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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
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    वा॑नस्प॒त्यः संभृ॑त उ॒स्रिया॑भिर्वि॒श्वगो॑त्र्यः। प्र॑त्रा॒सम॒मित्रे॑भ्यो व॒दाज्ये॑ना॒भिघा॑रितः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒न॒स्प॒त्य: । सम्ऽभृ॑त: । उ॒स्रिया॑भि: । वि॒श्वऽगो॑त्र्य: । प्र॒ऽत्रा॒सम् । अ॒मित्रे॑भ्य: । व॒द॒ । आज्ये॑न । अ॒भिऽघा॑रित: ॥२१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वानस्पत्यः संभृत उस्रियाभिर्विश्वगोत्र्यः। प्रत्रासममित्रेभ्यो वदाज्येनाभिघारितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वानस्पत्य: । सम्ऽभृत: । उस्रियाभि: । विश्वऽगोत्र्य: । प्रऽत्रासम् । अमित्रेभ्य: । वद । आज्येन । अभिऽघारित: ॥२१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं को जीतने को उपदेश।

    पदार्थ

    [हे दुन्दुभि !] (वानस्पत्यः) सेवनियों के पालक [सेनापति] से प्राप्त हुआ, (उस्रियाभिः) वस्तियों की रक्षक सेनाओं से (संभृतः) यथावत् रक्खा गया, (विश्वगोत्र्यः) समस्त कुलों का हितकारक तू (अमित्रेभ्यः) वैरियों को (प्रत्रासम्) अति भय (वद) कह दे, [जैसे] (आज्येन) घी से (अभिघारितः) सींचा हुआ [अग्नि प्रकाशित होता है] ॥३॥

    भावार्थ

    सेनापति लोग घृत से प्रज्वलित अग्नि के समान प्रचण्ड होकर शत्रुओं को भयभीत करदें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(वानस्पत्यः) सू० २० म० १। वनस्पतिभ्यः सेव्यानां पालकेभ्यः सेनापतिभ्य आगतः (संभृतः) सम्यग्धृतः (उस्रियाभिः) सू० २० म० १। वसतिरक्षिकाभिः सेनाभिः (विश्वगोत्र्यः) तस्मै हितम्। पा० ५।१।५। इति–विश्वगोत्र−यत्। सर्वकुलेभ्यो हितः (प्रत्रासम्) अतिभयम् (अमित्रेभ्यः) म० १। शत्रुभ्यः (वद) कथय (आज्येन) घृतेन (अभिघारितः) अभिषिक्तोऽग्निरिव ॥

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    विषय

    आज्येन अभिवारितः

    पदार्थ

    १. (वानस्पत्य:) = वनस्पति [काठ] से बना हुआ (उस्त्रियाभि:) = चर्म-रजुओं से (संभृतः) =  सम्यक मढ़ा हुआ यह युद्धवाद्य (विश्वगोत्र्य:) = सब भूमि का उत्तम रक्षक है। २. (आग्येन) = तेजस्विता व शस्त्रों [वज्रों] के द्वारा (अभिधारित:) = दीप्त किया हुआ तू (अमित्रेभ्यः) = शत्रुओं के लिए (प्रत्रासं वद) = भय को कहनेवाला हो, तेरा उग्र घोष शत्रु-हदयों को भयभीत कर दे।

    भावार्थ

    युद्धवाद्य राष्ट्रभूमि का रक्षक है, तेजस्विता व शस्त्रों से युक्त हुआ-हुआ यह शत्रुओं को भयभीत करनेवाला है। युद्धवाद्य के साथ योद्धाओं की तेजस्विता व शस्त्र-प्रहार शत्रुओं को परास्त करनेवाले होते हैं।

