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यजुर्वेद अध्याय - 34

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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 22
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - विराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    1

    त्वमि॒माऽओष॑धीः सोम॒ विश्वा॒स्त्वम॒पोऽअ॑जनय॒स्त्वं गाः।त्वमा त॑तन्थो॒र्वन्तरि॑क्षं॒ त्वं ज्योति॑षा॒ वि तमो॑ ववर्थ॥२२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम्। इ॒माः। ओष॑धीः। सो॒म॒। विश्वाः॑। त्वम्। अ॒पः। अ॒ज॒न॒यः॒। त्वम्। गाः ॥ त्वम्। आ। त॒त॒न्थ॒। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। त्वम्। ज्योति॑षा। वि। तमः॑। ववर्थ॒ ॥२२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमिमाऽओषधीः सोम विश्वास्त्वमपोऽअजनयस्त्वङ्गाः । त्वमाततन्थोर्वन्तरिक्षन्त्वञ्ज्योतिषा वि तमो ववर्थ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। इमाः। ओषधीः। सोम। विश्वाः। त्वम्। अपः। अजनयः। त्वम्। गाः॥ त्वम्। आ। ततन्थ। उरु। अन्तरिक्षम्। त्वम्। ज्योतिषा। वि। तमः। ववर्थ॥२२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 22
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे सोम राजन्! यस्त्वं विश्वा इमा ओषधीस्त्वं सूर्य इवाऽपस्त्वं गाश्चाऽजनयस्त्वं सूर्य्य उर्वन्तरिक्षमा ततन्थ, सविता ज्योतिषा तम इव न्यायेनाऽन्यायं विववर्थ, स त्वस्माभिर्माननीयोऽसि॥२२॥

    पदार्थः

    (त्वम्) (इमाः) (ओषधीः) सोमाद्याः (सोम) सोमवल्लीव सर्वरोगविनाशक! (विश्वाः) सर्वाः (त्वम्) (अपः) जलानि कर्म वा (अजनयः) जनयेः (त्वम्) (गाः) पृथिवीर्धेनूर्वा (त्वम्) (आ) (ततन्थ) तनोषि (उरु) बहु (अन्तरिक्षम्) जलमाकाशं वा (त्वम्) (ज्योतिषा) प्रकाशेन (वि) (तमः) अन्धकारं रात्रिम् (ववर्थ) वृणोषि॥२२॥

    भावार्थः

    ये जना ओषध्यो रोगानिव दुःखानि हरन्ति, प्राणा इव बलं जनयन्ति, ये राजजनाः सूर्य्यो रात्रिमिवाऽधर्माऽविद्याऽन्धकारं निवर्त्तयन्ति, ते जगत्पूज्याः कुतो न स्युः॥२२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (सोम) उत्तम सोमवल्ली ओषधियों के तुल्य रोगनाशक राजन्! (त्वम्) आप (इमाः) इन (विश्वाः) सब (ओषधीः) सोम आदि ओषधियों को (त्वम्) आप सूर्य्य के तुल्य (अपः) जलों वा कर्म को और (त्वम्) आप (गाः) पृथिवी वा गौओं को (अजनयः) उत्पन्न वा प्रकट कीजिये। (त्वम्) आप सूर्य्य के समान (उरु) बहुत (अन्तरिक्षम्) अवकाश को (आ, ततन्थ) विस्तृत करते तथा (त्वम्) आप सूर्य्य जैसे (ज्योतिषा) प्रकाश से (तमः) अन्धकार को दबाता। वैसे न्याय से अन्याय को (वि, ववर्थ) आच्छादित वा निवृत्त कीजिये, सो आप हमको माननीय हैं॥२२॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य जैसे ओषधि रोगों को वैसे दुःखों को हर लेते हैं, प्राणों के तुल्य बलों को प्रकट करते तथा जो राजपुरुष सूर्य्य रात्रि को जैसे वैसे अधर्म और अविद्या के अन्धकार को निवृत्त करते हैं, वे जगत् को पूज्य क्यों नहीं हों?॥२२॥

