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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 31/ मन्त्र 9
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मनाशन सूक्त
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    प्रा॒णेन॑ प्राण॒तां प्राणे॒हैव भ॑व॒ मा मृ॑थाः। व्यहं सर्वे॑ण पा॒प्मना॒ वि यक्ष्मे॑ण॒ समायु॑षा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रा॒णेन॑ । प्रा॒ण॒ताम् । प्र । अ॒न॒ । इ॒ह । ए॒व । भ॒व॒ । मा । मृ॒था॒: । वि । अ॒हम् । सर्वे॑ण । पा॒प्मना॑ । वि । यक्ष्मे॑ण । सम् । आयु॑षा ॥३१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्राणेन प्राणतां प्राणेहैव भव मा मृथाः। व्यहं सर्वेण पाप्मना वि यक्ष्मेण समायुषा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्राणेन । प्राणताम् । प्र । अन । इह । एव । भव । मा । मृथा: । वि । अहम् । सर्वेण । पाप्मना । वि । यक्ष्मेण । सम् । आयुषा ॥३१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 31; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आयु बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्राणताम्) जीते हुओं के (प्राणेन) श्वास से (प्राण) श्वास ले, (इह) यहाँ पर (एव) ही (भव) रह, (मा मृथाः) मरा मत जा। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पाप कर्म से... [म० १] ॥९॥

    भावार्थ

    मनुष्य पुरुषार्थियों के समान अपने श्वास-श्वास पर कर्तव्य करे और संसार में रहकर भूल, आलस्य आदि दोष छोड़कर कीर्ति पावे ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(प्राणेन) प्रकृष्टजीवनेन। श्वासप्रश्वासव्यापारेण। (प्राणताम्) प्र+अन जीवने-शतृ। श्वसताम्। आत्मवत्ताम्। (प्राण) प्राणान् धारय। (इह एव) अस्मिन्नेव जन्मनि लोके वा। (भव) वर्तस्व। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    न मरियल जीवन

    पदार्थ

    १. (प्राणताम) = जीवित रहनेवालों के (प्राणेन) = प्राण से (प्राण) = हे प्राणवान पुरुष! तु जीवित है। (इह एव भव) = यहाँ सूर्य के सन्दर्शन में ही हो। (मा मृथा:) = तू प्राणों का त्याग मत कर। २. मैं भी सब पापों व रोगों से पृथक् होकर उत्कृष्ट दीर्घजीवन को प्राप्त करूँ।

    भावार्थ

    प्राणशक्ति का वर्धन करते हुए हम उत्कृष्ट जीवनवाले बनें, मरियल-से न हों। मैं निष्पाप, नीरोग, दीर्घजीवन को प्राप्त करूँ।

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    भाषार्थ

    [हे जीव!] (प्राणताम्) प्राण लेनेवाले प्राणियों के (प्राणेन) प्राण धारण करने के सामर्थ्य से ही तू भी (प्राण) यहाँ प्राण ले और (इह एव भव) यहाँ ही विद्यमान रह और (मा मृथाः) मृत्यु का ग्रास मत बन। (अहम्) मैं (सर्वेण पाप्मना) सब पापों से (वि) वियुक्त होऊँ (यक्ष्मेण) यक्ष्मरोग से (वि) वियुक्त होऊँ, (आयुषा) स्वस्थ्य तथा दीर्घ आयु से (सम्) सम्बद्ध होऊँ।

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    विषय

    पाप से मुक्त होने का उपाय ।

    भावार्थ

    हे जीव ! हे प्राण ! (प्राणतां) प्राण लेने वाले प्राणियों के (प्राणेन) प्राण धारण करने के सामर्थ्य से ही तू भी (प्राण) यहां प्राण ले और (इह एव भव) यहां ही विद्यमान रह और (मा मृथाः) देह त्याग करके मृत्यु का ग्रास मत बन। जिस प्रकार और प्राणी प्राण लेते और रहते हैं उसी प्रकार तू भी जी और उद्योग कर। (वि अहं सर्वेण०) इत्यादि पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। पाप्महा देवता। १-३, ६-११ अनुष्टुभः। ७ भुरिग। ५ विराङ् प्रस्तार पंक्तिः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Freedom from Negativity

    Meaning

    O Jiva, living soul, live and breathe by the pranic energy of the divine sources of prana. Live on here, die not too soon. Let me, too, free from all sin, keeping away cancer and consumption, enjoy full age with good health.

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    Translation

    May you live on with the vital breath of the vigorously living. Let you stay here. Let you not die. I free you from all evil and from wasting disease. I unite you with a long life.

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    Translation

    O Jiva; breath the heave of life, with the vital breath of those who draw the vital air, let you not die...... etc. etc,

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    Translation

    O soul, depart not early stay here. Breathe with the breath of those who draw the vital air. May I be being free from sins and pulmonary disease, be yoked with old age.

    Footnote

    Here: In the body.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(प्राणेन) प्रकृष्टजीवनेन। श्वासप्रश्वासव्यापारेण। (प्राणताम्) प्र+अन जीवने-शतृ। श्वसताम्। आत्मवत्ताम्। (प्राण) प्राणान् धारय। (इह एव) अस्मिन्नेव जन्मनि लोके वा। (भव) वर्तस्व। अन्यद् गतम् ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    [হে জীব !] (প্রাণতাম্) প্রাণ গ্ৰহণকারী প্রাণীদের (প্রাণ) প্রাণ ধারণ করার সামর্থ্য দ্বারাই তুমিও (প্রাণ) এখানে প্রাণ গ্রহণ করো এবং (ইহ এব ভব) এখানেই বিদ্যমান থাকো এবং (মা মৃথাঃ) মৃত্যুর গ্রাস হয়োনা। (অহম্) আমি যেন (সর্বেণ পাপ্মান) সব পাপ থেকে (বি) বিযুক্ত হই, (যক্ষ্মেণ) যক্ষ্মা রোগ থেকে (বি) বিযুক্ত হই, (আয়ুষা) সুস্থ ও দীর্ঘ আয়ুর সাথে (সম্) সম্বন্ধিত হই।

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    मन्त्र विषय

    আয়ুর্বর্ধনায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (প্রাণতাম্) জীবিতদের (প্রাণেন) শ্বাস দ্বারা (প্রাণ) শ্বাস গ্রহণ করো, (ইহ) এখানে (এব)(ভব) থাকো, (মা মৃথাঃ) মরে যেও না। (অহম্) আমি (সর্বেণ) সকল (পাপ্মনা) পাপ কর্ম থেকে (বি) আলাদা এবং (যক্ষ্মেণ) রাজরোগ, ক্ষয়ী ইত্যাদি থেকে (বি=বিবর্ত্তৈ) আলাদা থাকি এবং (আয়ুষা) জীবনে [উৎসাহের] সহিত যেন (সম্=সম্ বর্তে) মিলে থাকি/সঙ্গত থাকি ॥৯॥

    भावार्थ

    মনুষ্য পুরুষার্থীদের মতো নিজ-নিজ প্রত্যেক নিঃশ্বাস প্রশ্বাসে কর্তব্য করে এবং সংসারে থেকে ভুল, আলস্য আদি দোষ ত্যাগ করে কীর্তি পাবে/প্রাপ্ত হোক ॥৯॥

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