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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 1
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
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    विहृ॑दयं वैमन॒स्यं वदा॒मित्रे॑षु दुन्दुभे। वि॑द्वे॒षं कश्म॑शं भ॒यम॒मित्रे॑षु॒ नि द॑ध्म॒स्यव॑ एनान्दुन्दुभे जहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विऽहृ॑दयम् । वै॒म॒न॒स्य । वद॑ । अ॒मित्रे॑षु । दु॒न्दु॒भे॒ । वि॒ऽद्वे॒षम् । कश्म॑शम् । भ॒यम् । अ॒मित्रे॑षु । नि । द॒ध्म॒सि॒। अव॑ । ए॒ना॒न् । दु॒न्दु॒भे॒ । ज॒हि॒ ॥२१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विहृदयं वैमनस्यं वदामित्रेषु दुन्दुभे। विद्वेषं कश्मशं भयममित्रेषु नि दध्मस्यव एनान्दुन्दुभे जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽहृदयम् । वैमनस्य । वद । अमित्रेषु । दुन्दुभे । विऽद्वेषम् । कश्मशम् । भयम् । अमित्रेषु । नि । दध्मसि। अव । एनान् । दुन्दुभे । जहि ॥२१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं को जीतने को उपदेश।

    पदार्थ

    (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि वा ढोल ! (अमित्रेषु) वैरियों में (विहृदयम्) हृदय व्याकुल करने हारी (वैमनस्यम्) मन की ग्लानि (वद) कह दे। (विद्वेषम्) फूट, (कश्मशम्) गति की रोक और (भयम्) भय (अमित्रेषु) वैरियों के बीच (निदध्मसि) हम डाले देते हैं। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि ! (एनान्) इन [शत्रुओं] को (अव जहि) निकाल दे ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे पराक्रमी शूर के दुन्दुभि आदि बजने पर शत्रु लोग डावाँडोल होकर भाग जाते हैं, वैसे ही विद्वान् पुरुष के विज्ञान द्वारा काम क्रोध आदि नष्ट हो जाते हैं ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(विहृदयम्) वि विकृतं हृदयं यस्मात् तत् (वैमनस्यम्) विमनसो भावः−ष्यञ्। मनोग्लानिम् (वद) ज्ञापय (अमित्रेषु) अ० १।१९।२। पीडकेषु शत्रुषु (दुन्दुभे) सू० २० म० १। हे बृहड्ढक्के (विद्वेषम्) वैरिभावम् (कश्मशम्) कश गतिशासनयोः−क्विप्+मष हिंसायाम्−घञर्थे क, षस्य शः। कशः गतेः प्रवृत्तेर्मशं नाशम् (भयम्) दरम् (निदध्मसि) निरंतरं धारयामः (अव) दूरे (एनान्) शत्रून् (जहि) हन हिंसागत्योः। गमय ॥

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    विषय

    विहृदय वैमनस्यम्

    पदार्थ

    १. हे (दुन्दुभे)  युद्धवाद्य! तू (अमित्रेषु) = शत्रुओं में (विहृदयं वैमनस्यं वद) = हृदय की व्याकुलता व मन की उदासीनता को कह दे-अपनी ऊँची ध्वनि से उन्हें व्याकुल व उदासीन कर दे। २. तेरे द्वारा हम (अमित्रेषु) = शत्रुओं में (विद्वेषं कश्मशं भयम्) = द्वेष, कश्मकश-मनमुटाव व भय को (निदध्मसि) = स्थापित करते हैं। हे (दुन्दुभे) = युद्धवाद्य ! तू (एनान्) = इन शत्रुओं को (अवजहि) = सुदूर नष्ट करनेवाला हो।

    भावार्थ

    इमारा युद्धवाद्य शत्रुओं में द्वेष, वैमनस्य व भय उत्पन्न करके उन्हें नष्ट करनेवाला हो।

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    भाषार्थ

    (विहृदयम्) हृदयों का फटाव तथा (वैमनस्यम्) मनों का फटाव, (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि ! (अमित्रेषु) दुश्मनों में (वद) बोल अर्थात् कर। (विद्वेषम्) पारस्परिक द्वेष (कश्मशम् ) चञ्चलता, गड़बड़, (भयम् ) और भय (अमित्रेषु) दुश्मनों में (निदध्मसि ) हम सैनिक स्थापित करते हैं। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि (एनान् अवजहि) इनका तू अवहनन कर, नाश कर ।

    टिप्पणी

    [कश्मशम्=कश (गतौ, चञ्चलता, गड़बड़) + मश ( रोषकृते शब्दे, भ्वादिः), युद्ध में असफलता जानकर शत्रुओं में पारस्परिक रोष।]

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    विषय

    युद्धविजयी राजा को उपदेश।

    भावार्थ

    हे (दुन्दुभे) द्वन्द्व = संग्राम में चमकने वाले राजन् ! तू (अमित्रेषु) शत्रुओं में (वि-हृदयं) विरुद्ध हृदयता और (वैमनस्यम्) विरुद्ध चित्तता, फूट का (वद) उपदेश कर। हम (अमित्रेषु) शत्रुओं के बीच में (वि-द्वेषं) भेट, फूट, (कश्मशं) मनमुटाव और (भयम्) डर को (नि दध्मसि) पैदा करें, डाल दें और तू (एनान्) इन शत्रुओं को (अव जहि) नीचे गिरा कर मार, उनके दिल तोड़।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War and Victory-the call

    Meaning

    Clarion call of the united people for progressive action, strike confusion of heart and mind among unfriendly forces. Let us create dissension, confusion and fear among the adversaries. O united voice of the people, strike down all such conflicts and divisions. (This sukta may better be read with the last hymn of Rgveda (10, 191) on the unity of humanity living together in harmony with united thought and action as one family of one universal God of love and compassion for all.)

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    Subject

    Wood-carved War-drum

    Translation

    O war-drum, may you utter disheartening (noise) and estrangement of minds among our enemies. We put in our enemies malice, discord and fear. May you, O drum smile them down.

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    Translation

    Let this war-drum speak through its roar the animosity and discouragement between the enemies and we also create dissension, discomfiture and fear among our foe-men. Let this drive away those enemies.

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    Translation

    Preach to our enemies, O King, discouragement and wild dismay. Webring upon our foemen fear, discord and discomfiture, O King, drive these enemies away!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(विहृदयम्) वि विकृतं हृदयं यस्मात् तत् (वैमनस्यम्) विमनसो भावः−ष्यञ्। मनोग्लानिम् (वद) ज्ञापय (अमित्रेषु) अ० १।१९।२। पीडकेषु शत्रुषु (दुन्दुभे) सू० २० म० १। हे बृहड्ढक्के (विद्वेषम्) वैरिभावम् (कश्मशम्) कश गतिशासनयोः−क्विप्+मष हिंसायाम्−घञर्थे क, षस्य शः। कशः गतेः प्रवृत्तेर्मशं नाशम् (भयम्) दरम् (निदध्मसि) निरंतरं धारयामः (अव) दूरे (एनान्) शत्रून् (जहि) हन हिंसागत्योः। गमय ॥

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