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    विषय

    विद्वानों और नायक राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (सोम) अभिषिक्त राजन् ! ऐश्वर्यवन् ! मेघ जिस प्रकार जल वर्षा कर (इमा ओषधीः) इन नाना ओषधियों को पैदा करता है उसी प्रकार ( त्वम् ) तू इन नाना शत्रु संतापक बल और तेज को धारण करने वाली वीर सेनाओं और वीर पुरुषों को (अजनयः ) उत्पन्न करता है । ( त्वम् ) मेघ जिस प्रकार जलों की वर्षा करता है उसी प्रकार तू (अप: अजनयः) जलों के समान शान्तिदायक आप्त पुरुषों, उत्तम बुद्धि और कर्म व्यवस्था को (अजनयः) प्रकट करता है । (त्वं गाः) तू ही गौ आदि पशु और राजाज्ञा रूप वाणियां प्रकट करता है । ( त्वम् ) तू ( अन्तरिक्षम् ) वायु के सम्मान विशाल अन्तरिक्ष और सबको आवरण और रक्षा करने वाले रक्षक, शासक विभाग को (आततन्थ) विस्तृत कर और ( त्वम् ) तू ही (ज्योतिषा) सूर्य के समान प्रकाश से (तमः) अन्धकार के समान प्रजा के कष्टदायी और शोक के हेतु दुःखों को ( ववर्थ ) निवारण कर । ( २ ) परमात्मा के पक्ष में - वह समस्त अन्न आदि ओषधि, जल, पशु प्रदान करता, आकाश को बनाता और सूर्य से अन्धकार और ज्ञान से मोह को दूर करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमः । सोमः । विराड् पंक्तिः । पंचमः ॥

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    विषय

    बाल- प्रभु-भजन

    पदार्थ

    प्रभुभक्त माता-पिता सन्तानों को भी प्रभु भजन में सम्मिलित करते हैं और उनसे प्रतिक्षण प्रयुक्त होनेवाले फूल-फल के विषय में पानी व गौ आदि पशुओं के विषय में प्रश्न करते हैं कि 'इन्हें बनानेवाला कौन है?' वे धीमे-धीमे उन बालकों का ध्यान प्रभु की ओर लाने का प्रयत्न करते हैं, फिर निम्न शब्दों में बालकों का प्रभु-भजन चलता है। हे (सोम) = शान्त प्रभो! जिन आपकी क्रिया अत्यधिक व महान् होती हुई भी बड़ी शान्ति से चल रही है, ऐसे (त्वम्) = आप ही (इमाः विश्वाः ओषधी:) = इन सब ओषधियों को (अजनयः) = उत्पन्न करते हैं, (त्वम्) = आप ही (अप:) = इन [शान्त - निर्मल] जलों को उत्पन्न करते हैं। (त्वम्) = आपने ही हमारे दूध आदि पदार्थों के लिए (गाः) = गौ आदि पशुओं को बनाया है। ठीक बात तो यह है कि (त्वम्) = आपने ही इस विशाल (अन्तरिक्षम्) = आकाश को आततन्थ चारों ओर अनन्त-सी दूरी तक विस्तृत किया है और (त्वम्) = आप ही (ज्योतिषा) = इन सूर्य, चन्द्र व तारों आदि के प्रकाश से (तमः) = अन्धकार को (विववर्थ) = दूर करते हैं। समझदार माता- पिता प्रश्नोत्तर के द्वारा अपने सन्तानों के मस्तिष्क में उल्लिखित बातों को अंकित करते हैं - वे फूल-फल, नदियों, पर्वतों के दृश्यों से प्रभावित सन्तानों को उनके निर्माता के विषय में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं और जब सन्तानें प्रभु का कुछ आभास देखने लगती हैं तब उल्लिखित स्वाभाविक स्तवन उनके मुख से उच्चारित होता है। जिन घरों में इस प्रकार प्रभु-भजन चलेगा वहाँ सन्तान सद्गुणी, पिछले मन्त्र में वर्णित विशेषताओंवाले क्यों न बनेंगे?

    भावार्थ

    भावार्थ- माता-पिता का कर्त्तव्य है कि वे अपनी सन्तानों में भी प्रभु भक्ति की प्रवृत्ति उत्पन्न करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्याप्रमाणे औषध रोग नाहीसे करते त्याप्रमाणे जी माणसे दुःख दूर करतात व प्राणाप्रमाणे बलवान बनून सूर्य जसा अंधःकार नष्ट करतो तसे जे अविद्यारूपी अंधःकार नष्ट करतात तेच राजपुरुष व ती माणसे जगात पूज्य ठरतात.

