अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 7
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - देवगणः, सूर्यः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
0
प्रा॒णेन॑ वि॒श्वतो॑वीर्यं दे॒वाः सूर्यं॒ समै॑रयन्। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥
स्वर सहित पद पाठप्रा॒णेन॑ । वि॒श्वत॑:ऽवीर्यम् । दे॒वा: । सूर्य॑म् । सम् । ऐ॒र॒य॒न् । वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.७॥
स्वर रहित मन्त्र
प्राणेन विश्वतोवीर्यं देवाः सूर्यं समैरयन्। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥
स्वर रहित पद पाठप्राणेन । विश्वत:ऽवीर्यम् । देवा: । सूर्यम् । सम् । ऐरयन् । वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आयु बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थ
(देवाः) विजय चाहनेवाले महात्माओं ने (विश्वतोवीर्यम्) सब ओर से वीर्यवान् (सूर्यम्) सर्वप्रेरक वा सर्वत्रगति परमेश्वर वा सूर्य को (प्राणेन) प्राण से (सम्) मिलकर (ऐरयन्) पाया है। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से... [म० १] ॥७॥
भावार्थ
जितेन्द्रिय वीरों ने आत्मा के सहारे, अर्थात् आत्मज्ञान और आत्मबल से, परमात्मा को पाकर और सूर्य आदि लोकों तक गति करके परम पद पाया है। मनुष्य आत्मिक और शारीरिक दोष मिटाकर जीवन सफल करें ॥७॥
टिप्पणी
७−(प्राणेन) जीवनहेतुना। (विश्वतीवीर्यम्) सर्वतःसामर्थ्यम्। सर्वशक्तिमन्तम्। (देवाः) विजिगीषवो जितेन्द्रिया योगिनः। (सूर्यम्) अ० १।३।५। सुवति प्रेरयति लोकान् सूर्यं वा सरति सर्वत्र स सूर्यः। लोकप्रेरकम्। सर्वत्रगतिं परमात्मानं (सम्) सम्भूय। (ऐरयन्) अ० १।११।२। ईर गतौ-लङ्। अगच्छन्। प्राप्नुवन्। अन्यद् गतम् ॥
विषय
विश्वतो वीर्य सूर्य के सम्पर्क में
पदार्थ
१. (देवा:) = देववृत्ति के पुरुष (विश्वतो वीर्यम्) = सब सामों से युक्त-सारे प्राणदायी तत्त्वों से युक्त (सूर्यम्) = सूर्य को (प्राणेन समैरयन्) = अपने प्राण के साथ सम्प्रेरित करते हैं। इसीप्रकार मैं पापों व रोगों से दूर होकर अपने को उत्कृष्ट दीर्घजीवन से सङ्गत करता हूँ। २. वस्तुतः सूर्य के सम्पर्क में जीवन बिताना पापों व रोगों से पार्थक्य का तथा उत्कृष्ट दीर्घजीवन से सम्पर्क का साधन बनता है।
भावार्थ
मैं सूर्य के सम्पर्क में रहता हुआ अपने में प्राणशक्ति का सञ्चार करूँ और निष्पाप, नीरोग व दीर्घजीवन प्राप्त करूँ।
भाषार्थ
(देवाः) परमेश्वर की दिव्य शक्तियों ने (विश्वतोवीर्यम्) समग्रवीर्यों वाले (सूर्यम्) सूर्य को (प्राणेन) प्राण द्वारा (समैरयन्) सम्यक्-प्रेरित किया है। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पापों से (वि) वियुक्त होऊँ, (यक्ष्मेण) यक्ष्मरोग से (वि) वियुक्त होऊँ, (आयुषा) और स्वस्थ आयु से (सम्) संयुक्त होऊँ।
टिप्पणी
[देवा:=दिव्य शक्तियाँ हैं, कामना अर्थात् इच्छा; सर्वज्ञता, तथा कृति शक्ति। परमेश्वर ने सूर्य में प्राण प्रदान किया है, जिस द्वारा वह उत्पत्तिकाल से चमकता और चमका रहा है। सौर परिवार में सूर्य सर्वाधिक वीर्यवान् है, शक्तिसम्पन्न है।]
विषय
पाप से मुक्त होने का उपाय ।
भावार्थ
(देवाः) विद्वान् लोग जिस प्रकार (विश्वतः वीर्यम्) सव प्रकार के वीर्य=सामर्थ्य से युक्त सूर्य को (प्राणेन) प्राणों के साथ (समैरयन्) संगत करते हैं और जिस प्रकार देव=इन्द्रियगण प्राण के साथ सर्वशक्तिमान् सब के प्रेरक आत्मा को संगत करके रखते हैं उसी प्रकार हे पुरुषो ! तुम भी अपने प्राण के साथ उस सर्वशक्तिमान् प्रभु को मिलाये रक्खों। और मैं भी (अहं सर्वेण पाप्मना वि, यक्ष्मेण वि, आयुषा सं) सब पापों और रोगों से परे रह कर आयु से सम्पन्न होऊं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। पाप्महा देवता। १-३, ६-११ अनुष्टुभः। ७ भुरिग। ५ विराङ् प्रस्तार पंक्तिः। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Freedom from Negativity
Meaning
With the force of pranic energies, divine powers of the universe move the all-round mighty sun. May I too, free from all sin, keep off cancer and consumption and be joined with good health and a long full age.
