি করিতে প্রবীণ (বিদথ্যম্) যজ্ঞ করিতে কুশল (পিতৃ শ্রবণম্) আচার্য্য পিতা হইতে বিদ্যা পাঠকারী (সভেয়ম্) সভায় বসিবার যোগ্য (বীরম্) শত্রুদের বলকে ব্যাপ্ত হইবার শূরবীর পুরুষকে দেয় ॥ ২১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব অধ্যাপক, উপদেশক বা রাজপুরুষ সুশিক্ষিত বাণী, অগ্নি ইত্যাদির তত্ত্ববিদ্যা, পুরুষের জ্ঞান ও সভ্যতা সকলের জন্য দিবে তাহারা সকলের সৎকারের যোগ্য ॥ ২১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সোমো॑ ধে॒নুꣳ সোমো॒ऽঅর্ব॑ন্তমা॒শুꣳ সোমো॑ বী॒রং ক॑র্ম॒ণ্যং᳖ দদাতি ।
    সা॒দ॒ন্যং᳖ বিদ॒থ্য᳖ꣳ স॒ভেয়ং॑ পিতৃ॒শ্রব॑ণং॒ য়ো দদা॑শদস্মৈ ॥ ২১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সোম ইত্যস্য গোতম ঋষিঃ । সোমো দেবতা । ভুরিক্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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