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    विषय

    पुन्हा, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (सोम) उत्तम सोमवल्ली औषधीप्रमाणे रोगांचा नाश करणारे राजन्, (त्वम्) आपण (इमा) या (विश्‍वाः) सर्व (औषधीः) सोम आदी औषधी (अजनयः) उत्पन्न करा (राज्यात रोगनाशक औषधीचे उत्पादन वाढवा) (त्वम्) आपण सूर्याप्रमाणे (अपः) जलाची वा उपयोगी कार्याची तसेच (त्वम्) आपण (गाः) या भूमीची वा गौवंशाची (अजनयः) वृद्धी करा. (त्वम्) आपण सूर्याप्रमाणे (ऊरु) सर्व क्षेति भरपूर कार्यासाठी वाव (आ, ततन्थ) निर्माण करता, त्यामुळे (त्वम्) आपण सूर्यजसा (ज्योतिषा) आपल्या प्रकाशाने (तमः) अंधकाराचा नाश करतो, तद्वत आपण न्यायाने अन्यायास (वि ववर्थ) दूर करा. या सद्गुणांमूळे आपण आम्हा प्रजाजनांना माननीय आहात. ॥22॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्याप्रमाणे औषधी रोग दूर करते त्याप्रमाणे जे लोक आपले दुःख दूर करतात, प्राण व शक्ती वाढवितात, ते जगात वंदनीय ठरतात, तसेच जे राजपुरुष सूर्य जसा रात्रीला तसे अधर्म व अविद्यारुप अंधकार नष्ट करतात ते देखील जगात पूजनीय होतात. ॥22॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    These herbs, these milch-kine, and these running waters, all these, O Soma, Thou hast generated. The spacious firmament hast Thou expanded, and with light hast Thou dispelled darkness.

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    Meaning

    Soma, creative power of nature and the world, you create all these herbs of the world, you create the waters and yajnic actions, you create the earth, cows and holy speech. You create and expand the wide skies, and you dispel and replace the darkness with light and remove ignorance and sin with knowledge and Dharma.

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    Translation

    O blissful Lord, you have generated herbs, waters and milch kine; you dispelled darkness with light; you have sustained and expanded the vast mid-regions. (1)

    Notes

    Oşadhiḥ, herbs, plants, that die after their fruit ripen. Apaḥ, जलानि , रसानि water; sap; juice. Gaḥ, cows; faculties of sense-organs. Vi vavarth, विवृणोषि, expose; dispel.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (সোম) উত্তম সোমবল্লী ওষধিসমূহের তুল্য রোগনাশক রাজন্ ! (ত্বম্) আপনি (ইমাঃ) এই (বিশ্বাঃ) সব (ওষধীঃ) সোমাদি ওষধি সকলকে (ত্বম্) আপনি সূর্য্য তুল্য (অপঃ) জল বা কর্ম্মকে এবং (ত্বম্) আপনি (গাঃ) পৃথিবী বা গাভি সকলকে (অজনয়ঃ) উৎপন্ন বা প্রকট করুন । (ত্বম্) আপনি সূর্য্য সদৃশ (উরু) বৃহৎ (অন্তরিক্ষম্) অবকাশকে (আ, ততন্থ) বিস্তৃত করেন এবং (ত্বম্) আপনি সূর্য্যের মত (জ্যোতিষা) প্রকাশ দ্বারা (তমঃ) অন্ধকারকে চাপিয়া রাখেন তদ্রূপ ন্যায় দ্বারা অন্যায়কে (বি, ববর্থ) আচ্ছাদিত বা নিবৃত্ত করুন, সুতরাং আপনি আমাদের মাননীয় ॥ ২২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যেমন ওষধি রোগকে তদ্রূপ দুঃখকে যে সব মনুষ্য হরণ করে, প্রাণতুল্য বলকে প্রকট করে এবং যে রাজপুরুষ সূর্য্য রাত্রিকে যেমন সেইরূপ অধর্ম ও অবিদ্যার অন্ধকারকে নিবৃত্ত করে, তাহারা জগতে পূজ্য কেন হইবে না? ॥ ২২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ত্বমি॒মাऽওষ॑ধীঃ সোম॒ বিশ্বা॒স্ত্বম॒পোऽঅ॑জনয়॒স্ত্বং গাঃ ।
    ত্বমা ত॑তন্থো॒র্ব᳕ন্তরি॑ক্ষং॒ ত্বং জ্যোতি॑ষা॒ বি তমো॑ ববর্থ ॥ ২২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ত্বমিত্যস্য গোতম ঋষিঃ । সোমো দেবতা । বিরাট্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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