यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 9
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - मित्रादयो लिङ्गोक्ता देवताः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
5
शन्नो॑ मि॒त्रः शं वरु॑णः॒ शन्नो॑ भवत्वर्य॒मा।शन्न॒ऽ इन्द्रो॒ बृह॒स्पतिः॒ शन्नो॒ विष्णु॑रुरुक्र॒मः॥९॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। मि॒त्रः। शम्। वरु॑णः। शम्। नः॒। भ॒व॒तु॒। अ॒र्य्य॒मा ॥ शम्। नः॒। इन्द्रः॑। बृह॒स्पतिः॑। शम्। नः॒। विष्णुः॑। उ॒रु॒क्र॒म इत्यु॑रुऽक्र॒मः ॥९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शन्नो मित्रँ शँवरुणः शन्नो भवत्वर्यमा । शन्न इन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः ॥
स्वर रहित पद पाठ
शम्। नः। मित्रः। शम्। वरुणः। शम्। नः। भवतु। अर्य्यमा॥ शम्। नः। इन्द्रः। बृहस्पतिः। शम्। नः। विष्णुः। उरुक्रम इत्युरुऽक्रमः॥९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्यैः स्वार्थपरार्थसुखमिषितव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यथा नो मित्रः शं भवतु वरुणः शम्भवत्वर्य्यमा नः शं भवतु इन्द्रो बृहस्पतिर्नः शम्भवतु उरुक्रमो विष्णुर्नः शम्भवतु तथा युष्मभ्यमपि भवेत्॥९॥
पदार्थः
(शम्) सुखकारि (नः) अस्मभ्यम् (मित्रः) प्राण इव प्रियः सखा (शम्) (वरुणः) जलमिव शान्तिप्रदः (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (भवतु) (अर्य्यमा) योऽर्यान् मन्यते स न्यायाधीशः (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (बृहस्पतिः) बृहत्या वाचः पालको विद्वान् (शम्) (नः) अस्मभ्यम् (विष्णुः) व्यापकेश्वरः (उरुक्रमः) उरु बहुक्रमः संसाररचने यस्य सः॥९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा स्वार्थं सुखमेष्टव्यं तथा परार्थमपि तथा च ते स्वयं सत्सङ्गमिच्छेयुस्तथा तत्रान्यानपि प्रेरयेयुः॥९॥
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्यों को अपने और दूसरों के लिये सुख की चाहना करनी चाहिये इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जैसे (नः) हमारे लिये (मित्रः) प्राण के तुल्य प्रिय मित्र (शम्) सुखकारी (भवतु) हो (वरुणः) जल के तुल्य शान्ति देनेवाला जन (शम्) सुखकारी हो (अर्य्यमा) पदार्थों के स्वामी वा वैश्यों को माननेवाला न्यायाधीश (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकारी हो (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् (बृहस्पतिः) महती वेदरूप वाणी का रक्षक विद्वान् (नः) हमारे लिये (शम्) कल्याणकारी हो और (उरुक्रमः) संसार की रचना में बहुत शीघ्रता करनेवाला (विष्णुः) व्यापक ईश्वर (नः) हमारे लिये (शम्) कल्याणकारी होवे, वैसे हम लोगों के लिये भी होवे॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि जैसे अपने लिये सुख चाहें, वैसे दूसरों के लिये भी और जैसे आप सत्सङ्ग करना चाहें, वैसे इसमें अन्य लोगों को भी प्रेरणा किया करें॥९॥
विषय
शान्तिकरण ।
भावार्थ
( मित्रः नः शम् ) प्राण के समान सबका स्नेही, ईश्वर और राजा हमें सुखकारी हो । ( वरुणः नः शम् ) वह जल के समान हमें शान्तिप्रद हो । ( अर्थमा नः शं भवतु ) न्यायाधीश और न्यायकारी परमेश्वर हमें शान्तिदायक हो । (इन्द्रः) शत्रु का नाशकारी, परमैश्वर्यवान्, (बृहस्पतिः) बड़े भारी राष्ट्र का पालक राजा और बृहती वेदवाणी का पालक, आचार्य, परमेश्वर ( न: शम् ) हमें सुखदायी हो । (उरुक्रमः) संसार की रचना में बहुत प्रकार से चेष्टा करने वाला परमेश्वर और महान् विक्रमशील राजा, (विष्णुः) सेनापति, व्यापक सामर्थ्यवान् ईश्वर ( न: शम् ) हमें सुखदायक हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मित्रादयो लिङ्गोक्ताः। निचृदनुष्टुप् । गांधारः ॥
