अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 11
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - पर्जन्यः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
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आ प॒र्जन्य॑स्य वृ॒ष्ट्योद॑स्थामा॒मृता॑ व॒यम्। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥
स्वर सहित पद पाठआ । प॒र्जन्य॑स्य । वृ॒ष्ट्या । उत् । अ॒स्था॒म॒ ॒। अ॒मृता॑: । व॒यम् । वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.११॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पर्जन्यस्य वृष्ट्योदस्थामामृता वयम्। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥
स्वर रहित पद पाठआ । पर्जन्यस्य । वृष्ट्या । उत् । अस्थाम । अमृता: । वयम् । वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थ
(वयम्) हम (अमृताः) अमर होकर (पर्जन्यस्य) सींचनेवाले मेघ की (वृष्ट्या) बरसा से [जैसे] (आ) सब ओर से (उत् अस्थाम) उठ खड़े हुए हैं, (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से (वि) अलग, और (यक्ष्मेण) राजरोग, क्षयी आदि से (वि=विवर्त्तै) अलग रहूँ, और (आयुषा) जीवन [उत्साह] से (सम्=सम् वर्तै) मिला रहूँ ॥११॥
भावार्थ
मनुष्य इस सूक्त में वर्णित उपदेश के अनुसार ब्रह्मज्ञान के श्रवण मनन और निदिध्यासन [विचार] से ऐसे हर्ष में बढ़े हैं जैसे अन्न आदि औषधें जल की बरसा से नवीन जीवन पाकर उगती हैं, इसलिए प्रत्येक मनुष्य आत्मिक और शारीरिक दोष छोड़कर अपना जीवन का लाभ उठावें ॥११॥ इति षष्ठोऽनुवाकः ॥ इति षष्ठः प्रपाठकः ॥ इति तृतीयं काण्डम् ॥
टिप्पणी
११−(आ) समन्तात् (पर्जन्यस्य) अ० १।२।१। सेचकस्य। मेघस्य (वृष्ट्या) वर्षजलेन। (उत् अस्थाम) तिष्ठतेर्लुङ्। उत्थिता अभूम। (अमृताः) मरणरहिता अमृतत्वं जीवनत्वं प्राप्ताः सन्तः। (वयम्) उपासकाः। अन्यद् व्याख्यातम् ॥
विषय
वृष्टि-जल व अमरता
पदार्थ
१. (वयम्) = हम (पर्जन्यस्य वृष्ट्या) = परातृप्ति के जनक मेघ की वृष्टि से-मेघ के वष्टिजल से (आ) = सब प्रकार से (उत् अस्थाम्) = रोगों से बाहर-दूर स्थित हों और (अमृता:) = नौरोग जीवनवाले बनें। २. मैं सब पापों व रोगों से पृथक् होऊ और उत्कृष्ट जीवन से संगत होऊँ।
भावार्थ
वृष्टि का जल प्रयोग हमें नीरोगता व अमरता प्रदान करे।
विशेष
यहाँ तृतीय काण्ड समाप्त होता है और चतुर्थ काँड 'वेन:' मेधावी ऋषि के सूक्त से आरम्भ होता है। पूर्ण नीरोग व निष्काम जीवनवाला यह 'वेन' प्रभु का उपासन करता है।
भाषार्थ
(आ) सब ओर अर्थात् सर्वत्र (पजन्यस्य वृष्ट्या) मेघ की वर्षा के कारण, (वयम्) हम (उदस्थाम) स्वास्थ्य में उन्नत तथा खड़े हो गये हैं, (अमृताः) और मृत्यु से रहित हो गये हैं। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पापों से (वि) वियुक्त हो गया हूँ, (यक्ष्मेण) यक्ष्मरोग से (वि) वियुक्त हो गया हूँ, और (समायुषा) स्वस्थ तथा दीर्घायु से (सम्) सम्पन्न हो गया हूँ।
टिप्पणी
[मेघ की सर्वत्र वर्षा से वायु का सूखापन तथा गर्मी शान्त हो जाती है, और रोगी अपने को सुखी अनुभव करने लगते हैं। यह अनुभूति शीघ्र मृत्यु से बचाती है। इसे अमृत कहा है।]
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय ।
भावार्थ
(वयम्) हम (पर्जन्यस्य वृष्ट्या) मेघ की वर्षा से (आ उद् अस्थाम) सब प्रकार से उन्नति को प्राप्त करें और (अमृताः) अमर हो जायँ, मृत्यु को प्राप्त न हों (वि अहं० इत्यादि पूर्ववत्)। इति षष्ठोनुवाकः।
टिप्पणी
इति तृतीय काण्ड समाप्तम्। तत्रानुवाकाः षट् चैकत्रिंशत् सूक्तान्यथो ऋचाम् । त्रिंशत् शतद्वयञ्चैतत् तृतीय काण्डमिष्यते ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। पाप्महा देवता। १-३, ६-११ अनुष्टुभः। ७ भुरिग। ५ विराङ् प्रस्तार पंक्तिः। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Negativity
Meaning
Let us live and rise high by the showers of divine rain. Let us rise to immortality beyond death. Let me, too, be free from all sin. Let me be free from cancer and consumption. Let me enjoy a long full age with good health.
