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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 73/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसुक्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - अभिसारिणी सूक्तम् - सूक्त-७३
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    यो वा॒चा विवा॑चो मृ॒ध्रवा॑चः पु॒रू स॒हस्राशि॑वा ज॒घान॑। तत्त॒दिद॑स्य॒ पौंस्यं॑ गृणीमसि पि॒तेव॒ यस्तवि॑षीं वावृ॒धे शवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । वा॒चा । विऽवा॑च: । मृ॒ध्रऽवा॑च: । पु॒रू । स॒हस्रा॑ । अशि॑वा । ज॒घान॑ ॥ तत्ऽत॑त् । इत् । अ॒स्य॒ । पौंस्य॑म् । गृ॒णी॒म॒सि॒ । पि॒ताऽइ॑व । य: । तवि॑षीम् । व॒वृ॒धे । शव॑: ॥७३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वाचा विवाचो मृध्रवाचः पुरू सहस्राशिवा जघान। तत्तदिदस्य पौंस्यं गृणीमसि पितेव यस्तविषीं वावृधे शवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । वाचा । विऽवाच: । मृध्रऽवाच: । पुरू । सहस्रा । अशिवा । जघान ॥ तत्ऽतत् । इत् । अस्य । पौंस्यम् । गृणीमसि । पिताऽइव । य: । तविषीम् । ववृधे । शव: ॥७३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 73; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सेनापति के लक्षण का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जिस [शूर] ने (वाचा) [अपनी सत्य] वाणी से (विवाचः) विरुद्ध बोलनेवाले, (मृध्रवाचः) हिंसक वाणी वाले के (पुरु) बहुत (सहस्रा) सहस्रों (अशिवा) क्रूर कर्मों को (जघान) नष्ट किया है और (यः) जिस [शूर] ने (पिता इव) पिता के समान (तविषीम्) हमारी शक्ति और (शवः) पराक्रम को (वावृधे) बढ़ाया है, (अस्य) उसके (तत्-तत्) उस-उस (इत्) ही (पौंस्यम्) मनुष्यपन [वा बल] की (गृणीमसि) हम बड़ाई करते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    जो वीर पुरुष दुराचारियों का नाश करके प्रजा को कष्ट से छुड़ाता है, प्रजागण उस गुणवान् पुरुष को ही मुखिया बनाकर प्रीति करते हैं ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(यः) वीरः (वाचा) सत्यवाण्या (विवाचः) विरुद्धवाणीयुक्तस्य (मृध्रवाचः) हिंसकवाणीयुक्तस्य (पुरु) बहूनि (सहस्रा) सहस्राणि (अशिवा) अभद्राणि। क्रूरकर्माणि (जघान) नाशितवान् (तत्-तत्) सुप्रसिद्धम् (इत्) एव (अस्य) शूरस्य (पौंस्यम्) अ० २०।६७।२। पुंसः कर्म। बलम् (गृणीमसि) वयं स्तुमः (पिता) (इव) (यः) शूरः (तविषीम्) अ० २०।९।२। शक्तिम् (वावृधे) वर्धितवान् (शवः) बलम् ॥

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    विषय

    न विवाचः, न मृध्रवाचः

    पदार्थ

    १. (यः) = जो (वाच:) = वेदवाणी के द्वारा (विवाच:) = विरुद्ध वाणीवाले अथवा बहुत बोलनेवाले तथा (मृध्रवाचः) = हिंसायुक्त वाणीवाले, अर्थात् कटुभाषी (पुरू सहस्त्रा) = अनेक हजारों (अशिवा) = अकल्याणकर शत्रुओं को (जघान) = नष्ट करते हैं। वेदवाणी द्वारा उपदेश देकर प्रभु मनुष्यों को 'बहुत बोलने से तथा कड़वा बोलने से रोकते हैं। बहुत बोलने व कड़वा बोलनेवाले व्यक्ति कर्मवीर नहीं हुआ करते। २. कर्मवीर बनने के लिए हम (अस्य) = इस प्रभु के (तत् तत्) = उस उस (पौंस्य) = वीरतायुक्त कर्म का (इत्) = निश्चय से (गृणीमसि) = स्तवन करते हैं। इस स्तवन के द्वारा हम भी वीरतापूर्ण कर्मों को करने की प्रेरणा करते हैं। उस समय वे प्रभु (पिता इव) = हमारे पिता की भाँति होते हैं, (यः) = जोकि (तविषीम्) = हमारे बलों को तथा बल के द्वारा (शव:) = क्रियाशीलता को वावृधे बढ़ाते हैं।