विषय
साधनसप्तक
पदार्थ
प्रस्तुत मन्त्र में प्रभु को मित्रादि सात नामों से स्मरण करके शान्ति-प्राप्ति की प्रार्थना की गई है। भिन्न-भिन्न नामों से शान्ति की प्रार्थना का स्वारस्य इसमें है कि इन नामों के द्वारा शान्ति प्राप्ति के सात साधनों का वर्णन हुआ है। १. सबसे प्रथम साधन 'मित्र: ' शब्द से सूचित हो रहा है। (मित्रः नः शम्) = मित्र नामक प्रभु हमें शान्ति देनेवाले हों। वस्तुतः जब हम परस्पर मित्रभाव से चलेंगे तभी शान्ति प्राप्त होगी। स्नेह के अभाव में शान्ति का प्रश्न ही नहीं। ईर्ष्या-द्वेष हमें सदा सन्तप्त किये रहते हैं। इनसे हम जलते रहते हैं । २. (वरुणः शम्) = वरुण हमें शान्ति दे। 'वरुणो नाम वरः श्रेष्ठ: ' श्रेष्ठ बनना ही शान्ति देनेवाला है। श्रेष्ठ वह है जो न दबता है, न दबाता है, न खुशामद करता है, न कराता है। कभी बदले की भावना से आन्दोलित नहीं होता। ३. अर्यमा नः शम् भवतु अर्यमा हमें शान्ति दे। 'आर्यमेति तमाहुर्यो ददाति = अर्यमा देनेवाला है। प्रभु निरपेक्ष [Absolute] अर्यमा है। हम भी देने की वृत्तिवाले बनें, हमारे जीवनों में भी शान्ति होगी। दान हमें धन के बन्धन से ऊपर उठा शान्ति प्राप्त कराता है । ४. (इन्द्रः नः शम्) = इन्द्र नामक प्रभु हमें शान्ति दे । इन्द्र बनकर हम भी शान्ति लाभ कर सकेंगे। इन्द्र असुरों का संहार करनेवाला है। आसुरवृत्तियों का संहार करके ही हम शान्ति का अनुभव कर सकते हैं। इन्द्र वह है जो इन्द्रियों का अधिष्ठाता है। यही शान्त होता है, इन्द्रियों का गुलाम वासना - समुद्र में डूब जाता है । ५. (बृहस्पतिः नः शम्) = बृहस्पति हमें शान्ति दे। बृहस्पति 'ब्रह्मणस्पति' है, वेदज्ञान का स्वामी है। ज्ञान के अनुपात में ही हमारे जीवन शान्त होते हैं। ६. (विष्णुः नः शम्) = विष्णु हमें शान्ति दे। 'विष व्याप्तौ' से बना हुआ विष्णु शब्द व्यापक मनोवृत्ति का संकेत कर रहा है। जितना हमारा हृदय विशाल होगा उतना ही शान्त होगा। संकुचित हृदय औरों के उत्कर्ष को देखकर जला करता है, उसमें शान्ति का अवकाश नहीं। ७. (उरुक्रमः) = [क] महान् पराक्रमवाला प्रभु हमें शान्ति दे। अकर्मण्य व्यक्ति के जीवन में मालिन्य भर जाता है और वह शान्त नहीं हो पाता [ख] 'उरुक्रम' का अर्थ महान् व्यवस्थावाला भी है। व्यवस्थित जीवन सदा शान्त होता है। घर में वस्तुएँ अव्यवस्थित-सी पड़ी हों तो उठने-बैठने को भी जी नहीं करता। नियम या व्यवस्था शान्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
भावार्थ
भावार्थ - मित्रादि सात साधनों से सच्ची शान्ति प्राप्त होती है।
मन्त्रार्थ
(मित्रः-नः शं वरुणः शम्) आग्नि हमारे लिए कल्याणकारी हो जल भी कल्याणकारी हो (अर्यमा नः शं भवतु) सूर्य हमारे लिए कल्याणकारी हो (इन्द्रः-बृहस्पतिः-नः शम्) विद्युत् वायु हमारे लिए कल्याणकारी हो (उरुक्रमः विष्णु:-न: शम्) बहुत पराक्रमवाला सोम-चन्द्रमा हमारे लिए कल्याणकारी हो ॥९॥
विशेष
ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसे स्वतःसाठी जशी सुखाची इच्छा करतात तशी दुसऱ्यांसाठीही करावी. जशी स्वतःला सत्संगाची इच्छा असते तशी प्रेरणा इतर लोकांनाही द्यावी.
