अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 6
ऋषिः - शुक्रः
देवता - अपामार्गो वनस्पतिः
छन्दः - बृहतीगर्भानुष्टुप्
सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
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यश्च॒कार॒ न श॒शाक॒ कर्तुं॑ श॒श्रे पाद॑म॒ङ्गुरि॑म्। च॒कार॑ भ॒द्रम॒स्मभ्य॑मा॒त्मने॒ तप॑नं॒ तु सः ॥
स्वर सहित पद पाठय: । च॒कार॑ । न । श॒शाक॑ । कर्तु॑म् । श॒श्रे । पाद॑म् । अ॒ङ्गुरि॑म् । च॒कार॑ । भ॒द्रम् । अ॒स्मभ्य॑म् । आ॒त्मने॑ । तप॑नम् । तु । स: ॥१८.६॥
स्वर रहित मन्त्र
यश्चकार न शशाक कर्तुं शश्रे पादमङ्गुरिम्। चकार भद्रमस्मभ्यमात्मने तपनं तु सः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । चकार । न । शशाक । कर्तुम् । शश्रे । पादम् । अङ्गुरिम् । चकार । भद्रम् । अस्मभ्यम् । आत्मने । तपनम् । तु । स: ॥१८.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जिस दुष्ट ने (कर्तुम्) हिंसा को (चकार) किया था, वह (न शशाक) समर्थ न था, उसने (पादम्) अपना पैर और (अङ्गुरिम्) अङ्गुरी (शश्रे) तोड़ली। (सः) उसने (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (भद्रम्) आनन्द, और (आत्मने) अपने लिये (तु) तो (तपनम्) तपन (चकार) कर लिया ॥६॥
भावार्थ
पापी का आत्मा दुर्बल होता है, वह दण्ड पाने से आप ही अपने हाथ पैर में कुल्हाड़ी मारता है। उससे शिष्टों को सुख और उस दुष्ट को दुःख होता है ॥६॥
टिप्पणी
६−(यः) दुष्टपुरुषः (चकार) कृतवान् (न) नहि (शशाक) शक्तः समर्थ आसीत् (कर्तुम्) सितनिगमि०। उ० ३।६९। इति कृञ् हिंसायाम्−तुन्। हिसाम् (शश्रे) शॄ हिंसायाम्-लिट्। शीर्णवान्। छिन्नवान् (पादम्) चरणम् (अङ्गुरिम्) अ० २।३३।६। अङ्गुलिम् (भद्रम्) मङ्गलम् (अस्मभ्यम्) प्रजागणेभ्यः (आत्मने) स्वस्मै (तपनम्) दहनं पीडनम् (तु) किन्तु (सः) दुष्कर्मी ॥
विषय
अपने पाँव पर ही कुठाराघात
पदार्थ
१. (यः) = जो शत्रु (चकार) = हिंसन-कार्य करता है, और इस हिंसन-कार्य द्वारा (पादम्) = एक पाँव को अथवा (अंगुरिम्) = एक अंगुलि को (शश्रे) = हिंसित करता है, वह शत्रु (कर्तुं न शशाक) = हिंसन कार्य को करने में समर्थ नहीं होता। २. वस्तुतः (सः) = वह शत्रु इन हिंसन-प्रयोगों से (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (भद्रं चकार) = कल्याण ही करता है, (आत्मने तु) = अपने लिए तो (तपनम्) = दहन को करनेवाला होता है। ये हिंसन के प्रयोग हमें धैर्य धारण का अवसर देते हैं और इनका प्रयोक्ता अपने ही हृदय में विषैली वासनाओं को जन्म देनेवाला होता है।
भावार्थ
जो दूसरों का हिंसन करने का प्रत्यन करता है, वह वस्तुत: अपना ही अमङ्गल करता है।
भाषार्थ
(यः) जिसने (चकार) हिंस्र कर्म किया है, परन्तु (कर्तुम्) हिंस्रकर्म करने में पूर्णतया (न शशाक) नहीं समर्थ हुआ, सफल हुआ, अपि तु उसने (पादम्, अङ्गुरिम्) अपने पैर और अङ्गुलि को (शश्रे) हिंसित कर लिया है, उसने (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (भद्रम्, चकार) भद्रकर्म किया है और (आत्मने) अपने लिए (सः तु) उसने तो (तपनम्) सन्ताप पैदा कर लिया है।
टिप्पणी
[हिंस्रकर्म करने वाला हमारी हिंसा तो करने में समर्थ नहीं हुआ, अपितु उसने अपने-आपको क्षतविक्षत कर लिया है। यह हमारे प्रति भद्रकर्म हुआ है, और उसके प्रति सन्तापरूप हुआ है। वह भविष्य में हमारे प्रति हिंस्रकर्म करने में असमर्थ हो गया है, यह हमारे प्रति उस द्वारा भद्रकर्म हुआ है।]
विषय
‘अपामार्ग’ विधान का वर्णन।
भावार्थ
(यः चकार) जो बुरा काम करने का यत्न करता है परन्तु (न कर्तुं शशाक) कर न सके (अंगुरिम्, पादं) वह अपने ही अंगुलियों या हाथ पैर को (शश्रे) तोड़ लेता है। इस प्रकार वह (अस्मभ्यं) हमारे लिये तो (भद्रं चकार) ठीक ही करता है कि कर न सका, पर तो भी (सः) वह (आत्मने) अपने लिये (तपनं चकार) पीड़ा प्राप्त करने या पछताने का ही कार्य करता है।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। १-५, ७, ८ अनुष्टुभः। ६ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Apamarga Panacea
Meaning
He that does the mischief, or tries but fails to accomplish, bums his own fingers or breaks his own feet. In a way, he does good to us, awakens us, but, after all, this is a torture for himself, he is a torture unto himself.
Translation
Whosoever has used instruments of violence against has never succeeded. He has got his foot or finger injured. Thus he has caused good to us and burning (tapana) for himself. (yatud han --one who indulges in violence.; Arāyaah - hags.)
Translation
He who makes his effort to injure others but do not succeeds, breaks his own foot and toe. Though doing so he does good for us but creates trouble for himself.
Translation
He who tries to commit mischief, but fails, hurts his foot, and breaks his toe. His act bath brought us happiness and pain and sorrow to himself.
Footnote
His failure to commit mischief is a source of happiness for us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(यः) दुष्टपुरुषः (चकार) कृतवान् (न) नहि (शशाक) शक्तः समर्थ आसीत् (कर्तुम्) सितनिगमि०। उ० ३।६९। इति कृञ् हिंसायाम्−तुन्। हिसाम् (शश्रे) शॄ हिंसायाम्-लिट्। शीर्णवान्। छिन्नवान् (पादम्) चरणम् (अङ्गुरिम्) अ० २।३३।६। अङ्गुलिम् (भद्रम्) मङ्गलम् (अस्मभ्यम्) प्रजागणेभ्यः (आत्मने) स्वस्मै (तपनम्) दहनं पीडनम् (तु) किन्तु (सः) दुष्कर्मी ॥
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