    भावार्थ

    हम असंगत व बहुत प्रलापों को तथा हिंसायुक्त वाणियों को छोड़कर वीरतापूर्ण कों में प्रवृत्त हों। प्रभु हमारे रक्षक होंगे, वे हमें बल व क्रियाशीलता प्राप्त कराएंगे। कर्मवीर बनकर हम सुख-निर्माण करनेवाले 'शुन:शेप' बनेंगे। 'शुन:शेप' ही अगले सूक्त के ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (यः) जो परमेश्वर, (वाचा) निज वेदवाणी के उपदेशों द्वारा, (विवाचः) विरुद्ध-विरुद्ध वक्ताओं तथा (मृध्रवाचः) कटुवक्ताओं के (पुरू सहस्रा) हजारों प्रकार की नानाविध (अशिवा) अशिव-भावनाओं का (जघान) हनन करता है—(तत् तत् इत्) इस परमेश्वर के उस-उस (पौंस्यम्) शक्तिशाली कर्म की (गृणीमसि) हम स्तुतियाँ करते हैं, जो परमेश्वर कि (पिता इव) सांसारिक पिता के सदृश (तविषीम्) हमारे बलों और (शवः) सामर्थ्यों को (वावृधे) बढ़ाता रहता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    Who with one united forceful voice silences and eliminates many many hundreds of contradictory and confrontationist voices of manly violence, sabotage and destruction, that power and voice of this mighty Indra we admire and celebrate, the ruler who, like a parent power, promotes and elevates our strength, lustre and glory. Who with one united forceful voice silences and eliminates many many hundreds of contradictory and confrontationist voices of manly violence, sabotage and destruction, that power and voice of this mighty Indra we admire and celebrate, the ruler who, like a parent power, promotes and elevates our strength, lustre and glory.

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    Translation

    We laud and praise all these deeds of Almighty Divinity who like father strengthen our power and vigour, who through thunder of cloud destroys many thousand of worms and germs of disease whose cry is meaningless who cry violently.

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    Translation

    We laud and praise all these deeds of Almighty Divinity who like father strengthen our power and vigor, who through thunder of cloud destroys many thousands of warms and germs of disease whose cry is meaningless who cry violently.

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    Translation

    We sing the praises of those various powers of the Almighty, the highly learned or the great preceptor, Who by His or his powerful preachings smashes the persons of inimical and violent speech and many, thousands of evil forces, and enhances the power and strength of the virtuous.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(यः) वीरः (वाचा) सत्यवाण्या (विवाचः) विरुद्धवाणीयुक्तस्य (मृध्रवाचः) हिंसकवाणीयुक्तस्य (पुरु) बहूनि (सहस्रा) सहस्राणि (अशिवा) अभद्राणि। क्रूरकर्माणि (जघान) नाशितवान् (तत्-तत्) सुप्रसिद्धम् (इत्) एव (अस्य) शूरस्य (पौंस्यम्) अ० २०।६७।२। पुंसः कर्म। बलम् (गृणीमसि) वयं स्तुमः (पिता) (इव) (यः) शूरः (तविषीम्) अ० २०।९।२। शक्तिम् (वावृधे) वर्धितवान् (शवः) बलम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    সেনাপতিলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (যঃ) যে [বীর] (বাচা) [নিজের সত্য] বাণী দ্বারা (বিবাচঃ) বিরুদ্ধ বাণীযুক্ত, (মৃধ্রবাচঃ) হিংসক বাণীযুক্ত ব্যক্তির (পুরু) বহু (সহস্রা) সহস্র (অশিবা) ক্রূর কর্ম (জঘান) নষ্ট করে এবং (যঃ) যে [বীর] (পিতা ইব) পিতার ন্যায় (তবিষীম্) আমাদের শক্তি এবং (শবঃ) পরাক্রম (বাবৃধে) বর্ধিত করে, (অস্য) তাঁর (তৎ-তৎ) সেই-সেই (ইৎ) নিশ্চিতরূপে (পৌংস্যম্) মনুষ্যত্বের [বা বলের] (গৃণীমসি) আমরা প্রশংসা-স্তুতি করি ॥৬॥

    भावार्थ

    যে বীর পুরুষ দুরাচারীদের বিনাশ করে প্রজাদের কষ্ট থেকে মুক্ত করেন, প্রজাগণ সেই গুণবান্ পুরুষকে অবশ্যই মুখ্য পদে স্থিত করিয়ে তাঁর প্রতি প্রীতি করে ॥৬॥

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    भाषार्थ

    (যঃ) যে পরমেশ্বর, (বাচা) নিজ বেদবাণীর উপদেশ দ্বারা, (বিবাচঃ) বিরুদ্ধ-বিরুদ্ধ বক্তাদের তথা (মৃধ্রবাচঃ) কটুবক্তাদের (পুরূ সহস্রা) সহস্র প্রকারের নানাবিধ (অশিবা) অশিব-ভাবনা-সমূহের (জঘান) হনন করেন—(তৎ তৎ ইৎ) এই পরমেশ্বরের সেই-সেই (পৌংস্যম্) শক্তিশালী কর্মের (গৃণীমসি) আমরা স্তুতি করি, যে পরমেশ্বর (পিতা ইব) সাংসারিক পিতার সদৃশ (তবিষীম্) আমাদের বল এবং (শবঃ) সামর্থ্য (বাবৃধে) বর্ধন করতে থাকেন।

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