Translation
Hither with seasonal rains (Parjanya). We have stood up so far immortal, away from the niggard, away from all evil, away from wasting disease. May I be enjoined with a long life.
Translation
Let us rise with the rain of cloud and let us remain immortal. May we be free from all evils, let us be free from declines and encompassed with long life.
Translation
May we acquire prosperity through rain from clouds, and be free from premature death. May I, being free from sins and pulmonary disease, be yoked with old age.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
११−(आ) समन्तात् (पर्जन्यस्य) अ० १।२।१। सेचकस्य। मेघस्य (वृष्ट्या) वर्षजलेन। (उत् अस्थाम) तिष्ठतेर्लुङ्। उत्थिता अभूम। (अमृताः) मरणरहिता अमृतत्वं जीवनत्वं प्राप्ताः सन्तः। (वयम्) उपासकाः। अन्यद् व्याख्यातम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(আ) সবদিকে অর্থাৎ সর্বত্র (পর্জন্যস্য বৃষ্ট্যা) মেঘের বর্ষার কারণে, (বয়ম্) আমরা (উদস্থাম) স্বাস্থ্যে উন্নত ও উচ্চ হয়েছি, (অমৃতাঃ) এবং মৃত্যু রহিত হয়েছি। (অহম্) আমি (সর্বেণ পাপ্মনা) সব পাপ থেকে (বি) বিযুক্ত হয়েছি, (যক্ষ্মেণ) যক্ষ্মা রোগ থেকে (বি) বিযুক্ত হয়েছি, এবং (সমায়ুষা) সুস্থ ও দীর্ঘায়ুসম্পন্ন হয়েছি।
टिप्पणी
[মেঘের সর্বত্র বর্ষার ফলে বায়ুর শুষ্কতা ও উষ্ণতা শান্ত হয়ে যায়, এবং রোগী নিজেকে সুখী অনুভব করে। এই অনুভূতি শীঘ্র মৃত্যু থেকে রক্ষা করে। একে অমৃত বলা হয়েছে]
मन्त्र विषय
আয়ুর্বর্ধনায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(বয়ম্) আমরা (অমৃতাঃ) অমর হয়ে (পর্জন্যস্য) সীঞ্চনকারী মেঘের (বৃষ্ট্যা) বৃষ্টি থেকে [যেভাবে] (আ) সব দিক থেকে (উৎ অস্থাম) উঠে দাঁড়িয়েছি, (অহম্) আমি (সর্বেণ) সকল (পাপ্মনা) পাপ কর্ম থেকে (বি) আলাদা এবং (যক্ষ্মেণ) রাজরোগ, ক্ষয়ী ইত্যাদি থেকে (বি=বিবর্ত্তৈ) আলাদা থাকি এবং (আয়ুষা) জীবনে [উৎসাহের] সহিত যেন (সম্=সম্ বর্তে) মিলে থাকি/সঙ্গত থাকি ॥১১॥
भावार्थ
মনুষ্য এই সূক্তে বর্ণিত উপদেশের অনুসারে ব্রহ্মজ্ঞানের শ্রবণ মনন, ও নিদিধ্যাসন [বিচারের] মাধ্যমে এমন হর্ষ বৃদ্ধি করুক যেমন অন্ন আদি ঔষধি জলের বৃষ্টিতে নবীন জীবন পেয়ে উৎপন্ন হয়, এইজন্য প্রত্যেক মনুষ্য আত্মিক ও শারীরিক দোষ ছেড়ে নিজের জীবনে লাভ করুক ॥১১॥
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