यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 15
यो वः॑ शि॒वत॑मो॒ रस॒स्तस्य॑ भाजयते॒ह नः॑।उ॒श॒तीरि॑व मा॒तरः॑॥१५॥
स्वर सहित पद पाठयः। वः॒। शि॒वत॑म॒ इति॑ शि॒वऽत॑मः। रसः॑। तस्य॑। भा॒ज॒य॒त॒। इ॒ह। नः॒। उ॒श॒तीरिवेत्यु॑श॒तीःऽइ॑व। मा॒तरः॑ ॥१५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः ॥
स्वर रहित पद पाठ
यः। वः। शिवतम इति शिवऽतमः। रसः। तस्य। भाजयत। इह। नः। उशतीरिवेत्युशतीःऽइव। मातरः॥१५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे सत्स्त्रियो! यो वः शिवतमो रसोऽस्ति तस्येह नो मातरः पुत्रानुशतीरिव भाजयत॥१५॥
पदार्थः
(यः) (वः) युष्माकम् (शिवतमः) अतिशयेन कल्याणकरः (रसः) आनन्दवर्द्धकः स्नेहरूपः (तस्य) रसम्। अत्र कर्मणि षष्ठी। (भाजयत) सेवयत (इह) अस्मिञ्जगति (नः) अस्मान् (उशतीरिव) कामयमाना इव। अत्र वाच्छन्दसि॥ (अष्टा॰६।१।१०२) इति पूर्वसवर्णादेशः। (मातरः)॥१५॥
भावार्थः
यदि होमादिनाऽऽपः शुद्धाः क्रियेरँस्तर्ह्येता मातरोऽपत्यानीव पतिव्रता पतीनिव सर्वान् प्राणिनस्सुखयन्ति॥१५॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे श्रेष्ठ स्त्रियो! (यः) जो (वः) तुम्हारा (शिवतमः) अतिशय कल्याणकारी (रसः) आनन्दवर्द्धक स्नेहरूप रस है (तस्य) उसका (इह) इस जगत् में (नः) हमको (उशतीरिव, मातरः) पुत्रों की कामना करनेवाली माताओं के तुल्य (भाजयत) सेवा कराओ॥१५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो होम आदि से जल शुद्ध किये जावें तो ये माता जैसे सन्तानों वा पतिव्रता स्त्रियां अपने पतियों को सुखी करती हैं, वैसे सब प्राणियों को सुखी करते हैं॥१५॥
विषय
जल - रस सेवन-पीने का प्रकार
पदार्थ
१. इन मन्त्रों के ऋषि 'सिन्धुद्वीप' हैं। 'स्यन्दन्ते इति सिन्धवः '- बहने से जल 'सिन्धु' हैं। ये जल जिसके अन्दर व बाहर उपयुक्त हुए हैं, वह 'द्विर्गता आपो यस्मिन्' इस व्युत्पत्ति से 'द्वीप' है। यह सिन्धुद्वीप कहता है कि हे जलो! (यः) = जो (वः) = आपका (शिवतमः रसः) = अत्यन्त कल्याणकर रस है (तस्य) = उसका (नः) = हमें (इह) = इस मानव शरीर में (भाजयत) = सेवन कराइए। उसी प्रकार (इव) = जैसे (उशती) = हित चाहती हुई (मातर:) = माताएँ बच्चे को दूध का सेवन कराती हैं। २. जल हमारे लिए उसी प्रकार हितकर हैं जैसे बच्चे के लिए माता । बच्चा जिस प्रकार मातृस्तन से दुग्ध का धीमे-धीमे पान करता है, इसी प्रकार हमें धीमे-धीमे जल का रस लेना है। ३. जैसे हाथी तो गन्ना खा जाता है, परन्तु मनुष्य गन्ने का रस लेता है इसी प्रकार हमें जल नहीं पी जाना अपितु जल का रस लेना है। 'कुल्ला करते जाएँ', थोड़ा-थोड़ा पानी अपने आप अन्दर जाएगा। यह जल के रस को लेना है। एकदम गिलास - का- गिलास पेट में नहीं उलट देना। बाहर भी वस्तुतः स्पजिंग के ढंग से पानी का रस लेना है, बालटियाँ नहीं उलटाते चलना। हम सन्तरा नहीं खा जाते, उसका रस ही लेते हैं। इसी प्रकार प्रस्तुत मन्त्र में जल के रस के सेवन का विधान है। जल को सदा धीमे-धीमे पीना ही हितकर है, इसी को आचमन करना कहते हैं, sipping न कि Drinking | आचमन के रूप में पिया हुआ जल रोगों का आचमन ( चमु भक्षणे) कर जाता है। यह रस हमें नीरोगता व दीर्घायु प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- हम सदा जलों का सेवन आचमनरूप से करते हुए उनके रस का ग्रहण करें।