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    भाषार्थ

    (उस्त्रियाभिः) गौओं के चर्म और स्नायुओं द्वारा (संभृतः) तैयार हुआ, (विश्वगोत्र्यः)१ सब मित्र राजाओं के संघों का सम्बन्धी (वानस्पत्यः) वनस्पति के काष्ठ से निर्मित हे दुन्दुभि! तू (अमित्रेभ्य:) शत्रुओं के लिए (प्रत्रासम्) भय की ( वद) घोषणा कर, (आज्येन) युद्धयज्ञ में रक्ताज्य२ द्वारा (अभिघारितः) सींवा हुआ तू।

    टिप्पणी

    [वानस्पत्यः (२०।१)। अभिघारित:= घृ सेचने (भ्वादिः)] [१. विश्वगोत्र्यः= विश्व-- गोत्र्यः (पृथिवी के रक्षक राजाओं सम्बन्धी) सब मित्र अर्थात् पृथिवीपतियों कि साथ सम्बन्धवाला, सब मित्र राजाओं का प्रतिनिधिरूप। विश्व=गो (पूथिवीं)-त्रैङ (पालन)। २. आज्येन -रक्ताज्य । युद्ध में दुन्दुभि जाता है, युद्ध में मैनिकों के रक्त द्वारा दुन्दुभि भी रक्तलिप्त हो जाता है।]

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    विषय

    युद्धविजयी राजा को उपदेश।

    भावार्थ

    हे दुन्दुभे ! नक्कारे ! तू जिस प्रकार (वानस्पत्यः) लकड़ी का बना हुआ होकर भी (उस्त्रियाभिः संभृतः) चाम के तस्मों से जकड़ा हुआ (विश्वगोत्र्यः) समस्त जन का बन्धु है। वह (अमित्रेभ्यः) शत्रुओं के लिये (आज्येन अभि- घारितः) घृत द्वारा अभिषिक्त होकर (प्र-त्रासं वद) भय और आतङ्क बतला। राजा के पक्ष में—हे राजन् ! तू (वानस्पत्यः) सूर्यवत् वा काष्ठ से उत्पन्न अग्नि के तुल्य एवं ऐश्वयों के स्वामि-पद के योग्य है। और (उस्त्रियाभिः सम्भृतः) किरणों के समान पुष्ट होकर अथवा (उत्सर्पणशील, उन्नतिशील प्रजाओं और सेनाओं से पुष्ट होकर ही (विश्वगोत्र्यः) समस्त गोत्रों और वंशों के प्रति एक समान है। तू (आज्येन अभिघारितः) तेज और शस्त्रों से प्रकाशमान होकर (अमित्रेभ्यः प्र-त्रासं वद) शत्रुओं को भय दिलाने वाला संदेश सुना।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War and Victory-the call

    Meaning

    O call for war of the united people symbolised by the war drum made of wood and equipped with tight leather and straps, anointed with ghrta, representing people of all communities, let the boom resound as warning of terror for unfriendly forces.

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    Translation

    Made out of wood, kept tight with leather straps, common to all clans, smeared with purified butter, may you utter terror for our enemies.

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    Translation

    Let this war-drum made of wood, muffled with leather straps, dear to all the persons of human race and bedewed with ghee. speak terror to our foemen.

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    Translation

    O King, full of power like the sun, fortified with forces, dear to all clans, blazing with dignity and arms, preach terror to our armies.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(वानस्पत्यः) सू० २० म० १। वनस्पतिभ्यः सेव्यानां पालकेभ्यः सेनापतिभ्य आगतः (संभृतः) सम्यग्धृतः (उस्रियाभिः) सू० २० म० १। वसतिरक्षिकाभिः सेनाभिः (विश्वगोत्र्यः) तस्मै हितम्। पा० ५।१।५। इति–विश्वगोत्र−यत्। सर्वकुलेभ्यो हितः (प्रत्रासम्) अतिभयम् (अमित्रेभ्यः) म० १। शत्रुभ्यः (वद) कथय (आज्येन) घृतेन (अभिघारितः) अभिषिक्तोऽग्निरिव ॥

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