अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 12
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः
छन्दः - त्रिपदा यवमध्या गायत्री
सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
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ए॒ता दे॑वसे॒नाः सूर्य॑केतवः॒ सचे॑तसः। अ॒मित्रा॑न्नो जयन्तु॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ता:। दे॒व॒ऽसे॒ना: । सूर्य॑ऽकेतव: । सऽचे॑तस: । अ॒मित्रा॑न् । न: । ज॒य॒न्तु॒ । स्वाहा॑ ॥२१.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
एता देवसेनाः सूर्यकेतवः सचेतसः। अमित्रान्नो जयन्तु स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठएता:। देवऽसेना: । सूर्यऽकेतव: । सऽचेतस: । अमित्रान् । न: । जयन्तु । स्वाहा ॥२१.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रुओं को जीतने को उपदेश।
पदार्थ
(एताः) यह सब (सूर्यकेतवः) सूर्यसमान पताकावाली, (सचेतसः) समान चित्तवाली (देवसेनाः) विजयी सेनापति की सेनायें (नः) हमारे (अमित्रान्) वैरियों को (जयन्तु) जीतें, (स्वाहा) यह आशीर्वाद हो ॥१२॥
भावार्थ
पराक्रमी सेनापति की सहायता से समस्त शूर सेनादल शत्रुओं को हराकर निकाल दें ॥१२॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥
टिप्पणी
१२−(एताः) समीपस्थाः (देवसेनाः) विजयिनः सेनापतेः सेनाः (सूर्यकेतवः) चायः की। उ० १।७४। इति चायृ पूजायाम्−तु। इति केतुः पताका। सूर्यवत्पताकायुक्ताः (सचेतसः) समानचित्ताः (अमित्रान्) शत्रून् (नः) अस्माकम् (जयन्तु) अभिभवन्तु (स्वाहा) अ० २।१६।१। इत्याशीर्वादोऽस्तु ॥
विषय
देवसेना सूर्य केतवः
पदार्थ
१. (एता:) = ये (न:) = हमारी (देवसेना:) = शत्रुओं को जीतने की कामनावाली सेनाएँ (सूर्यकेतवः) = सूर्य के झण्डेवाली हों। सूर्य से ये निरन्तर प्रेरणा प्राप्त करें कि "जैसे सूर्य अन्धकार को नष्ट करता है, हमें शत्रुओं के अन्धकार को नष्ट करना है". ये (सचेतसः) = सदा चेतना से युक्त हों-इनके होश सदा स्थिर रहें-ये घबरा न जाएँ। २. ये सेनाएँ (अमित्रान् जयन्तु) = शत्रुओं को जीतनेवाली हों। (स्वाहा) = हम भी अपना त्याग करनेवाले बनें [स्व+हा], राष्ट्र-रक्षा के लिए कुछ-न-कुछ बलिदान करनेवाले बनें।
भावार्थ
हमारी सेनाएँ विजिगीषावाली हों। इनके झण्डे पर सूर्य का चिह्न हो। उससे ये शत्ररूप अन्धकार को समास करने की प्रेरणा लें। ये शत्रुओं को जीतें। हम भी स्वार्थ-त्याग की वृत्ति से राष्ट्र-रक्षा में सहयोगी बनें।
विशेष
सुरक्षित राष्ट्र में उन्नति-पथ पर चलता हुआ व्यक्ति अपने को ज्ञानाग्नि में परिपक्व करके 'भृगु' बनता है। शरीर को स्वस्थ बनानेवाला यह अङ्गिरा होता है। अगला सूक्त इसी 'भृगु अङ्गिरा' का है।
भाषार्थ
(सूर्यकेतवः) सूर्याङ्कित झण्डोंवाली, (सचेतसः) एकचित्तवाली, (एता:) ये [मन्त्र ११ में कथित] (देवसेना:) देवों की सेनाएं (नः) हमारे (अमित्रान्) शत्रुओं को (जयन्तु) जीतें, (स्वाहा) एतदर्थ आहृतियाँ हों। [आहुतियो-युद्धयज्ञ में सैनिकों की आत्माहुतियाँ।]
टिप्पणी
[मन्त्र ११ में मरुतः आदि देवों का वर्णन हुआ है। इन्हें मन्त्र १२ में सूर्यकेतवः कहा है। "एता देवसेनाः' में महादेव अर्थात परमेश्वर को देवसेनाओं का अङ्गीभूत दर्शाया है। वह भी 'सूर्यकेतु' है, सूर्य उसका केतु है, ज्ञापक है। परमेश्वर सुर्यवासी है, अतः सूर्य स्वनिष्ठ परमेश्वरीय सत्ता का ज्ञापक है। यथा— योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्। ओ३म खं ब्रह्म। (यजु:० ४०।१७)। अर्थात् वह जो आदित्य में पुरुष है वह मैं हूँ, जिसका कि नाम ओ३म् है, जो खम् अर्थात् आकाशवत् व्यापी है और ब्रह्म है, सबसे महान् है।]
विषय
युद्धविजयी राजा को उपदेश।
भावार्थ
(एताः) ये (देव सेनाः) विद्वान्, क्रीड़ा करने वाले वीर पुरुषों की सेनाएं (स-चेतसः) समान चित्त होकर युद्ध करने वाली (सूर्यकेतवः) सूर्य की ध्वजा वाली, अथवा सूर्य की किरणों के समान तीव्र गति वाली होकर (नः अमित्रान्) हमारे शत्रुओं को (जयन्तु) जीतें, (स्वाहा) यहि हमारी उत्तम यज्ञाहुति है। इति चतुर्थोऽनुवाकः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
War and Victory-the call
Meaning
These dedicated God fearing forces with solar banner, one and equal of mind with God’s grace would win over the enemies. This is the voice of the soul in truth of thought, word and deed.
Translation
May these hosts divine, having sun on their banners (süryaketavah), one minded, conquer our enemies. Svaha. (hail).
Translation
May these one-minded wondrous armies holding the flag marked with sun subjugate our enemies. Whatever is uttered herein is correct.
Translation
May these forces of the victorious commander, brilliant like the rays of the sun, one-minded, conquer our foes. This is our resolve for conquest.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(एताः) समीपस्थाः (देवसेनाः) विजयिनः सेनापतेः सेनाः (सूर्यकेतवः) चायः की। उ० १।७४। इति चायृ पूजायाम्−तु। इति केतुः पताका। सूर्यवत्पताकायुक्ताः (सचेतसः) समानचित्ताः (अमित्रान्) शत्रून् (नः) अस्माकम् (जयन्तु) अभिभवन्तु (स्वाहा) अ० २।१६।१। इत्याशीर्वादोऽस्तु ॥
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