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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 7
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
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    परा॒मित्रा॑न्दुन्दु॒भिना॑ हरि॒णस्या॒जिने॑न च। सर्वे॑ दे॒वा अ॑तित्रस॒न्ये सं॑ग्रा॒मस्येश॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परा॑ । अ॒मित्रा॑न् । दु॒न्दु॒भिना॑ । ह॒रि॒णस्य॑ । अ॒जिने॑न । च॒ । सर्वे॑ । दे॒वा: । अ॒ति॒त्र॒स॒न् । ये । स॒म्ऽग्रा॒मस्य॑ । ईश॑ते ॥२१.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परामित्रान्दुन्दुभिना हरिणस्याजिनेन च। सर्वे देवा अतित्रसन्ये संग्रामस्येशते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परा । अमित्रान् । दुन्दुभिना । हरिणस्य । अजिनेन । च । सर्वे । देवा: । अतित्रसन् । ये । सम्ऽग्रामस्य । ईशते ॥२१.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं को जीतने को उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो विद्वान् लोग (संग्रामस्य) संग्राम के (ईशते) स्वामी होते हैं, उन (सर्वे) सब (देवाः) महात्मा लोगों ने (हरिणस्य) हरिण के (अजिनेन) चर्म से युक्त (दुन्दुभिना) दुन्दुभि से (च) निश्चय करके (परा=पराजित्य) हराकर (अतित्रसन्) डरा दिया है ॥७॥

    भावार्थ

    शूर सेनापति लोग शत्रुओं को जीत कर भगा देवें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(परा) पराजित्य (अमित्रान्) म० १। शत्रून् (दुन्दुभिना) बृहड्ढक्कया (हरिणस्य) मृगस्य (अजिनेन) अजिन−अर्शआद्यच्। चर्मयुक्तेन (च) निश्चयेन (सर्वे) सकलाः (देवाः) महात्मानः (अतित्रसन्) त्रसी उद्वेगे णिचि लुङ्। त्रासितवन्तः (ये) देवाः (संग्रामस्य) युद्धस्य (ईशते) ईश्वरा भवन्ति ॥

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    विषय

    दुन्दुभिः [दुन्दुशब्देन भाययति]

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (संग्रामस्य ईशते) = संग्नाम के स्वामी होते हैं, वे (सर्वे देवा:) = सब शत्रु-विजिगीषावाले पुरुष (हरिणस्य अजिनेन) = हरिण के चमड़े से मढ़ी हुई (दुन्दुभिना) = दुन्दुभि से (च) = ही (अमित्रान्) = शत्रुओं को (परा अतित्रसन्) = भयभीत कर सुदूर भगा देते हैं।

    भावार्थ

    युद्धबाय को कुशलता से बजानेवाले व्यक्ति इस दुन्दुभि से ही शत्रुओं को भयभीत कर डालते हैं।

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    भाषार्थ

    (दुन्दुभिना) दुन्दुभि द्वारा, (च) और (हरिणस्य) हरिण के (अजिनेन) चर्म द्वारा, (सर्वे देवाः) सब देवों ने (अतित्रसन् ) शत्रुसेनाओं को भयभीत कर दिया है, ( ये ) जो देव कि (संग्रामस्य ) संग्राम के (ईशते) अधीश्वर हैं।

    टिप्पणी

    [ये देव हैं सम्राट की सेना की देखभाल करनेवाले अधिकारी। सम्राट् के दुन्दुभि का घोष परसेना को भयभीत कर देता है, परन्तु हरिणों के अजिन, पर सेना को अतिभयभीत कर देते हैं। ये है अजिनों में छिपे सैनिक। शत्रु तो जानते है कि ये हरिण हैं, इन्हें आसानी से मारा जा सकता है, परन्तु ये हरिण भी जब लड़ते हैं तो शत्रु सेना अतिभयभीत हो जाती है, यह जानकर कि सम्राट के हरिण भी युद्ध करते हैं तो सम्राट की सेनाओं के साथ लड़ना तो अतिशय दुष्कर हो गया। हरिणों के अजिन-अजिनों में ढके सम्राट के सैनिक।]

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    विषय

    युद्धविजयी राजा को उपदेश।

    भावार्थ

    नक्कारा बजाने के प्रकार का उपदेश करते हैं—(ये) जो (संग्रामस्य) संग्राम करने में (ईशते) समर्थ हैं वे (सर्वे देवाः) समस्त देव, विद्वान्, दिव्य, संग्राम-कीड़ा में चतुर पुरुष (हरिणस्य अजिनेन) हरिण के चर्म के बने (दुन्दुभिना) नक्कारे से (च) ही (अमित्रान् परा अतित्रसन्) शत्रु लोगों को दूर से डरा भगाते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War and Victory-the call

    Meaning

    Let all the noble and brilliant leaders and warriors who rule and control the affairs of war and defence keep the enemies away by fear of the boom of the drum with the beat on the tympanic membrane of dear skin.

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    Translation

    With the drum and with the skin of the dear, may all the enlightened ones, who are masters of the battle, frighten the enemies away.

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    Translation

    The men of wondrous power who control the affairs of battle frighten away enemies with the war-drum which is made from the skin of dear.

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    Translation

    May all the learned persons who are experts in the art of warfare, defeat and frighten away our enemies with Drum made of the skin of an antelope.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(परा) पराजित्य (अमित्रान्) म० १। शत्रून् (दुन्दुभिना) बृहड्ढक्कया (हरिणस्य) मृगस्य (अजिनेन) अजिन−अर्शआद्यच्। चर्मयुक्तेन (च) निश्चयेन (सर्वे) सकलाः (देवाः) महात्मानः (अतित्रसन्) त्रसी उद्वेगे णिचि लुङ्। त्रासितवन्तः (ये) देवाः (संग्रामस्य) युद्धस्य (ईशते) ईश्वरा भवन्ति ॥

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