Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 21 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 8
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
    0

    यैरिन्द्रः॑ प्र॒क्रीड॑ते पद्घो॒षैश्छा॒यया॑ स॒ह। तैर॒मित्रा॑स्त्रसन्तु नो॒ऽमी ये यन्त्य॑नीक॒शः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यै: । इन्द्र॑: । प्र॒ऽक्रीड॑ते । प॒त्ऽघो॒षै: । छा॒यया॑ । स॒ह । तै: । अ॒मित्रा॑: । त्र॒स॒न्तु॒ । न॒: । अ॒मी इति॑ । ये । यन्ति॑ । अ॒नी॒क॒ऽश: ॥२१.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यैरिन्द्रः प्रक्रीडते पद्घोषैश्छायया सह। तैरमित्रास्त्रसन्तु नोऽमी ये यन्त्यनीकशः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यै: । इन्द्र: । प्रऽक्रीडते । पत्ऽघोषै: । छायया । सह । तै: । अमित्रा: । त्रसन्तु । न: । अमी इति । ये । यन्ति । अनीकऽश: ॥२१.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं को जीतने को उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् सेनापति (छायया सह) छाया के साथ (यैः) जिन (पद्घोषैः) पैरों के खटकों से (प्रक्रीडते) क्रीड़ा करता रहता है, (तैः) उनसे (नः) हमारे (अमी) वे (अमित्र्याः) शत्रु (त्रसन्तु) डर जावें (ये) जो (अनीकशः) श्रेणी-श्रेणी (यन्ति) चलते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    चतुर शीघ्रगामी सेनापति की छाया और पैरों के आहट से शत्रु के दल के दल भाग जावें ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(यैः) (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् सेनापतिः (प्रक्रीडते) विहरति (पद्घोषैः) स्वपादशब्दैः (छायया) स्वप्रतिविम्बेन (सह) सहितः (तैः) पद्घोषैः (अमित्राः) शत्रवः (त्रसन्तु) बिभ्यतु (नः) अस्माकम् (अमी) दृश्यमानाः (ये) शत्रवः (यन्ति) गच्छन्ति (अनीकशः) संख्यैकवचनाच्च वीप्सायाम्। पा० ५।४।४३। इति अनीक−शस्। सेनाखण्डशः। श्रेण्या श्रेण्या ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    छायया सह इन्द्रः

    पदार्थ

    १. शत्रुओं का छेदन करनेवाली सेना यहाँ 'छाया' कही गई है। (इन्द्रः) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला सेनापति (छायया सह) = शत्रुओं का छेदन करनेवाली सेना के साथ (यैः पद्घोषैः) = जिन चरणाघात-जनित शब्दों के साथ [Marching में होनेवाले शब्दों के साथ] (प्रक्रीडते) = युद्ध-कीड़ा करता है, (तै:) = उन पद्घोषों से (अमी) = वे (ये) = जो (अनीकश:) = एक-एक टुकड़ी करके (यन्ति) = गति करते हैं, वे (न: अमित्रा:) = हमारे शत्रु (त्रसन्तु) = भयभीत हों।

    भावार्थ

    सेनापति के साथ सेना के पादापात-जनित घोषों से ही शत्रु-सैन्य भयभीत होकर भाग जाए।

     

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (इन्द्रः) सम्राट् (यै:) जिन (पदघोषै:) सैनिकों के पैरों के घोषों द्वारा, (छायया सह) शत्रु की छायारूपिणी सेना के साथ (प्रक्रीडते) युद्ध भूमि में मानो क्रीड़ा करता है, (तै:) उन पद्घोषों के द्वारा (नः) हमारे (अमित्राः) शत्रु-सैनिक (त्रसन्तु) भयभीत हो जाएँ, (ये) जो (अमी) वे (अनीकश:) नाना सेनारूप में (यन्ति) युद्धभूमि में विचरते हैं।

    टिप्पणी

    [अभिप्राय यह कि 'इन्द्र' तो सम्राट है, साम्राज्य का अधिपति है, अत: महाशक्तिशाली है। शत्रुसेना उसके लिए मानो छायारूप है, निःशक्त है छायावत्। इन्द्र की सेना के पद्घोषों के ही भय से शत्रु की सेनाएँ भय-भीत हो जाती हैं, इन्द्र को वस्तुतः युद्ध नहीं करना पडता। इन्द्र की सेना का युद्धभूमि में आना मानो इन्द्र की कीड़ामात्र है। प्रक्रीडते = प्रक्रीडा है, प्रकृष्टक्रीडा, युद्धभूमि में खोली जानेवाली क्रीडा, मरने-मारनेवाली क्रीडा, जिसे सैनिक प्रसन्नता से खेलते हैं, निज क्षात्रधर्म जानकर।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    युद्धविजयी राजा को उपदेश।

    भावार्थ

    (इन्द्रः) सेनापति (यैः पद्-घोषैः) चरणों के जिन घोर धोषों से ओर (छायया) छाया, आच्छादन शक्ति, आवरणकारी साधनों, मोर्चाबन्दियों से (प्र-क्रीड़ते) रणक्रीड़ा करता है (तैः) उनसे (नः अमित्राः) हमारे शत्रु लोग (ये अनीक-शः यन्ति) जो सेनाओं के दस्ते बना २ कर चलते हैं (सन्तु) वे भी भय खावें। सेना के दस्ते ले २ कर चढ़ाई करने वाले शत्रुओं को राजा नाना प्रकार के चरणाघात के शब्दों से और भ्रमजनक छाया अथवा अपने मोर्चों से भयभीत करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    War and Victory-the call

    Meaning

    By the tumult of the thumping boots of our soldiers on the march with air and armour cover with which Indra, ruler and commander, plays the war game to win, let our enemies have the fright of their life while they form and stand in battle array.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    With the resounding noises of foot-steps, with which the army chief plays his game along with the shadow, may our enemies get frightened, who move forth in troops.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let those our enemies who go on front in their battalions tremble in fear from the shadow and foot-sounds with which the mighty commandant sports.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let those. our enemies who go yonder in battalions shake in fear at shadows and the sounds of feet which the Commander-in-chief sporteth with.

    Footnote

    The enemy is likely to be terrified hearing the sounds of feet and seeing the shadow of innumerable warriors marching against him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(यैः) (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् सेनापतिः (प्रक्रीडते) विहरति (पद्घोषैः) स्वपादशब्दैः (छायया) स्वप्रतिविम्बेन (सह) सहितः (तैः) पद्घोषैः (अमित्राः) शत्रवः (त्रसन्तु) बिभ्यतु (नः) अस्माकम् (अमी) दृश्यमानाः (ये) शत्रवः (यन्ति) गच्छन्ति (अनीकशः) संख्यैकवचनाच्च वीप्सायाम्। पा० ५।४।४३। इति अनीक−शस्। सेनाखण्डशः। श्रेण्या श्रेण्या ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top