Translation
The bounties of Nature make the Sun, might in all respects, move up with the vital breath. I free this man from all evil and from wasting disease: I unite him with long life.
Translation
The physical force make the mighty sun move on its axis with air, etc. etc. etc.
Translation
Just as the self-controlled yogis have achieved the Almighty, Omnipresent God, through the concentration of breath, so may I, being free from sins and pulmonary disease be yoked with old age.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(प्राणेन) जीवनहेतुना। (विश्वतीवीर्यम्) सर्वतःसामर्थ्यम्। सर्वशक्तिमन्तम्। (देवाः) विजिगीषवो जितेन्द्रिया योगिनः। (सूर्यम्) अ० १।३।५। सुवति प्रेरयति लोकान् सूर्यं वा सरति सर्वत्र स सूर्यः। लोकप्रेरकम्। सर्वत्रगतिं परमात्मानं (सम्) सम्भूय। (ऐरयन्) अ० १।११।२। ईर गतौ-लङ्। अगच्छन्। प्राप्नुवन्। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(দেবাঃ) পরমেশ্বরের দিব্য শক্তি (বিশ্বতোবীর্যম) সমগ্র বীর্যবান (সূর্য) সূর্যকে (প্রাণ) প্রাণ দ্বারা (সমৈরয়ন্) সম্যক-প্রেরিত করেছে। (অহম্) আমি (সর্বেণ পাপ্মনা) সব পাপ থেকে (বি) বিযুক্ত হই, (যক্ষ্মেণ) যক্ষ্মা রোগ থেকে (বি) বিযুক্ত হই, (আয়ুষা) এবং সুস্থ আয়ুর সাথে (সম্) সংযুক্ত হই।
टिप्पणी
[দেবাঃ= দিব্য শক্তি হলো, কামনা অর্থাৎ ইচ্ছা; সর্বজ্ঞতা, এবং কৃতি শক্তি। পরমেশ্বর সূর্যে প্রাণ প্রদান করেছেন, যা দ্বারা সে উৎপত্তিকাল থেকে জাজ্বল্যমান। সৌর পরিবারে সূর্য সর্বাধিক বীর্যবান্, শক্তিসম্পন্ন।]
मन्त्र विषय
আয়ুর্বর্ধনায়োপদেশঃ
भाषार्थ
(দেবাঃ) বিজয়াকাঙ্খী/বিজয় অভিলাষী মহাত্মাগণ (বিশ্বতোবীর্যম্) সব দিক থেকে/সর্বতোভাবে বীর্যবান্ (সূর্যম্) সর্বপ্রেরক বা সর্বত্রগতি পরমেশ্বর বা সূর্যকে (প্রাণেন) প্রাণের সাথে (সম্) মিলিত হয়ে (ঐরয়ন্) প্রাপ্ত করেছে। (অহম্) আমি (সর্বেণ) সকল (পাপ্মনা) পাপ কর্ম থেকে (বি) আলাদা এবং (যক্ষ্মেণ) রাজরোগ, ক্ষয়ী ইত্যাদি থেকে (বি=বিবর্ত্তৈ) আলাদা থাকি এবং (আয়ুষা) জীবনে [উৎসাহের] সহিত যেন (সম্=সম্ বর্তে) মিলে থাকি/সঙ্গত থাকি॥৭॥
भावार्थ
জিতেন্দ্রিয় বীর আত্মার সাহায্যে, অর্থাৎ আত্মজ্ঞান ও আত্মবল দ্বারা, পরমাত্মাকে প্রাপ্ত করে এবং সূর্যাদি লোক পর্যন্ত গতি করে পরম পদ প্রাপ্ত করেছে। মনুষ্য আত্মিক ও শারীরিক দোষ দূর করে জীবন সফল করুক॥৭॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal