अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 7
ऋषिः - शुक्रः
देवता - अपामार्गो वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अपामार्ग सूक्त
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अ॑पामा॒र्गोऽप॑ मार्ष्टु क्षेत्रि॒यं श॒पथ॑श्च॒ यः। अपाह॑ यातुधा॒नीरप॒ सर्वा॑ अरा॒य्यः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पा॒मा॒र्ग: । अप॑ । मा॒र्ष्टु॒ । क्षे॒त्रि॒यम् । श॒पथ॑: । च॒ । य: ।अप॑ । अह॑ । या॒तु॒ऽधा॒नी: । अप॑ । सर्वा॑: । अ॒रा॒य्य᳡: ॥१८.७॥
स्वर रहित मन्त्र
अपामार्गोऽप मार्ष्टु क्षेत्रियं शपथश्च यः। अपाह यातुधानीरप सर्वा अराय्यः ॥
स्वर रहित पद पाठअपामार्ग: । अप । मार्ष्टु । क्षेत्रियम् । शपथ: । च । य: ।अप । अह । यातुऽधानी: । अप । सर्वा: । अराय्य: ॥१८.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(अपामार्गः) दोषों का शोधनेवाला राजा (क्षेत्रियम्) देह वा वंश के दोष को, (च) और (यः) जो कुछ (शपथः) दुर्वचन हो [उसे भी] (अप मार्ष्टु) शुद्ध कर देवे। (अह) अरे (यातुधानीः) यातना देनेवाली शत्रुसेनाओं को (अप=अप मार्ष्टु) शुद्ध कर डाले, और (सर्वाः) सब (अराय्यः=अरायीः) अलक्ष्मियों को (अप=अप मार्ष्टु) शुद्ध कर डाले ॥७॥
भावार्थ
राजा अपनी सुनीति से प्रजा के दुःखों का नाश करके उनके स्वास्थ्य और धन की वृद्धि करे ॥७॥
टिप्पणी
७−(अपामार्गः) अ० ४।१७।६। सर्वथा शोधको राजा (अप मार्ष्टु) मृजूष् शुद्धौ। शोधयतु। अपगमयतु (क्षेत्रियम्) अ० २।८।१। क्षेत्र−घच्। देहे वंशे वा भवं रोगं दोषं वा (शपथः) क्रोशः। दुर्वचनम् (च) (यः) यः, तमपि (अप) अप मार्ष्टु (अह) विनिग्रहे (यातुधानीः) अ० १।२८।२। पीडादायिनीः शत्रुसेनाः (सर्वाः) (अराय्यः) अ० ४।१७५। अलक्ष्मीः ॥
विषय
क्षेत्रिय रोग-निराकरण
पदार्थ
१. (अपामार्ग:) = [अपमण्यते रोगादिनिराकरणेन पुरुष: शोध्यते अनने] यह अपामार्ग ओषधि (क्षेत्रियम्) = माता-पिता के शरीर से आगत संक्रामक क्षय, कुष्ठ, अपस्मार आदि रोगों को (अपमाष्टुं) = दूर करे (च) = और (य:) = जो (शपथ:) = रोगपीड़ा-जनित आक्रोश है, उसे भी दूर करे। २. यह अपामार्ग (अह) = निश्चय से (यातुधानी:) = पीड़ा को आहित करनेवाली व्याधियों को (अप) = दूर करे तथा यह (सर्वा:) = सब (अराय्य:) = अलक्ष्मियों को निस्तेजताओं को (अप) = दूर करे।
भावार्थ
अपामार्ग ओषधि द्वारा सब आक्रोशजनक व कष्टप्रद क्षेत्रिय रोग भी दूर हो जाते हैं। निस्तेजस्कता दूर होकर शरीर लक्ष्मी-[कान्ति]-सम्पन्न हो जाता है।
भाषार्थ
(अपामार्गः) अपामार्ग [ओषधि] (अप मार्ष्टु) रोग को अपगत कर शुद्ध करे, (क्षेत्रियम्) वंशपरम्परा से आगत रोग को, (च) और (य:) जो (शपथ:) शपथग्रहण की आदत है उसे (अप) पृथक् करे। (यातुधानी:) दूसरों को यातना [कष्ट] पहुँचाने की प्रवृत्तियों को, (अह) तथा (अप) पृथक् करे (सर्वाः) सब (अराय्य:) अराति-प्रवृत्तियों को।
टिप्पणी
[अपामार्गः= अपमृज्यते रोगादिनिराकरणेन पुरुषः शोध्यते अनेनेति अपामार्ग, मृजूष् शुद्धौ (सायण)।]
विषय
‘अपामार्ग’ विधान का वर्णन।
भावार्थ
(यः) जो (क्षेत्रियं) माता पिता के देह से उत्पन्न या राष्ट्र में उत्पन्न होने वाली व्याधि और चोर भय को और (यः च) जो (शपथः) परस्पर निन्दा कलह को (अपमार्ष्टु) दूर करदे वही उपाय (अपामार्गः) ‘अपामार्ग’ नाम से कहा जाता है, क्योंकि वह (सर्वाः) सब प्रकार के (यातुधानीः) पीडा़कारिणी और (अराय्यः) राष्ट्र की लक्ष्मी की नाशक चालों, प्रगतियों (Movements) को (अपाह) दूर कर देता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। अपामार्गो वनस्पतिर्देवता। १-५, ७, ८ अनुष्टुभः। ६ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Apamarga Panacea
Meaning
Apamarga, real panacea, is that which cleanses and cures us of all physical disease and mental malignity, whether it is individual or social, inherited, contacted or acquired. It is that which removes all that is negative, destructive and depressive and causes self-deprivation and social debility.
Translation
Let the Apámarga (off-wiper) wipe off all the ksethriya (hereditary), and whatever malady (there is); (wipe off/ for sooth; the yatudhana, i.e., the inflictor of violence and all the stingy hags; arayyah - ugly old woman)
Translation
Let Apamarga sweep away chronic disease and the trouble which is caused by delirium. Let it remove all the diseases which cause serious troubles and which destroy the glamour of the body.
Translation
Let Apamarga sweep away chronic disease and the evil habit of using foul language. Let it remove the disease that causesintense pain and lowers vitality.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(अपामार्गः) अ० ४।१७।६। सर्वथा शोधको राजा (अप मार्ष्टु) मृजूष् शुद्धौ। शोधयतु। अपगमयतु (क्षेत्रियम्) अ० २।८।१। क्षेत्र−घच्। देहे वंशे वा भवं रोगं दोषं वा (शपथः) क्रोशः। दुर्वचनम् (च) (यः) यः, तमपि (अप) अप मार्ष्टु (अह) विनिग्रहे (यातुधानीः) अ० १।२८।२। पीडादायिनीः शत्रुसेनाः (सर्वाः) (अराय्यः) अ० ४।१७५। अलक्ष्मीः ॥
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