मन्त्रार्थ
(उशती:-इव मातरः) हे प्रापणीय जल धाराओ! जैसे माताएं अपना स्तन्य दूध पुत्र को देती पिलाती हैं (वः-यः शिवतम: रसः-तस्य-इह नः-भाजयत) तुम्हारा जो अत्यन्त कल्याणकर रस- स्वाद पुष्टिकर है उस रस के इस मेरे शरीर में स्नान और पान से तथा खेत में सींचने से हमें प्राप्त कराओ ॥१५॥
विशेष
ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे माता आपल्या संतानांना किंवा पतिव्रता स्रिया आपल्या पतींना सुखी करतात तसे जे लोक होम वगैरे करून जलशुद्धी करतात ते सर्व प्राण्यांना सुखी करतात.
विषय
पुन्हा, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे श्रेष्ठ स्त्रियांनो, (वः) तुमचा (यः) जो (शिवतमः) अत्यंत कल्याणकारी (रसः) आनंदवर्धक स्नेहरूपरस आहे (पतीप्रत प्रीती, संततीप्रत वात्सल्य, लहानांकरिता प्रेम असे अनेक मधुर भाव जे तुमच्या हृदयात आहेत) (तस्य) त्या प्रीतीरसाचा (इह) या गृहस्थ संसारात (नः) आम्हाला (घरातील सर्वांना) (भाजयत) लाभ होऊ द्या. ज्याप्राणे (उशतीरिव, मातरः) पुत्रांना आई प्रेम करते, त्या मातेप्रमाणे तुम्ही (घरातील सर्वांना मातृहृद्याचे वात्सल्य व) स्नेह द्या. ॥15॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जर होम आदी प्रयत्नांद्वारे पृथ्वीवरील जल शुद्ध केले जाईल, तर ज्याप्रमाणे आई आपल्या मुला-बाळांना आणि पतिव्रता स्त्री आपल्या पतीला सुखी करते, त्याप्रमाणे जल सर्व प्राण्यांसाठी सुखकारक होईल (वा होते). ॥15॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O noble wives, give us your most propitious affection in this world, like mothers longing for progeny.
Meaning
Like generous mothers overflowing with love for their children, blessed women, give us here in life our full share of the most blissful nectar that you hold for us as the essence of nature’s gift of vitality.
Translation
O waters, make us enjoy here the most blissful sap, which you have, like mothers full of affectionate love. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে শ্রেষ্ঠ স্ত্রীগণ ! (য়ঃ) যে (বঃ) তোমার (শিবতমঃ) অতিশয় কল্যাণকারী (রসঃ) আনন্দবর্দ্ধক স্নেহরূপ রস (তস্য) তাহার (ইহ) এই জগতে (নঃ) আমাদেরকে (উশতীরিব, মাতরঃ) পুত্রের কামনাকারিণী মাতাদের তুল্য (ভাজয়ত) সেবা করাও ॥ ১৫ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যদি হোমাদি দ্বারা জল শুদ্ধ করা হয় তাহা হইলে এই সব মাতা, যেমন সন্তানবান্ পতিব্রতা স্ত্রীগণ স্বীয় পতিদেরকে সুখী করে, সেইরূপ সকল প্রাণীদেরকে সুখী করে ॥ ১৫ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়ো বঃ॑ শি॒বত॑মো॒ রস॒স্তস্য॑ ভাজয়তে॒হ নঃ॑ ।
উ॒শ॒তীরি॑ব মা॒তরঃ॑ ॥ ১৫ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়ো ব ইত্যস্য সিন্ধুদ্বীপ ঋষিঃ । আপো দেবতাঃ । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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