विषय
मनुष्याने इतरांकरिताही सुखाची कामना केली पाहिजे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, (उपासना व यज्ञ- यागादि कर्म न करणार्या सामान्यजनहो,) ज्याप्रमाणे (नः) आमचा (मित्रः) प्रिय मित्र आच्यासाठी (शम्) सुखकारी (भवतु) व्हावे आणि (वरूणः) जलाप्रमाणे शीतलत्व देणारा प्रिय मनुष्य आमच्यासाठी (शम्) सुखदायक व्हावा (त्याप्रमाणे तुम्हांसाठीही तो सुखकारी होवो) तसचे (अर्यमा) पदार्थांचा स्वामी वैश्य अथवा न्यायाधीश (नः) आमच्यासाठी (शम्) सुखकारी व्हावा आणि (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान व (बृहस्पितिः) महती वेदरुप वाणीचा रक्षक विद्वान देखील (नः) आमच्यासाठी (शम्) कल्याणकारी होवो. तसेच (उरुक्रमः) शीघ्र (वा क्षणात) सृष्टिरचना करणारा तो (विष्णुः) सर्वव्यापी ईश्वर (नः) आमच्यासाठी (शम्) कल्याणकारी होवो, त्याप्रमाणे तुम्हा लोकांसाठीही तो कल्याणकारी होवो. ॥9॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. मुनष्यांसाठी हे हितकर उचित कर्म आहे की ते ज्याप्रमाणे स्वतः करिता सुखाची कामना करतात, त्याप्रमाणे इतरांसाठीही कामना करावी तसेच जसे ते स्वतः सत्संगात जातात, तद्वत इतरांसाठी सत्संगात जाण्याची प्रेरणा करावी. ॥9॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May God, friendly like breath, be gracious unto us; may God, tranquiliser like water be kind to us; may God the Just be benevolent to us; may God the Mighty, and Guardian of the vedic speech be comfort-giving to us, may the All-pervading God, the vigilant creator of the universe be pleasant to us.
Meaning
May Mitra, lord and friend of the world, be good and kind to us. May Varuna, giver of cool and bliss be good and kind to us. May Aryama, lord of universal justice, be good and kind. May Indra, lord of power and glory be good and gracious. May Brihaspati, lord infinite and omniscient, be good and generous. May Vishnu, lord infinite and omnipresent of grand action be good and generous with gifts of peace and joy for us all.
Translation
May the friendly Lord be gracious to us; may the venerable Lord, and the controller Lord be gracious to us. May the resplendent Lord, the Lord supreme be gracious to us, and may the omnipresent Lord of wide strides be gracious to us. (1)
Notes
According to Dayananda, Mitra, Varuna, Aryaman, Indra, Brhaspati and Viṣṇu are the different names of one and the same deity emphasizing its different aspects. But in legend, they are imagined to be different gods. Mitra is worshipped as a deity in Syria. Indra is imagined to be the king of gods and Brhaspati the preceptor of gods. Vișnu is famous for his three strides, with which be covered all the three worlds. Still, Mahidhara explains Mitra, as one who, मेद्यति स्निह्यति भक्तेषु, is affectionate towards devotees; वृणोत्यङ्गीकरोति भक्तं इति वरुणः, one who adopts devotee is Varunaइ;यर्ति गच्छति भक्तं यः स अर्यमा, one who goes towards devotees, is Aryaman; not much different from Dayānanda.
बंगाली (1)
विषय
মনুষ্যৈঃ স্বার্থপরার্থসুখমিষিতব্যমিত্যাহ ॥
মনুষ্যদিগকে নিজের ও অপরের সুখের কামনা করা দরকার এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন (নঃ) আমাদের জন্য (মিত্রঃ) প্রাণতুল্য প্রিয় মিত্র (শম্) সুখকারী (ভবতু) হউক, (বরুণঃ) জলের সমান শান্তিদাতা ব্যক্তি (শম্) সুখকারী হউক, (অর্য়মা) পদার্থসমূহের স্বামী অথবা বৈশ্যদিগকে মান্যকারী ন্যায়াধীশ (নঃ) আমাদের জন্য (শম্) কল্যাণকারী হউক (ইন্দ্রঃ) পরম ঐশ্বর্য্যবান্ (বৃহস্পতিঃ) মহতী বেদরূপ বাণীর রক্ষক বিদ্বান্ (নঃ) আমাদের জন্য (শম্) কল্যাণকারী হউক এবং (উরুক্রম্ঃ) সংসারের রচনায় বহু শীঘ্রতাকারী (বিষ্ণুঃ) ব্যাপক ঈশ্বর (নঃ) আমাদের জন্য (শম্) কল্যাণকারী হউক সেইরূপ আমাদের জন্যও হউক ॥ ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদিগের উচিত যে, যেমন নিজের জন্য সুখ কামনা করিবে সেইরূপ অপরের জন্যও কামনা করিবে এবং যেমন স্বয়ং সৎসঙ্গ করিতে ইচ্ছুক তদ্রূপ ইহাতে অন্যলোকদেরকেও প্রেরণা দিতে থাকিবে ॥ ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
শন্নো॑ মি॒ত্রঃ শং বর॑ুণঃ॒ শন্নো॑ ভবত্বর্য়॒মা ।
শন্ন॒ऽ ইন্দ্রো॒ বৃহ॒স্পতিঃ॒ শন্নো॒ বিষ্ণু॑রুরুক্র॒মঃ ॥ ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
শন্ন ইত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । মিত্রাদয়ো লিঙ্গোক্তা দেবতাঃ । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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